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नए जिले की घोषणा करना आसान लेकिन धरातल पर उतारना टेढ़ी खीर, जानिए वजह

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने हांसी को अलग जिला बनाने की घोषणा की है। नया जिला बनाना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में होता है और इसे एक सियासी हथियार की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है।

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नायब सिंह सैनी । Photo Credit: PTI

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हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंब सैनी ने 16 दिसंबर को हिसार जिले के हांसी क्षेत्र को नया जिला बनाने की घोषणा की है। उन्होंने एक रैली में कहा कि एक हफ्ते के अंदर हांसी को जिला बनाने की अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। इसके साथ ही अब राज्य में कुल 23 जिले हो जाएंगे। इस घोषणा के बाद नए जिलों को बनाने को लेकर बहस शुरू हो गई है। कई राज्यों के उदाहरण से यह कहा जा सकता है कि नए जिले की घोषणा करना तो आसान है लेकिन इसे धरातल पर उतारना मुश्किल है। नए जिले के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य चीजों की जरूरत होती है, जिसको पूरा करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। 

 

नए जिले का गठन करना या मौजूदा जिलों की सीमाओं को बदलने और समाप्त करने का अधिकार राज्य सरकार का है। नए जिले से संबंधित कार्यकारी आदेश जारी करके या फिर राज्य विधानसभा में कानून पारित करके नया जिला बनाया जा सकता है। कई राज्य आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना जारी करके नए जिले बनाते हैं। नए जिले बनाने में केंद्र सरकार की सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं होती है। राज्य सरकारें अंतिम फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होती हैं। हालांकि, अगर किसी रेलवे स्टेशन का नाम बदलना है तो इसके लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होती है। इसके अलावा अगर जिले की सीमा में स्थित किसी अन्य केंद्रीय संस्थान का नाम बदलना है तो इसके लिए भी केंद्र सरकार की अनुमति की जरूरत होती है। 

 

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कैसे बनाए जाते हैं नए जिले?

नए जिले बनाने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है। इसके लिए सबसे पहले एक प्रस्ताव तैयार किया जाता है। राज्यों में यह प्रस्ताव राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार तैयार करती है। कई बार इस तरह के प्रस्ताव स्थानीय प्रशासन, संगठन, राजनेता और सामाजिक संगठन भी सरकार को भेजते हैं। हरियाणा में हांसी को नया जिला बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी और कुछ साल पहले ही इसे पुलिस जिला घोषित किया गया था। 

 

एक बार जब प्रस्ताव तैयार हो जाता है इसके बाद यह देखा जाता है कि क्या नए जिले को बनाना प्रैक्टिकल है या नहीं। इसमें यह भी देखा जाता है कि नए जिले की जरूरत है या नहीं। इसके अलावा इलाके की जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्र, प्रशासनिक सुविधा और संसाधनों की उपलब्धता आदि का अध्ययन किया जाता है। इसके बाद राजनीतिक दलों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और समाजिक संगठनों जैसे अलग-अलग सामाजिक संगठनों के साथ भी विमर्श किया जाता है।

 

सरकार सभी पहलुओं पर चर्चा करने के बाद नए जिलों की सीमा निर्धारित की जाती है। इसके बाद सरकार एक आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना जारी करती है। अधिसूचना जारी होने के बाद जिला बनाने के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य चीजों पर काम शुरू किया जाता है। इस चरण में नए जिले में प्रशासनिक ऑफिस, पुलिस स्टेशन, अस्पताल, स्कूल और अन्य जरूरी सुविधाएं स्थापित की जाती हैं। इसके लिए बजट और जमीन निर्धारित करने में सरकारों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। 

 

जिस तरह से एक राज्य, देश या परिवार के बंटवारे के समय संपत्ति का भी बंटवारा किया जाता है, ठीक उसी तरह नया जिला बनाने के समय भी संपत्ति का बंटवारा किया जाता है। नए जिले और पुराने जिले के बीच संपत्ति और संसाधनों का बंटवारा किया जाता है। जब सारा काम पूरा हो जाता है उसके बाद राज्यों में राज्यपाल से मंजूरी ली जाती है और केंद्र शासित प्रदेशों में गृह मंत्रालय इसे मंजूरी देता है। राज्यपाल की मंजूरी के बाद जिले में अधिकारियों और स्टाफ को नियुक्त किया जाता है।

 

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क्यों बनाया जाता है नया जिला?

