पटौदी का नाम हटा, तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी के नाम पर क्यों मचा बवाल?
भारत और इंग्लैंड के बीच होने जा रही टेस्ट सीरीज का नाम बदले जाने से खलबली मच गई है। अब इसका नाम पटौदी ट्रॉफी की बजाय तेंडुलकर-एंडरसन ट्रॉफी कर दिया गया है।

तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी के नाम पर मचा बवाल, Photo Credit: Khabargaon
13 अगस्त 2007, इंग्लैंड के ओवल का मैदान था, भारत और इंग्लैंड तीसरा और आखिरी टेस्ट मैच खेल रहे थे। इंग्लैंड का स्कोर 55 पर ज़ीरो था, जीत के लिए कुल 444 रन चाहिए थे। मगर पांचवें दिन के अंत तक इंग्लैंड ने 6 विकेट खोकर महज 369 रन ही बनाए, मैच ड्रॉ हो गया था। भारत तीन मैच की टेस्ट सीरीज 1-0 से जीत चुका था। कप्तान राहुल द्रविड, विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, जहीर खान और अनिल कुंबले समेत पूरी टीम जश्न मना रही थी, जश्न होता भी क्यों नहीं? भारत ने इंग्लैंड में 21 साल बाद कोई टेस्ट सीरीज जीती थी। 2 दिन बाद देश की आजादी के 60 साल भी पूरे होने वाले थे। 1947 में आजादी भी ब्रिटिश राज से ही मिली थी। खैर, टीम सीरीज जीती और कप्तान राहुल द्रविड ने ट्रॉफी उठाई। भारत और इंग्लैंड ने पहली टेस्ट सीरीज तो 1932 में खेली थी, मगर 2007 में जो ट्रॉफी उठाई गई वो खास थी। यह ट्रॉफी थी उस शख्स के सम्मान में जिसने इंग्लैंड और भारत दोनों टीमों में रहते हुए टेस्ट क्रिकेट खेला था, ऐसा करने वाले वह इकलौते खिलाड़ी थे।
21 साल बाद टेस्ट सीरीज जीतने पर राहुल द्रविड ने जो ट्रॉफी उठाई थी उसका नाम उसी साल पटौदी ट्रॉफी रखा गया था। 2007 के बाद से हर 3-4 साल के अंतर पर भारत और इंग्लैंड के बीच इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज खेली जाती है, जिसे पटौदी ट्रॉफी कहते हैं। 20 जून 2025 से फिर से एक टेस्ट सिरीज होनी है लेकिन अबकी बार इसे पटौदी ट्रॉफी नहीं कहा जाएगा, इसका नया इस बार से सचिन तेंदुलकर और जेम्स एंडरसन के नाम पर तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी कर दिया गया है।
पटौदी परिवार का भारतीय क्रिकेट में बड़ा योगदान है। नवाब पटौदी सीनियर यानी इफ्तिखार अली खान पटौदी दोनों देशों से क्रिकेट खेलने वाले इकलौते खिलाड़ी थे तो नवाब पटौदी जूनियर यानी मंसूर अली खान पटौदी सबसे कम उम्र में टेस्ट की कप्तानी संभालने वाले भारतीय बने थे। उन्हें टाइगर पटौदी भी कहा जाता है।
यह भी पढ़ें- MS धोनी को ICC हॉल ऑफ फेम में मिली जगह, 11वें भारतीय बने
पटौदी ट्रॉफी का नाम बदलने के फैसले का ऐक्टर और टाइगर पटौदी की पत्नी शर्मिला टैगोर ने विरोध किया है और इसे एक असंवेदनशील कदम बताया है। हर्षा भोगले, सुनील गावस्कर और क्रिकेट की अन्य हस्तियों ने भी इसका विरोध किया है। आइए जानते हैं कि पटौदी ट्रॉफी का नाम क्यों बदला गया? पटौदी सीनियर और जूनियर का नाम भारत और इंग्लैंड के क्रिकेट में अहम क्यों है? 75 साल तक जिस ट्रॉफी का कोई नाम नहीं था, उसे पटौदी ट्रॉफी ही क्यों कहा गया था और इसका नाम बदलने को लेकर विरोध क्यों हो रहा है?
