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लाल आतंक का गढ़ 'कर्रेगुट्टा पहाड़', जहां जवानों ने ढेर किए 31 नक्सली

ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के तहत सुरक्षा बलों ने कर्रेगुट्टा पहाड़ पर 21 दिनों में 31 नक्सलियों को मार गिराया। इस निर्णायक कार्रवाई के बाद सुरक्षाबलों ने इलाके पर कब्जा करते हुए वहां तिरंगा फहराया।

naxal hub Karreguttalu Hills

सांकेतिक तस्वीर, Photo Credit: freepik

छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर स्थित कर्रेगुट्टा पहाड़ अब नक्सल आतंक की पहचान नहीं, बल्कि सुरक्षाबलों की ऐतिहासिक सफलता का प्रतीक बन चुका है। एक समय यह इलाका नक्सलियों का मजबूत गढ़ हुआ करता था लेकिन हाल ही में किए गए ऑपरेशन 'ब्लैक फॉरेस्ट' ने इसे पूरी तरह तबाह कर दिया। 24 अप्रैल से 7 मई, 2025 तक चले इस संयुक्त अभियान में छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र के सुरक्षाबलों ने मिलकर कर्रेगुट्टा पहाड़ को चारों ओर से घेरते हुए 31 नक्सलियों को ढेर कर दिया।

 

मारे गए नक्सलियों में 16 महिलाएं और 15 पुरुष शामिल थे। ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों ने 400 से अधिक IED विस्फोटक उपकरण, लगभग 2 टन विस्फोटक सामग्री, 40 हथियार और चार हथियार निर्माण यूनिट्स को नष्ट कर दिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बड़ी कार्रवाई की जानकारी देते हुए कहा, 'यह वही पहाड़ है जहां कभी PLGA बटालियन 1, DKSZC, TSC और CRC जैसी नक्सली संस्थाओं का मुख्यालय था। आज वहां तिरंगा लहरा रहा है।'

 

कर्रेगुट्टा के घने जंगल, दुर्गम पहाड़ी इलाका और सीमावर्ती स्थिति ने इसे लंबे समय तक नक्सलियों का ठिकाना बनाए रखा। यह इलाका न केवल रणनीतिक तरीके से महत्वपूर्ण था, बल्कि नक्सलियों का गढ़ भी बन गया था, जिसे अब सुरक्षाबलों ने ध्वस्त कर दिया है। अब सवाल उठता है- आखिर कैसे बना कर्रेगुट्टा पहाड़ नक्सलियों का गढ़? और क्या यह सफलता नक्सलवाद के खात्मे की शुरुआत है?

 

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कर्रेगुट्टा पहाड़ क्यों बना नक्सलियों का गढ़?

कर्रेगुट्टा पहाड़ घने जंगलों से घिरा हुआ है। यह 5 से 20 किमी चौड़ा क्षेत्र है, जो छत्तीसगढ़, तेलंगाना, और महाराष्ट्र की सीमाओं पर फैला हुआ है। यह 5,000 फीट ऊंचा पहाड़ी क्षेत्र घने जंगलों, नदियों, और कठिन रास्तों से भरा है, जिससे सुरक्षाबलों की पहुंच मुश्किल थी। पहाड़ों और जंगलों की आड़ में नक्सली आसानी से छिप सकते हैं और अपने गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं। उच्च तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस और डिहाइड्रेशन जैसी चुनौतियों ने इसे सुरक्षाबलों के लिए और भी जटिल बना दिया था। यह क्षेत्र नक्सलियों की पीपुल्स लिबरेशन ग्वेरिला आर्मी (PLGA) की बटालियन नंबर 1 और अन्य संगठनों जैसे DKSZC, TSC, और CRC का एकीकृत मुख्यालय था।

 

ट्रेनिंग और हथियार बनाए जाते थे

यहां नक्सली ट्रेनिंग लेते थे, हथियार बनाते थे और अपनी रणनीति तैयार करते थे। यह उनके लिए एक तरह का किला था। खुफिया जानकारी के अनुसार, शीर्ष नक्सली नेता जैसे हिडमा, देवा, और सुधाकर इस क्षेत्र में छिपे थे, जिसने इसे नक्सलियों की गतिविधियों का केंद्र बना दिया। 

 

कर्रेगुट्टा पहाड़ के जंगलों में कई आदिवासी गांव हैं। नक्सली इन गांवों में डर और कभी-कभी समर्थन के जरिए अपनी पकड़ बनाए रखते थे। हालांकि, हाल के वर्षों में सुरक्षाबलों की सक्रियता और ग्रामीणों का समर्थन कम होने से नक्सलियों की ताकत कमजोर हुई है। इस क्षेत्र में सड़कें, बिजली, और बुनियादी सुविधाएं सीमित हैं। इससे पहले सुरक्षाबलों की मौजूदगी कम थी, जिसका फायदा नक्सलियों ने उठाया। बता दें कि नक्सली इस क्षेत्र को अपने 'लाल गलियारे' का हिस्सा मानते थे, क्योंकि वे मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा के नाम पर हिंसा को उचित ठहराते थे।

 

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सुरक्षाबलों की कार्रवाई और गढ़ का पतन

ऑपरेशन संकल्प और ब्लैक फॉरेस्ट

 

सुरक्षाबलों ने कर्रेगुट्टा पहाड़ पर अब तक का सबसे बड़ा नक्सल विरोधी अभियान चलाया, जिसे 'ऑपरेशन संकल्प' और 'ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट' नाम दिया गया। 10,000 से अधिक जवानों, ड्रोन, हेलीकॉप्टरों, और सैटेलाइट इमेज की मदद से नक्सलियों को चारों ओर से घेरा गया। 21 दिनों में 31 नक्सलियों को मार गिराया गया, जिसमें 16 महिला नक्सली भी शामिल थीं।

 

जीत के बाद सुरक्षाबलों ने कर्रेगुट्टा की चोटी पर तिरंगा फहराकर नक्सलियों के इस गढ़ को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया। इस अभियान ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। 
बता दें कि अमित शाह ने कहा है कि 31 मार्च 2026 तक भारत को नकस्ल मुक्त करने का लक्ष्य है। अब सुरक्षाबलों को स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने और विकास कार्यों को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा, ताकि नक्सलवाद की जड़ें पूरी तरह खत्म हो सकें।

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