संजय सिंह, पटना। साल 1995 के आसपास पूरे बिहार में आरजेडी की तूती बोलती थी। राजनीतिक रूप से चतुर लालू प्रसाद यादव ने पूरे प्रदेश में पिछड़ों को गोलबंद किया था। उसी गोलबंदी के बीच एक नारा उभरा था 'भूरा बाल साफ करो'। हालांकि आरजेडी के नेताओं का कहना है कि लालू प्रसाद ने किसी भी मंच से यह नारा नहीं दिया, लेकिन अगड़ी जातियों के बीच यह नारा जंगल में लगी आग की तरह फैल गया। इसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ। अगड़ी जाति के लोग कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शिफ्ट कर गए।
लालू प्रसाद राजनीतिक जोड़ तोड़ के बाद मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठे थे। वे नहीं चाहते थे कि सत्ता की बागडोर उनके हाथ से छुटे। उनके कई राजनीतिक दुश्मन भी थे जो नहीं चाहते थे कि सत्ता की बागडोर लालू के हाथ में रहे। सोशल इंजीनियरिंग में माहिर लालू प्रसाद यादव को इस बात की अच्छी तरह जानकारी थी। उन्होंने पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित, महादलितों को सत्ता का महत्व समझाया। इसीलिए भूरा बाल साफ करो के नारे को पूरे प्रदेश में फैलाया गया। ताकि जातीय गोलबंदी को मजबूती मिले।
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कांग्रेस का साथ छोड़ गए सवर्ण
हालांकि राजनीति के जानकारों का कहना है कि जातीय गोलबंदी के साथ-साथ ऐसे नारों से सामाजिक विद्वेष भी बढ़ा। कई जगहों पर अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई छिड़ गई। इस विपरीत परिस्थिति में सवर्ण नेता लालू प्रसाद के साथ बने रहे। उनका मानना था कि लालू के पास ही ऐसी ताकत है कि वह चुनाव जीता सकते हैं। नेता तो लालू के साथ रह गए पर सवर्ण वोटर ने पाला बदलकर बीजेपी का दामन थाम लिया। पूर्व में सवर्ण जाति के लोग कांग्रेस के साथ थे, लेकिन आरजेडी के सत्ता में आने के बाद प्रदेश में धीरे-धीरे कमजोर होती गई और सवर्ण मतदाता साथ छोड़ते गए।
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उत्तेजक नारों से परहेज
कुछ दिनों पहले गया जिले के अतरी में आरजेडी विधायक के मंच से एक मुखिया के पति ने भूरा बाल साफ करो के नारे को दोहराने का प्रयास किया। इस नारे पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई। राजद नेता तेजस्वी यादव ने यह सुनिश्चित किया कि आरजेडी A-Z जेड की पार्टी है। इस तरह की अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। विधायक ने भी इसका खंडन किया। आला कमान का सख्त निर्देश है कि उत्तेजक नारों से परहेज किया जाए।
नीतीश के साथ अतिपिछड़े
इस बीच पिछड़े नेता के रूप में मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का उदय हुआ। उन्होंने समता पार्टी बनाई। उनके प्रयास से लव-कुश समीकरण मजबूत हुआ। पहली बार नीतीश सात विधायकों के साथ विधानसभा में आए थे। धीरे-धीरे यह संख्या सात से 70 तक पहुंच गई। लेकिन पिछड़ों की राजनीति करने वाली आरजेडी मुस्लिम, यादव (माई) की पार्टी बनकर रह गई। पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित और महादलित वोट नीतीश के साथ होते चले गए। इन्हीं वोटों के कारण ही आज सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार के हाथों है।
सबको साथ लेकर चल रहे तेजस्वी
पिछड़ों और महादलितों की राजनीति करने वाली सभी पार्टियां बाजार में है, पर उनका सिक्का नहीं चल पा रहा है। तेजस्वी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि सिर्फ माई समीकरण के दम पर बिहार की सत्ता में वापसी नहीं हो सकती। इस कारण वे फूंक फूंककर कदम रख रहे हैं। उनका प्रयास है कि सबको साथ लेकर चलें।