बिहार में विधानसभा चुनावों को लेकर एनडीए और इंडिया ब्लॉक की पार्टियों में जंगलराज बनाम गुंडाराज का मुद्दा छाया हुआ है। एनडीए का कहना है कि अगर दोबारा राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक की सत्ता में वापसी होती है तो जंगलराज छा जाएगा। इंडिया ब्लॉक का कहना है कि बिहार जंगलराज से भी बुरा दौर देख रहा है, राजधानी में सरेआम लोगों को गोलियां मारी जा रही हैं, गुंडाराज चल रहा है, बिहार की जनता इससे मुक्ति चाहती है। कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं, बिहार चुनाव में इन मुद्दों के अलावा भी एक मुद्दा ऐसा है, जो छाया हुआ है, वह है रोजगार।
विधानसभा चुनाव से पहले रोजगार का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी और पलायन को अपने चुनावी अभियान का केंद्र बनाया है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सरकार के रोजगार सृजन के रिकॉर्ड और भविष्य की योजनाओं को लेकर जवाब दे रहे हैं। नीतीश कुमार, हर जनसभा में कह रहे हैं कि हमने तो लाखों रोजगार दिया है, लाखों को रोजगार देंगे। नीतीश कुमार ने 1 करोड़ नौकरी-रोजगार का लक्ष्य तय किया है। वह कह रहे हैं कि बिहार में दोबारा उनकी सरकार आ रही है।
यह भी पढ़ें: निगेटिव कैंपेनिंग: बिहार से दिल्ली तक, हिट या फ्लॉप है यह फॉर्मूला?
10 लाख नौकरियों का वादा, तेजस्वी ने बनाया RJD का प्लान
मार्च 2024 में पटना के गांधी मैदान में तेजस्वी यादव ने जन विश्वास महारैली बुलाई थी। उन्होंने कहा था, '20 महीने हमें दीजिए, हम ऐसा काम करेंगे जो NDA 20 साल में नहीं कर पाई। RJD ने 10 लाख सरकारी नौकरियों, बेरोजगारी भत्ता, युवा आयोग और बिहारी युवाओं के लिए डोमिसाइल आधारित नौकरी नीति का वादा किया है। तेजस्वी यादव ने पलायन खत्म कर देने का वादा किया है। उन्होंने कहा है कि अगर RJD सत्ता में आई तो किसी बिहारी को नौकरी के लिए राज्य छोड़ना नहीं पड़ेगा। राष्ट्रीय जनता दल का कहना है कि बिहार की डबल इंजन सरकार की वजह से बिहार में बेरोजगारी बढ़ी है, उद्योग धंधों की कमी से राज्य जूझ रहा है।
1 करोड़ नौकरियों का प्लान, नीतीश कुमार का चुनावी एजेंडा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने RJD के हमलों का जवाब नीतियों और आंकड़ों से दिया। जुलाई 2025 में नीतीश ने दावा किया, 'अगस्त 2025 तक हम 12 लाख सरकारी नौकरियां और 38 लाख अन्य रोजगार के अवसर दे चुके होंगे। 2025 से 2030 तक 1 करोड़ और नौकरियां देंगे। इसके लिए सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर काम करेंगे।'
नीतीश ने मुख्यमंत्री प्रतिज्ञा योजना की शुरुआत की। उनका दावा है कि इस योजना से 1 लाख युवाओं को 4,000 से 6,000 रुपये का स्टाइपेंड मिलेगा। साथ ही, बिहार युवा आयोग और जननायक कर्पूरी ठाकुर स्किल यूनिवर्सिटी की घोषणा की गई।
यह भी पढ़ें: न बड़े उद्योग, न तगड़ा रेवेन्यू, कैसे चलती है बिहार की अर्थव्यवस्था?
NDA की ओर से क्या वादे किए गए हैं?
नीतीश कुमार की सरकार का दावा है कि बिहार के लिए बनी औद्योगिक नीति 2016 के तहत 3,800 से ज्यादा निवेश प्रस्ताव आए हैं, जिनमें से 780 इकाइयां शुरू हो चुकी हैं। 34,000 लोगों को रोजगार मिला है। अदाणी, अंबुजा सीमेंट्स और कोका-कोला जैसे बड़े निवेशक बिहार में निवेश कर रहे हैं। सरकार ने 3,000 एकड़ का लैंड बैंक और 24 लाख वर्ग फीट के प्लग-एंड-प्ले शेड तैयार किए हैं। हाल ही में शुरू की गई रिन्यूएबल एनर्जी पॉलिसी 2025 से 1.25 लाख नौकरियां सृजित करने का दावा किया गया है।
वादों पर RJD बनाम JDU की जंग
RJD ने नीतीश की घोषणाओं को नकलची शासन करार दिया और कहा कि NDA 17 साल की निष्क्रियता के बाद RJD के वादों की नकल कर रहा है। तेजस्वी ने कहा, 'बिहार के युवा नौकरी चाहते हैं, नाटक नहीं।' पार्टी का कहना है कि NDA ने 20 साल में नौकरियों पर कुछ नहीं किया। RJD इसे चुनावी मुद्दा बनाएगा।
यह भी पढ़ें: बिहार के लिए 'जमाई आयोग' क्यों मांग रही RJD? परिवारवाद पर नया बवाल
एनडीए को क्यों जीत पर है भरोसा?
जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा है, 'साल 2005 से 2014 तक केंद्र में विपक्ष की सरकार के बावजूद हमने 8 लाख नौकरियां दीं। पिछले 5 साल में 12 लाख नौकरियां और 39 लाख रोजगार के अवसर दिए। नीतीश जो कहते हैं, वो करते हैं।'
नौकरियों पर रार, BJP और कांग्रेस स्टैंड क्या है?
RJD की सहयोगी कांग्रेस ने 'नौकरी दो या सत्ता छोड़ो' यात्रा के जरिए 5 लाख रिक्त पदों और समान काम के लिए समान वेतन की मांग उठाई। राहुल गांधी और कन्हैया कुमार ने बेरोजगारी को असमानता और पलायन से जोड़ा। BJP ने NDA के 10 लाख नौकरियों के रिकॉर्ड पर जोर देते हुए RJD के वादों को लोकलुभावन जुमला करार दिया।
यह भी पढ़ें: समता पार्टी से JDU तक: बिहार में नीतीश ने कैसे पलटी थी सियासी बाजी?
अब जाकर रोजगार बन गया है मुद्दा
बिहार में रोजगार का सवाल अब आंकड़ों से आगे बढ़कर जनता की जुबान पर है। सभी दल अपने-अपने वादों और रिकॉर्ड के साथ मैदान में हैं। यह देखना बाकी है कि मतदाता किसके वादों पर भरोसा जताएंगे।