ग्रेट ब्रिटेन के लिवरपूल में आयोजित हुई वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2025 में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने कुल 4 मेडल जीते, जिसमें 2 गोल्ड रहे। ये दोनों गोल्ड हरियाणा की बेटियों ने दिलाए। जैस्मिन लंबोरिया 57 किलोग्राम भारवर्ग में वर्ल्ड चैंपियन बनीं, जबकि मीनाक्षी हुड्डा ने 48 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। जैस्मिन ने शनिवार (13 सितंबर) को फाइनल मुकाबले में पोलैंड की जूलिया स्जेरेमेटा को 4-1 से मात दी।
जूलिया के खिलाफ जैस्मिन की यह जीत और खास इसलिए भी है, क्योंकि जूलिया पेरिस ओलंपिक 2024 की फानलिस्ट थीं। पेरिस में जैस्मिन पहले ही राउंड में बाहर हो गई थीं, लेकिन यहां वह नहीं चूकीं। इसके अगले दिन (रविवार) मीनाक्षी ने कजाकिस्तान की नजिम काईजीबे को 4-1 से हराकर वर्ल्ड चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। नजिम काईजीबे पेरिस ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडलिस्ट रही थीं लेकिन वह मीनाक्षी के मुक्कों का उनके पास जवाब नहीं था।
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जैस्मिन को विरासत में मिली है बॉक्सिंग
24 साल की जैस्मीन हरियाणा के भिवानी की रहने वाली हैं। उन्हें बॉक्सिंग विरासत में मिली है। वह देश के महान बॉक्सर हवा सिंह के परिवार से ताल्लुक रखती हैं। हवा सिंह ने 1966 और 1970 एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीते थे। जैस्मिन के दो चाचा परमिंदर और संदीप नेशनल चैंपियन रह चुके हैं। जैस्मिन के परिवार में भले ही बॉक्सिंग का काफी क्रेज था लेकिन उन्हें इस खेल में करियर बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।
उनके बाबा चंद्रभान लंबोरिया उन्हें बॉक्सिंग में नहीं भेजना चाहते थे। जैस्मिन ने अपने चाचाओं से अपने बाबा चंद्रभान को राजी करवाया। चंद्रभान से अनुमति मिलने के बाद जैस्मिन ने घर से चार किलोमीटर दूरी भिवानी बॉक्सिंग क्लब में प्रैक्टिस शुरू की। उनकी मां कहती हैं कि वह वर्ल्ड चैंपियन बन गई लेकिन हमारे लिए तो चीनू ही रहेगी। जैस्मिन की मां जोगिंदर कौर ने बीबीसी हिंदी से कहा, 'मेरी बेटी भाग्यशाली है, जो हरियाणा में पैदा हुई है। यहां उसे बॉक्सर बनने की सभी सुविधाएं मिल गई। बधाई देने वाले मुझे बता रहे थे कि वह अब विश्व चैंपियन बन गई है। पर मैंने उनसे कहा कि वह हमारे लिए तो हमेशा चीनू ही रहेगी। घर वाले उसे इसी नाम से बुलाते हैं। वह हमारी भाग्यशाली संतान है।'
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गरीब परिवार से आती हैं मीनाक्षी
मीनाक्षी रोहतक के रुरकी किलोरी गांव से आती हैं। उनके पिता एक श्रीकृष्ण ऑटो चालक हैं। श्रीकृष्ण ने ऑटो चलाकर ही परिवार का भरण-पोषण किया। साथ ही उन्होंने कुछ पैसे बचाकर मीनाक्षी को बॉक्सर बनाया। श्रीकृष्ण ने बीबीसी हिंदी को बताया, 'मैं ऑटो चलाकर अगर दिन भर में 200 रुपए भी कमाता था, तो उसमें से सौ रुपए निकालकर अपनी बेटी की खुराक के लिए रख देता था।'
मीनाक्षी के घर से 400 मीटर की दूरी पर शहीद बतून सिंह स्टेडियम में बॉक्सिंग एकेडमी चलता है। इस एकेडमी के संचालक विजय हुड्डा ने मीनाक्षी को काफी मदद की है। मीनाक्षी को बॉक्सर बनाने के लिए उनकी मां ने भी बड़ा त्याग किया। मीनाक्षी की मां घर में मौजूद कुछ भेंसों का दूध निकालकर गांव में उसे बेचने जाती थीं, ताकि बेटी की डाइट के लिए पैसे कम ना पड़े। मीनाक्षी ने अपने माता-पिता की इन प्रयासों का कद्र किया और कड़ी मेहनत की, जिससे वह आज वर्ल्ड चैंपियन बनकर सामने आई हैं।