1932 में भारत और इंग्लैंड के बीच पहला टेस्ट मैच खेला गया था, उसके बाद से भारतीय टीम ने कई दशकों तक इंग्लैंड का टूर किया लेकिन जीतने वाले को जो ट्रॉफी दी जाती थी उसका कोई नाम नहीं था। फिर आया 2007 जब भारतीय टीम को फिर से इंग्लैंड का टूर करना था। मेरीलेबॉन क्रिकेट क्लब यानी एमसीसी लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड का ओनर है, MCG ने जून 2007 में तय किया कि भारत और इंग्लैंड के बीच जो भी टेस्ट सीरीज इंग्लैंड में खेली जाएगी उसे पटौदी ट्रॉफी कहा जाएगा। 19 जुलाई 2007 को इस सीरीज का पहला टेस्ट मैच खेला गया, इस दिन Bletchley Park Post Office ने एक स्टैम्प भी जारी किया। इस स्टैंप पर पटौदी ट्रॉफी, इंग्लैंड का शेर और बीसीसीआई का लोगो था। अब सवाल यह है कि नाम पटौदी ट्रॉफी ही क्यों रखा गया?
पटौदी के नाम पर कैसे रखा ट्रॉफी का नाम?
इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड और एमसीसी ने कहा कि ट्रॉफी का नाम पटौदी ट्रॉफी इंडियन और इंग्लैंड क्रिकेट में पटौदी परिवार के योगदान के सम्मान में रखा गया है। पटौदी परिवार, यानी ऐक्टर सैफ अली खान का परिवार। सैफ अली खान के दादा इफ़्तिखार अली खान पटौदी, हरियाणा की पटौदी रियासत के 8 वें नवाब थे, इन्हें पटौदी सीनियर भी कहा गया। अपने 14 साल के क्रिकेटिंग करिअर में पटौदी सीनियर इकलौते खिलाड़ी हुए जिन्होंने इंग्लैंड और भारत दोनों देशों के लिए क्रिकेट खेला।
यह भी पढ़ें: ऑफ साइड वाली गेंद ने विराट कोहली को रिटायर करा दिया? पनेसर का दावा
पटौदी सीनियर 1927 में ऑक्सफोर्ड गए थे, पहले उन्होंने यूनिवर्सिटी और काउंटी क्रिकेट खेला। फिर 1932-33 की एशेज़ सीरीज में उन्होंने इंग्लैंड की टीम के लिए डेब्यू किया। उन्होंने इंग्लैंड के लिए तीन इंटरनेशनल टेस्ट मैच खेले थे। इसके बाद 1946 में जब इंडियन टीम इंग्लैंड के दौरे पर गई थी, तब पटौदी सीनियर इंडियन टीम के कप्तान थे। उन्होंने कुल 6 इंटरनेशनल मैच खेले थे, 3 इंग्लैंड की तरफ से और 3 भारत की तरफ से लेकिन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उन्होंने 199 मैच खेले थे और 8,750 रन बनाए थे। 1952 में महज 41 बरस की उम्र में पोलो खेलने के दौरान हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था। इसी दिन उनके बेटे का 11वां जन्मदिन था, वह बेटा जो न सिर्फ पटौदी रियासत बल्कि क्रिकेट में पटौदी परिवार की लेगेसी को भी आगे लेकर गया।
यह थे पटौदी जूनियर, मंसूर अली खान पटौदी। इस शख्स को टाइगर पटौदी भी कहा गया। टाइगर पटौदी ने भी पहले ऑक्सफोर्ड से यूनिवर्सिटी क्रिकेट और बाद में काउंटी क्रिकेट खेला। मगर उस वक्त शायद उन्हें भी नहीं पता होगा कि उनका इंटरनेशनल डेब्यू एक आंख के साथ होगा। जुलाई 1961 में वह पूर्वी ससेक्स में अपने टीममेट रॉबिन वॉटर्स के साथ कार में थे, कार का एक्सीडेंट हुआ और विंडस्क्रीन का कांच टूट गया, कांच टूटा और मंसूर अली खान पटौदी की दाईं आँख में घुस गया, इसके बाद से नवाब ऑफ पटौदी जूनियर की दाईं आंख हमेशा के लिए खराब हो गई।
क्या है पटौदी की कहानी?
