अक्सर जब कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स या ओलंपिक गेम्स में भारतीय टीम जा रही होती है तो सबसे ज्यादा उम्मीद पहलवानों से ही की जाती है। इस बार के ओलंपिक में भी थोड़ी की चूक के चलते विनेश फोगाट पदक से चूक गईं। कुश्ती में भारत के दबदबे की बात नई नहीं है। यह मामला दशकों पुराना है। सौ साल पहले भी भारत में कुश्ती लड़ी जाती थी और कुछ ऐसे मशहूर पहलवान भी हुए जिनको हमेशा याद किया जाता है। यह कहानी एक ऐसे ही पहलवान की है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसे कभी कोई हरा ही नहीं पाया और गुलाम मोहम्मद नाम का यह शख्स 'गामा पहलवान' के नाम से मशहूर हुआ।
साल 1878 में जन्म गुलाम मोह्मब बख्श बट के गामा पहलवान बनने की कहानी उस वक्त से रफ्तार पकड़ती है जब वह सिर्फ 22 साल की उम्र में एक बहुत बड़े पत्थर को उठा लेते हैं। कहा जाता है कि बड़ौदा के सयाजीबाग में बने एक म्यूजियम में रखे इस शिलालेख का वजन लगभग 1200 किलो था। कश्मीरी मूल के गुलाम मोहम्मद पंजाब के अमृतसर में पैदा हुए थे।
कम उम्र में ही दिखा दिया था जलवा
कम उम्र में ही अखाड़ो में जाने लगे और न सिर्फ गए बल्कि कुश्ती सीखने भी लगे। बताया जाता है कि 10 साल की उम्र में ही गुलाम मोहम्मद ने अपना नाम मशहूर कर दिया था। जोधपुर में हुई एक प्रतियोगिता में जब सिर्फ 10 साल के गुलाम मोहम्मद आखिरी 15 तक पहुंच गए तो जोधपुर के महाराजा ने उन्हें विजेता घोषित कर दिया। विजेता के तौर पर खूब पैसे मिले और मिला महाराजा पटियाला का संरक्षण। उन्होंने गुलाम मोहम्मद की ट्रेनिंग का खर्च उठाया और उन्हें गामा पहलवान बनने में खूब मदद की।
जबरदस्त प्रैक्टिस, खूब कसरत करने वाले गुलाम मोहम्मद दिन में अच्छी-खासी डाइट भी लिया करते थए। कम उम्र में ही वह देश के तमाम पहलवानों को हराने लगे। साल 1910 में गुलाम मोहम्मद ने पोलैंड के विश्व चैंपियन स्टैनिस्लॉस जबीस्ज्को को हरा दिया और जॉन बुल बेल्ट और विश्व चैंपियन को हरा दिया था।
लड़ने से इनकार कर देते थे लोग
गुलाम मोहम्मद का रुतबा ऐसा हो चुका था कि कई पहलवान तो उनसे लड़ने से ही इनकार कर देते थे। कहा जाता है कि गुलाम मोहम्मद उर्फ गामा पहलवान का करियर सिर्फ इसी वजह से खत्म हो गया क्योंकि कोई पहलवान उनके मुकाबले मैदान में उतरना ही नहीं चाहता था। यह बात 1910 की है जब भारतीय चैपिंयन का खिताब पाने के लिए गुलाम मोहम्मद ने रहीम बख्श सुल्तानी को हराया। इन्हीं रहीम बख्श सुल्तानी के बारे में गामा पहलवान ने कहा कि वह सबसे मजबूत विरोधी थे।
साल 1947 में देश का बंटवारा हुआ तो गामा पहलवान पाकिस्तान के लौहार चले गए। कई बार दंगों के दौरान भी वह चट्टान की तरह खड़े हो गए और पाकिस्तान में भी दंगाइयों का जमकर सामना किया। आखिरकार 23 मई 1960 में 82 साल की उम्र में गामा पहलवान का निधन हो गया।