नया जिला बनाने के लिए मुख्य तर्क यह है कि छोटे जिले शासन-प्रशासन को अच्छे से चलाने के लिए बेहतर होते हैं। अगर प्रशासनिक क्षेत्र ज्यादा बड़ा होता है तो कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में देरी होती है और जिला प्रशासन पर काम का ज्यादा दबाव पड़ता है। हर एक नागरिक तक प्रशासन की पहुंच बनाने के लिए भी छोटे जिले सही रहते हैं। इसके साथ ही माना जाता है कि विकास कार्यों में तेजी लाने के लिए भी नए जिलों का गठन जरूरी है। छोटे जिलों में अधिकारियों के अंडर छोटा क्षेत्र होगा और काम का दबाव कम होगा जिससे विकास कार्यों पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकता है। 

 

नए जिलों की घोषणा करना एक राजनीतिक हथियार भी बन चुका है और सियासी दल बीते एक दशक से इसका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। मध्य प्रदेश से लेकर, राजस्थान गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों में नए जिले बनाना राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। राजस्थान में गहलोत सरकार ने चुनावों से ठीक पहले नए जिलों की घोषणा कर लोगों को लुभाने की कोशिश की थी। इसके अलावा भी स्थानीय लोगों को खुश करने के लिए राजनीतिक दल नए जिलों को बनाने के पक्ष में रहते हैं। हरियाणा में हांसी को अलग जिला बनाने की मांग भी जिले के स्थानीय नेता लंबे समय से कर रहे थे।

नए जिले को धरातल पर उतारना मुश्किल

राजस्थान में साल 2023 में उस समय की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी सरकार का कार्यकाल खत्म होने से कुछ महीने पहले ही 17 नए जिले बनाने की घोषणा की थी। राजस्थान में कुल 50 जिले हो गए थे। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने रिव्यू करने के बाद गहलोत सरकार के इस फैसले को पलट दिया था। गहलोत सरकार के समय बनाए गए 9 नए जिलों को खत्म कर दिया गया था।

 

बीजेपी सरकार ने कहा था कि इसकी उपयोगिता नहीं थी। अगर सरकार इन सभी जिलों को रखती तो सरकार पर आर्थिक दबाव बढ़ जाता। नए जिलों की घोषणा करना जितना आसान है उतना ही मुश्किल उन्हें धरातल पर उतारना है। नए जिले की घोषणा तो राजपत्र पर अधिसूचना जारी करने हो सकती है लेकिन इसके लिए हजारों करोड़ का बजट, अधिकारी, स्टाफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है। इसके अलावा संसाधनों के बंटवारे के दौरान नए और पुराने जिले में टकराव की संभावनाएं भी बनी रहती हैं।

 

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बड़े जिलों को बांटकर छोटे जिले बनाने से ही मकसद पूरा नहीं होता। छोटे जिलों को वित्तीय आजादी मिलना बहुत जरूरी है। नए जिले बनाने के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास भी जरूरी होता है। अगर किसी जिले का बंटवारा करके दो जिले बनाए जाते हैं तो उस जिले का मुख्यालय, पुलिस मुख्यालय, जिला अस्पताल, कोर्ट और अन्य जरूरी सरकारी ऑफिस बनाने होते हैं। नया जिला बनाने का एक सबसे बड़ा फायदा यही है कि आम लोगों की सरकारी ऑफिस तक पहुंच आसान हो जाती है। इसके अलावा सड़क, बिजली, पानी जैसी जरूरी सुविधाओं में भी सुधार होता है। संसाधनों पर कम बोझ पड़ता है। 

 

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ज्यादा अधिकारियों और स्टाफ की जरूरत

जिला बनाने के लिए जब राज्यपाल की मंजूरी मिल जाती है, उसके बाद सबसे पहले सरकार संबंधित जिले में जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक सहित अन्य जिला स्तरीय अधिकारियों की नियुक्ति करती है। नियुक्ति के बाद ये सभी अधिकारी जिले के कामकाज को देखते हैं और विकास के लिए जरूरी प्रस्ताव सरकार को भेजते हैं। नया जिला बनने से राज्य में अधिकारियों की मांग बढ़ जाती है। इसके साथ ही सरकारी ऑफिस में स्टाफ की मांग भी बढ़ जाती है। इस मांग को पूरा करने के लिए नई नियुक्तियां और पुराने स्टाफ का बंटवारा करके की जाती है।

राज्य का खर्च बढ़ेगा

नया जिला बनाने में कितना खर्च आएगा यह कई बातों पर निर्भर करता है। नया जिला बनाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है। अगर जिले में जिला मुख्यालय के रूप में काम करने के लिए कोई शहर नहीं है तो सरकार को पहले एक शहर बसाना होगा। इसके अलावा जिला मुख्यालय, कोर्ट, जिला परिषद का ऑफिस, एग्रीकल्चर, एजुकेशन और हेल्थ डिपार्टमेंट की इमारतें बनानी होंगी। इस सब में बहुत ज्यादा खर्च हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, एक नया जिला बनाने में कम से कम करीब 200 करोड़ रुपये का खर्च आता है। इसके अलावा स्टाफ और अधिकारियों की सैलरी और अन्य खर्चे भी सरकार पर बोझ बढ़ाते हैं। 

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