फिर आया दिसंबर 1961, एक आंख वाले पटौदी जूनियर इंग्लैंड के खिलाफ दिल्ली में अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे थे। इस सीरीज के तीसरे टेस्ट मैच में उन्होंने सेन्चुरी भी बनाई थी। पटौदी जूनियर ने अपने करिअर के 46 टेस्ट मैचों में से 40 मैचों में टीम की कमान संभाली, वह कप्तान रहे। वह 21 साल की उम्र में कप्तान बने थे और सबसे कम उम्र में इंडियन टेस्ट टीम के कप्तान बनने वाले खिलाड़ी भी हैं। बिशन सिंह बेदी ने टाइगर पटौदी के बारे में कहा था- 'He was the best thing to have happened to indian cricket'
यह था पटौदी परिवार जिसके सम्मान में पटौदी ट्रॉफी को यह नया नाम मिला था लेकिन अब ये नाम बदल दिया गया है। BCCI और इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड ने फैसला लिया है कि पटौदी ट्रॉफी को अब सचिन तेंदुलकर और जेम्स एंडरसन के नाम पर तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी कहा जाएगा। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के टेस्ट में सबसे ज्यादा रन हैं और जेम्स एंडरसन इंग्लैंड के लिए सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले खिलाड़ी हैं।
भारत और इंग्लैंड की 5 मैचों की टेस्ट सीरीज 20 जून से शुरू होनी है। इससे पहले 11 जून से ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका के बीच वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप का फाइनल खेला जाना है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इसी मैच से पहले तेंदुलकर और एंडरसन अपने नाम पर बनी ट्रॉफी का उद्घाटन करेंगे। यहां एक बात और समझने वाली है– तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी सिर्फ उसी सीरीज को कहा जाएगा जो भारत और इंग्लैंड, इंग्लैंड में रह कर खेलेंगे। भारत में जब भारत-इंग्लैंड की सीरीज होती है उस ट्रॉफी को 'एंथनी डी मेलो' ट्रॉफी कहा जाता है। डी मेलो बीसीसीआई के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
ट्रॉफी का नाम बदलने की वजह क्या है?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि नई जनरेशन क्रिकेट से ज्यादा कनेक्ट कर पाए लेकिन इस फैसले का कई लोगों ने विरोध किया है। इसमें सबसे पहला नाम ऐक्टर और टाइगर पटौदी की पत्नी शर्मिला टैगोर का है, जिन्होंने कहा कि वह इस फैसले से दुखी हैं। शर्मिला ने कहा कि ईसीबी ने सैफ अली खान को एक लेटर लिख कर बताया था कि वह पटौदी ट्रॉफी को रिटायर कर रहे हैं। शर्मिला ने कहा था कि अब यह बीसीसीआई के ऊपर है कि वह क्रिकेट में पटौदी परिवार की लेगसी को बरकरार रखना चाहता है या नहीं।
नाम में क्या रखा है?
