शिवपूजन सिंह, प्रयागराज। विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक धार्मिक और सांस्कृतिक समागम महाकुंभ में शामिल होने आए श्रद्धालु जहां एक और गंगा जमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी स्थल संगम में श्रद्धा की डुबकी लगाते हैं। धर्म अध्यात्म से आत्मसात होते हैं। मेला क्षेत्र में छोटे बड़े साधु संत महंत शंकराचार्य अपने अपने गुरु आचार्य से आशीर्वचन लेते हैं। वहीं संगम की रेती पर भारतीय संस्कृति से जुड़ी परंपराओं और मान्यताओं के साथ ही अनेक विरले व्यक्तित्व वाले बाबाओं से भी मिलते हैं। जो अपने ढंग से अपने-अपने आराध्य देवी देवता के प्रति समर्पित होकर पूजा पाठ, योग, हठयोग तक करते हैं।
जहां संगम की रेती में बड़े-बड़े आचार्य, धर्माचार्य, शंकराचार्य पीठाधीश्वर श्री महंत आदि विशाल भव्य दिव्य शिविर पंडाल लगाकर करोड़ों भक्तों के मध्य धर्म अध्यात्म भारतीय सनातन संस्कृति ज्ञान प्रचार प्रसार करते हैं। वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो बड़े सादगी के साथ राम नाम के प्रचार में स्वयं को अर्पित कर देते हैं। यही अनेकता में एकता ही महाकुंभ की सुंदरता दिव्यता है। कुछ इसी तरह के विरले सादगी वाले व्यक्तित्व में शामिल हैं। राम राम सा बाबा यानी राजस्थान से आए रामदीन जो कि श्रद्धालु, स्नानार्थी, कल्पवासी, पर्यटक संगम आने जाने वाले लोगों से मिलकर राम राम सा कहने की धुन में रमे होते हैं। जिस अवस्था में लोग बुजुर्ग लाचार होकर चारपाई पकड़ लेते हैं। उस बुजुर्ग अवस्था में 77 वर्षीय रामदीन राजस्थान की नागौर जिले लाडलू तहसील के पीपनी गांव से महाकुंभ 2025 में फिर से आ चुके हैं। रामदीन पिछले 25 वर्षों से लगातार माघ मास में प्रयागराज के संगम क्षेत्र में श्रद्धालुओं से 'राम राम सा' कहने आ रहे हैं।
कैसे हुई शुरुआत?
70 साल से ज्यादा उम्र के रामदीन यानी राम राम सा बाबा ने बताया कि पहली बार वह वर्ष 2001 में लगे महाकुंभ में आए थे। वह करीब 2 माह तक मेले में रुके। करीब 4 बजे भोर में वह संगम स्नान करने जाते थे तो पूरे मार्ग लोगों से 'राम राम सा' कहते हुए संगम तक पहुंचते थे। फिर वहां देखते थे कि जितने लोग भी स्नान करते थे सब 'राम राम राम राम राम' करते हुए पूजा पाठ करते थे। इसी को देखते हुए रामदीन वहां स्नान करके सूर्योदय तक राम-राम सा, राम राम सा करते हुए लोगों को राम नाम की भक्ति में रमे रहने को कहते थे। तभी से उन्हें 'राम राम सा' की धुन लगी। वह घूम-घूमकर लोगों से राम राम सा, राम राम सा कहते हैं।
वर्ष 2001 के बाद से रामदीन लगातार दो माघ मास शुरू होने से पहले ही संगम प्रयागराज आ जाते हैं। उनका कहना है कि 'राम राम सा' मतलब होता है राम-राम जी। राम राम सा बाबा खेती किसानी से जुड़े हैं। एक बेटा सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील भी है। भरा पूरा परिवार है लेकिन महाकुंभ में राम राम सा करने वह संगम की रेती पर फिर से आ गए हैं। राम राम सा बाबा यानी रामदीन बाबा कहते है इस अवस्था में भी उन्हें ठंड आलस या थकान नहीं लगती है। वह सुबह से लेकर देर रात तक संगम घाट पर स्नान करने वालों श्रद्धालुओं से राम राम सा! राम राम सा कहते हैं फिर कल्पवास क्षेत्र में भी जाते हैं छोटी रेहड़ी पटरी दुकानदारों से लेकर हर आने जाने वाले लोगों से राम राम सा! राम राम सा! करते रहते हैं। बताते हैं कि उनका गांव बहुत दूर है लेकिन गांव के लोग नहीं आते लेकिन दो माह बाद उनके लौटने का इंतजार करते हैं। गांव में पहुंचते ही उनकी चौपाल लग जाती है और संगम क्षेत्र, यहां के किस्सा और कहानियों को साझा करते हैं।