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UCC पर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पूछा का सवाल, क्या हो सकता है बदलाव?

हाई कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि क्या राज्य नए सिरे से यूसीसी को लेकर सुझाव आमंत्रित कर सकता है? ताकि जहां जरूरी हो, वहां बदलावों पर विचार कर हो सके।

Uniform Civil Code

फाइल फोटो।

उत्तराखंड सरकार ने महीने भर पहले समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड को राज्य में लागू कर दिया। इस बीच यूसीसी के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका उत्तराखंड हाई कोर्ट में दायर की गई है। 

 

गुरुवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि क्या राज्य नए सिरे से यूसीसी को लेकर सुझाव आमंत्रित कर सकता है? ताकि जहां जरूरी हो, वहां बदलावों पर विचार कर हो सके। 

 

जस्टिस मनोज तिवारी और आशीष नैथानी की खंडपीठ ने कहा, 'आप (सॉलिसिटर जनरल ) राज्य विधानमंडल पर आवश्यक परिवर्तन लाने के लिए दबाव डाल सकते हैं।' दरअसल, इस मामले में डॉ. उमा भट्ट, कमला पंत और मुनीश कुमार याचिकाकर्ता हैं। उनकी तरफ से सीनियर वकील वृंदा ग्रोवर ने हाई कोर्ट में यूसीसी के प्रावधानों को चुनौती दी है।

 

पुलिस स्टेशन को भेजी जाती है जानकारी

 

वकील ग्रोवर ने जनहित याचिका के पक्ष में तर्क देते हुए कोर्ट से कहा, 'यूसीसी अधिनियम, नियम और प्रपत्र एक कानूनी व्यवस्था स्थापित करते हैं, जो निगरानी और पुलिसिंग के साथ व्यक्तिगत जिंदगी में हस्तक्षेप करते हैं। हर जानकारी... तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन को भेजी जाती है। इस देश में, मेरी जानकारी स्थानीय पुलिस के पास क्यों होनी चाहिए?'

 

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इसपर कोर्ट ने कहा कि पुलिस का किसी के घर जाकर छानबीन करना उल्लंघन माना जाता है। कोई भी पुलिसकर्मी दरवाजा नहीं खटखटा सकता। क्या यह शक्ति पुलिस को यूसीसी के तहत दी गई है? क्या यूसीसी पुलिस को आपसे मिलने का अधिकार देता है?

 

'महिलाओं की स्थिति और भी बदतर होगी'
 
ग्रोवर ने कहा कि पुलिस के पास उचित कार्रवाई करने का अधिकार है, लेकिन यूसीसी के तहत इस कार्रवाई को परिभाषित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, 'कोई भी शख्स ये शिकायत कर सकता है कि यह व्यक्ति बिना रजिस्ट्रेशन के रह रहा है। यूसीसी महिलाओं से पूछता है कि क्या वे लिव-इन रिलेशनशिप को समाप्त कर रही हैं और क्या वे गर्भवती हैं। बच्चे की जानकारी निजी है और इसे अधिकारियों और पुलिस के हाथों में नहीं जाने दिया जा सकता। हम ऐसी स्थिति बनाने जा रहे हैं, जिससे महिलाओं की स्थिति और भी बदतर होगी और उन्हें हर दिन सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ेगा।'

 

1 अप्रैल को जवाब दाखिल करना होगा

 

इस पर पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से पूछते हुए कहा, 'क्या कानून का मसौदा तैयार करते समय आपके सुझाव आमंत्रित किए गए थे? क्या आप नए सिरे से सुझाव आमंत्रित कर सकते हैं? आप जहां भी बदलाव की जरूरत है, उस पर विचार कर सकते हैं और क्या हम इसे शामिल कर सकते हैं? आप राज्य विधानमंडल पर जरूरी बदलाव लाने के लिए दबाव डाल सकते हैं।'

 

इसके बाद अदालत ने उत्तराखंड सरकार से 1 अप्रैल को जवाब दाखिल करने को कहा।

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