तमिलनाडु की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) में गुरुवार को उस समय खलबली मच गई जब इसके संस्थापक एस रामदोस ने अपने बेटे डॉ. अंबुमणि रामदोस को पार्टी से निकालने की घोषणा की। कार्यकर्ताओं को दिए गए निर्देश में, वरिष्ठ नेता एस रामदोस ने उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री से कोई संपर्क न रखने की भी हिदायत दी।
डॉ. रामदोस ने अंबुमणि पर वरिष्ठ नेताओं की सलाह और अपने मार्गदर्शन की अवहेलना करने का आरोप लगाया। यह तीखी टिप्पणी पार्टी के भीतर महीनों से चल रहे तीखे संघर्ष को और बढ़ा देती है।
दोनों नेताओं के बीच पिछले साल से दरार बढ़ती जा रही है। डॉ. एस रामदोस जहां लगातार यह दावा कर रहे हैं कि वह पार्टी के संविधान के तहत विधिवत निर्वाचित अध्यक्ष हैं, और उनका कहना है कि चुनाव आयोग भी इस पद को मान्यता देता है, वहीं उनके बेटे ने अथॉरिटी को ऊपर रखने की कोशिश की।
मई में, एस रामदोस ने अंबुमणि पर तीखा हमला बोला था और उन पर पार्टी के डेवलेपमेंट में बाधा डालने और उन्हें जमीनी कार्यकर्ताओं से दूर करने का आरोप लगाया था। अफसोस जताते हुए उन्होंने कहा, 'सच कहूं तो असली गलती मेरी ही थी। मैंने उन्हें इतनी कम उम्र में, महज़ 35 साल की उम्र में, केंद्रीय मंत्री बनाया दिया था। लेकिन अंबुमणि ने ही मामले को तूल पकड़ाया।'
नियुक्ति को लेकर टकराव
दिसंबर 2024 में यह कलह उस वक्त और गहरा गई जब डॉ. रामदोस ने अपने पोते मुकुंदन को पार्टी में एक वरिष्ठ पद पर नियुक्त किया। इस कदम की वजह से अंबुमणि का गुस्सा फूट पड़ा और पुडुचेरी में एक आम परिषद की बैठक के दौरान अंबुमणि ने इसके विरोध में मेज़ पर माइक्रोफ़ोन पटक दिया। बाद में अंबुमणि ने कहा कि इस कदम ने 'एक पल में पार्टी को विभाजित कर दिया।'
उसके बाद से पिता-पुत्र के बीच यह झगड़ा बढ़ता ही गया और दोनों नेता सार्वजनिक तौर पर अक्सर एक-दूसरे की बातों का उल्लंघन करते हुए स्वतंत्र रूप से पार्टी पदाधिकारियों की नियुक्ति और बर्खास्तगी करते रहे।
बंट गई पार्टी
पिछले महीने, पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीएमके की विशेष आम परिषद ने एक प्रस्ताव पारित कर एस. रामदोस को फाउंडर प्रेसिडेंट के रूप में फिर से स्वीकार किया। फिर भी गतिरोध बना हुआ है, पिता और पुत्र ने महीनों तक बात नहीं की। इस बीच, पार्टी दो खेमों में बंट गई, जिससे पार्टी की संगठनात्मक ताकत और कमज़ोर हो गई है।