मौजूदा समय में भारतीय फुटबॉल टीम रैंकिंग के मामले में 100 के अंदर नहीं आ पाती है। तमाम कोशिशों के बावजूद स्तर पर भारतीय फुटबॉल टीम वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना पा रही है। हालांकि, हमेशा से भारत में फुटबॉल इस दर्जे का नहीं था। एक समय ऐसा भी था जब भारतीय टीम न सिर्फ चैंपियन की तरह खेलती थी बल्कि जीत भी हासिल किया करती थी।
यह बात है साल 1950 से 1960 के बीच की। भारत के मशहूर फुटबॉलर सैयद अब्दुल रहीम टीम के कोच हुआ करते थे। उस समय भारतीय टीम साल 1951 में एशियन गेम्स जीती, 1956 के ओलंपिक गेम्स में चौथे नंबर पर रही और फिर साल 1962 में एशियन गेम्स में अपना परचम लहराया। यानी भारतीय टीम एक तरफ एशिया की नंबर 1 टीम थी, दूसरी तरफ दुनियाभर में वह झंडे गाड़ रही थी। सैयद अब्दुल रहीम वही हैं जिनके ऊपर फिल्म 'मैदान' बनी है। एक समय पर भारतीय फुटबॉल टीम के कोच रहे सैयद अब्दुल रहीम आगे चलकर खेल प्रबंधक बने।
4-2-4 फॉर्मेशन लाए थे अब्दुल रहीम
भारतीय टीम के कोच बनने से पहले वह हैदराबाद पुलिस की टीम के कोच हुआ करते थे। उनकी ट्रेनिंग में इस टीम ने चार बार डूरंड कप जीता। कोच के बाद हैदराबाद फुटबॉल असोसिएशन के मुखिया बने अब्दुल रहीम 11 जून 1963 को अपने निधन के समय तक इसी पद पर बने रहे। अब्दुल रहीम ही वह शख्स थे जो भारत में 4-2-4 की रणनीति लेकर आए और भारतीय फुटबॉल के लिए यह बेहद कारगर भी साबित हुई। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें स्कूल, कॉलेज, शहर, राज्य और देश की टीम को कोचिंग दी।
अब्दुल रहीम की काबिलियत ही थी कि उन्होंने उस जमाने के दिग्गज फुटबॉल खिलाड़ी जरनैल, सिंह, पी के बनर्जी, तुलसीदास बलराम, अरुण घोष और पीटर थंगराज के साथ मिलकर काम किया और टीम को जबरदस्त मुकाम तक ले गए। तमाम दिग्गज टीम को धूल चटाने वाला यह दिग्गज गुरु आखिरकार कैंसर से जंग हार गया और 53 साल की उम्र में ही उनकी मौत हो गई।