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'लोकल टू ग्लोबल', बिहार क्यों बन रहा 'रेल इंजन एक्सपोर्ट हब'?

भारत ने पहली बार किसी विदेशी देश को अपना बना हुआ इलेक्ट्रिक इंजन भेजा है। बिहार में बना यह लोकोमोटिव देश की मेहनत, तकनीक और आत्मनिर्भरता की रफ्तार दिखाता है।

India locomotive train

इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव ट्रेन, Photo Credit: X

कभी सिर्फ खेती-बाड़ी और माइग्रेशन के लिए पहचाना जाने वाला बिहार अब 'मेक इन इंडिया' की बड़ी मिसाल बन गया है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मढ़ौरा में बने भारत के पहले निर्यात के लिए तैयार 'मेड इन इंडिया' इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस लोकोमोटिव को पश्चिम अफ्रीका भेजा जाएगा। यानी अब भारत केवल अपने देश के लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी ट्रेनें और इंजन बना रहा है। 

 

यह पहली बार है जब भारत ने किसी दूसरे देश को अपना बनाया हुआ इलेक्ट्रिक इंजन एक्सपोर्ट किया है। यह इंजन पूरी तरह बिहार के मढ़ौरा प्लांट में तैयार हुआ है, जो दिखाता है कि अब छोटे शहर भी ग्लोबल लेवल पर कमाल कर रहे हैं। यह कदम 'मेक इन इंडिया से लोकल टू ग्लोबल' तक के सफर का बड़ा पड़ाव है। 

बिहार ही क्यों?

बिहार में सस्ती लेबर, तेजी से बनता इन्फ्रास्ट्रक्चर और केंद्र की स्पेशल पॉलिसी ने इसे मैन्युफैक्चरिंग हब में बदलना शुरू कर दिया है। भारत आज दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है लेकिन अब वह मशीनें और टेक्नोलॉजी भी एक्सपोर्ट कर रहा है। इससे देश की इकोनॉमी को बूस्ट, नई नौकरियों का रास्ता और ग्लोबल पहचान- तीनों मिल रहे हैं।

 

 

क्या है इसकी खासियतें?

प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के मुताबिक, शुक्रवार को मढ़ौरा में बने पहले निर्यात लोकोमोटिव को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। यह पहला मौका है जब भारत में बना कोई रेल इंजन विदेश भेजा जा रहा है। रेलवे बोर्ड में सूचना और प्रचार के कार्यकारी निदेशक दिलीप कुमार ने बताया कि पहले मढ़ौरा प्लांट सिर्फ भारतीय रेलवे के लिए इंजन बनाता था लेकिन अब इसकी क्षमता इतनी बढ़ गई है कि दूसरे देशों को भी इंजन भेजे जा सकें।

 

गिनी को मिलेंगे 150 इंजन

भारत को गिनी (पश्चिम अफ्रीका) से एक बड़ा ऑर्डर मिला है। अगले तीन साल में गिनी को 150 इंजन भेजे जाएंगे, जो उनके लौह अयस्क (Iron Ore) की खदानों में काम आएंगे।

 

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इंजन की खूबियां क्या हैं?

  • यह हाई हॉर्सपावर इंजन हैं, यानी बहुत ताकतवर
  • इनमें एडवांस एसी ड्राइव टेक्नोलॉजी है
  • माइक्रोप्रोसेसर से कंट्रोल होने वाला सिस्टम है
  • ड्राइवर के लिए आरामदायक और स्मार्ट डिजाइन वाली कैब है
  • खास बात यह है कि ये इंजन ब्रेक लगाने पर भी बिजली बना सकते हैं

कितने की डील हुई?

इन 150 इंजनों की कीमत लगभग 3,000 करोड़ रुपये है।

अब तक क्या बना है?

मढ़ौरा प्लांट शुरू होने के बाद अब तक भारतीय रेलवे के लिए 726 इंजन बनाए जा चुके हैं।

 

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कौन बना रहा है ये इंजन?

यह प्रोजेक्ट वाबटेक इंडिया और भारतीय रेलवे का जॉइंट वेंचर है। इसमें वाबटेक की 75% और रेलवे की 25% हिस्सेदारी है। इन इंजनों का इस्तेमाल गिनी की सिमंडौ माइनिंग प्रोजेक्ट में किया जाएगा, जो दुनिया की सबसे बड़ी लौह अयस्क परियोजनाओं में से एक मानी जाती है।

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