उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार 'स्कूल पेयरिंग पॉलिसी' लेकर आई है। इसके तहत जिन स्कूलों में 50 से कम छात्र हैं, उन्हें आसपास के स्कूलों से मर्ज किया जा रहा है। सरकार का दावा है कि इससे स्कूली शिक्षा बेहतर होगी।
हालांकि, इस पर राजनीतिक बवाल भी खड़ा हो गया है। विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर स्कूलों को बंद करने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। विपक्ष का यह भी कहना है कि इससे ग्रामीण बच्चे शिक्षा से दूर हो जाएंगे, क्योंकि स्कूलों की दूरी बढ़ जाएगी।
योगी सरकार जो स्कूल पेयरिंग की नीति लेकर आई है, उसके तहत 50 से कम छात्र वाले प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों को 1 किलोमीटर के दायरे में आने वाले स्कूलों के साथ मर्ज किया जाएगा।
ऐसा क्यों किया जा रहा है?
योगी सरकार का कहना है कि कोविड महामारी के बाद सरकारी स्कूलों में नामांकन में भारी कमी आई है। 2022-23 में 1.92 करोड़ बच्चे थे, जो अब घटकर 1 करोड़ रह गए हैं।
बेसिक एजुकेशन विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी दीपक कुमार का कहना है कि यह नीति हिमाचल प्रदेश और गुजरात की तर्ज पर है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है। दावा है कि स्कूलों को मर्ज करने से बुनियादी ढांचा मजबूत होगा और शिक्षकों की भी सही संख्या होगी।
सरकार के इस फैसले को अदालत में भी चुनौती दी गई। हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार के इस कदम को सही बताया और कहा कि इससे संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के सबूत नहीं है। सरकार भले ही अदालत में जीत गई हो लेकिन विपक्ष अब भी हमलावर है।
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विपक्ष का क्या है आरोप?
विपक्षी पार्टियों ने इस कदम पर सरकार को घेरा है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की अगुवाई में कांग्रेस, बसपा और आम आदमी पार्टी सहित लगभग सभी विपक्षी दल साथ हैं।
अखिलेश यादव ने सरकार के इस कदम को PDA यानी पिछड़े वर्ग, दलित और अल्पसंख्यकों को शिक्षा से वंचित करने की गहरी साजिश करार दिया है। राजधानी लखनऊ में लगे एक पोस्टर में सपा ने लिखा है, 'यह कैसा रामराज्य है? स्कूल बंद करो, शराब की दुकानें खोलो।'
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने 'मधुशाला नहीं, पाठशाला चाहिए' नारे के साथ 'स्कूल बचाओ अभियान' शुरू किया है। उन्होंने न्यूज एजेंसी PTI से कहा, 'हम इस कदम के खिलाफ कई जिलों में विरोध रैलियां कर रहे हैं। प्रभावित स्थानीय लोग भी हमारे साथ जुड़ रहे हैं और हम आने वाले दिनों में इन लोगों को न्याय दिलाने के लिए इस मुद्दे को उठाते रहेंगे।'
विधानसभा में भी इस मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को जमकर घेरा। विपक्ष के नेता माता प्रसाद पांडे ने आरोप लगाया कि सरकार ने 29 हजार स्कूलों का विलय कर दिया है और 10 हजार को बंद कर दिया गया है और दावा किया कि यह गरीबों को शिक्षा से वंचित करने वाला कदम बताया है।
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सरकार का क्या है कहना?
सरकार ने इस फैसले का बचाव किया है। विधानसभा में सीएम योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष की ओर से लगाए जा रहे स्कूलों को बंद करने के आरोपों को खारिज कर दिया।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, '2017 से पहले, सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढाँचे का अभाव था और स्कूल छोड़ने की दर देश में सबसे ज्यादा थी।' उन्होंने कहा, 'आज हम 22:1 छात्र-शिक्षक अनुपात बनाए रखने और बेहतर सुविधाएं देने के लिए स्कूलों का एकीकरण कर रहे हैं। यह शिक्षा को मजबूत कर रहा है, कमजोर नहीं।'
वहीं, बीजेपी ने समाजवादी पार्टी की ओर से चलाए जा रहे 'PDA पाठशाला' पर निशाना साधा है। बीजेपी एमएलसी और प्रदेश महासचिव सुभाष यदुवंश ने आरोप लगाते हुए कहा, सपा की PDA पाठशालाओं में A फॉर अखिलेश और D फॉर डिंपल पढ़ाया जा रहा है।
वहीं, राज्य के बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि किसी भी स्कूल को स्थायी रूप से बंद नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा, 'अगर विलय से छात्रों को आने-जाने में कठिनाई होती है तो इसे वापस लिया जा सकता है। खाली भवनों को 15 अगस्त तक बाल वाटिकाओं में तब्दील कर दिया जाएगा। शिक्षकों का कोई भी पद खत्म नहीं किया जाएगा।' उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो और शिक्षकों की भर्ती की जाएगी।
शिक्षकों का क्या है कहना?
योगी सरकार के इस कदम का विपक्ष तो विरोध कर ही रहा है। शिक्षकों ने भी इस पर सवाल उठाए हैं। शिक्षकों ने चेतावनी दी है कि स्कूल की दूरी बढ़ने के कारण कई बच्चे पढ़ाई छोड़ सकते हैं। एक शिक्षक ने PTI से बात करते हुए कहा, 'जब स्कूल दूर हो जाता है तो बच्चों का संपर्क टूट जाता है।' उन्होंने कहा कि उन्हें डर है कि कई बच्चे पढ़ाई छोड़ देंगे।