यह सवाल आप लोगों के मन में भी आ सकता है कि नाम ही तो है– लेकिन क्रिकेट कमेंटेटर और प्रजेंटर हर्षा भोगले का मानना है कि पटौदी ट्रॉफी सिर्फ एक नाम नहीं था बल्कि दोनों देशों से पटौदी के रिश्ते की बानगी था। उन्होंने लिखा, 'एंडर्सन और तेंदुलकर का प्रशंसक होने के तौर पर मुझे खुश होना चाहिए था कि यह सीरीज तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी के लिए खेली जाएगी लेकिन इसमें दोनों देशों से पटौदी के गहरे रिश्ते को मिस कर दिया गया है। पिता और पुत्र दोनों ने ससेक्स के लिए खेला था, सीनियर पटौदी ने भारत और इंग्लैंड दोनों के लिए खेला था। जूनियर ने इंग्लैंड में स्कूलबॉय के तौर पर खेलते हुए रिकॉर्ड्स बनाए थे। पटौदी ट्रॉफी का महत्व बहुत था।'
सुनील गावस्कर जो टाइगर पटौदी की कैप्टन्सी में खेले भी थे, उन्होंने ट्रॉफी का नाम बदलने को असंवेदनशील बताया है। उन्होंने अपने कॉलम में लिखा था, 'पटौदी ने इंग्लैंड और भारत दोनों देशों की क्रिकेट में जो योगदान दिया है, उसके प्रति यह कदम पूरी तरह से असंवेदनशील है। मुझे उम्मीद है कि अगर किसी भारतीय खिलाड़ी को इसके लिए अप्रोच किया गया तो वह शालीनता से इनकार कर देगा।' मगर सचिन तेंदुलकर ने इसको लेकर इनकार किया था या नहीं, इसपर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। स्पोर्ट्स प्रोड्यूसर जॉय भट्टाचार्य ने भी इस फैसले का विरोध करते हुए सवाल उठाया है कि नाम बदलने की जरूरत क्या थी?
शशि थरूर ने भी फैसला का विरोध करते हुए लिखा है, 'समस्या यह है कि आज की क्रिकेट के रखवाले इस खेल के पवित्र इतिहास की कितनी कम इज़्ज़त करते हैं। मुझे शर्मिला टैगोर के साथ पटौदी ट्रॉफी का एक मैच देखने का सौभाग्य मिला था। यह उनका और उनके परिवार का अपमान है।' पटौदी सीनियर का एक किस्सा और है। यह बात 1932 की है जब इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया एशेज़ खेल रहे थे, पटौदी सीनियर का डेब्यू मैच था; इंग्लैंड के कप्तान डगलस जारडीन थे। जारडीन ने पटौदी सीनियर से बॉडीलाइन लेग साइड यानी बैट्स्मन के एकदम करीब फील्डिंग करने को कहा, पटौदी ने मना कर दिया। उस वक्त क्रिकेट में सेफ़्टी के बहुत चीजें नहीं होती थीं। कहा जाता है कि जारडीन ने पटौदी सीनियर से कहा था कि वह अब से अपने 'अडॉप्टेड देश' के लिए नहीं खेलेंगे। पटौदी को दूसरे टेस्ट मैच के बाद ही ड्रॉप कर दिया गया। पटौदी सीनियर के बारे में कहा गया कि वह उन चीजों के लिए खड़े हुए जिसपर वह यकीन करते थे।
इस बीच जेम्स एंडरसन का भी बयान आया है, उन्होंने कहा है कि यह उनके लिए बहुत बड़ा सम्मान है और वह अभी तक यकीन नहीं कर पा रहे हैं। एंडरसन का कहना है कि सचिन एक लेजेन्ड हैं, उनके साथ यह सम्मान शेयर करना उनके लिए बहुत बड़ी बात है।
क्रिकेट में अलग-अलग देशों के बीच खेली जाने वाली सीरीज को अलग-अलग नाम दिए जाते हैं जैसे भारत ऑस्ट्रेलिया के बीच बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी या ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड के बीच खेला जाने वाला एशेज़। ऐसे में इस तर्क का विरोध हो रहा है कि क्रिकेट में इंगेजमेंट बढ़ाने के लिए या यंग जनरेशन में इस प्रतियोगिता को रेलेवेंट रखने के लिए नाम बदला गया है। अगर इस लॉजिक से सोचा जाए तो क्या आने वाले समय में बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी का नाम बदल कर कोहली-कमिन्स ट्रॉफी कर दिया जाएगा?
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap