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क्या है ऑपरेशन कालनेमि? असली और नकली की कैसे होगी पहचान?

10 जुलाई को उत्तराखंड में पुलिस ने साधु-संतों के वेश में घूमने वाले असामाजिक तत्वों को पकड़ना शुरू कर दिया है। इस अभियान को कालनेमि नाम दिया गया है। आइये जानते हैं इस पूरे ऑपरेशन के बारे में।

Operation Kalanemi.

उत्तराखंड का ऑपरेशन कालनेमि। (Photo Credit: PTI)

उत्तराखंड में 10 जुलाई को शुरू हुए 'ऑपरेशन कालनेमि' की खूब चर्चा है। अभी तक संतों की वेशभूषा में घूमने वाले 200 से अधिक फर्जी लोगों को पकड़ा जा चुका है। 1250 से अधिक संदिग्धों से पूछताछ की गई है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह के आदेश पर पूरे प्रदेश में पुलिस ने 'ऑपरेशन कालनेमि' कावड़ यात्रा से ठीक पहले शुरू की है। सीएम धामी का कहना है कि प्रदेश में कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं, जहां असामाजिक तत्व साधु-संतों का वेश धारण करके लोगों, विशेषकर महिलाओं से धोखाधड़ी करते हैं। इस वजह से यह ऑपरेशन शुरू किया गया है। आइए जानते हैं उत्तराखंड के ऑपरेशन कालनेमि के बारे में, इसे क्यों शुरू किया गया और कालनेमि नाम क्यों रखा गया?

 

उत्तराखंड सरकार ने ऑपरेशन का नाम राक्षस कालनेमि के नाम पर रखा है। हिंदू धर्मग्रंथों में इस राक्षस का जिक्र है। जब भगवान हनुमान जी संजीवनी लेने जा रहे थे, तभी कालनेमि ने छद्मवेश धारण करके उनका रास्ता रोकने की कोशिश की थी। वह अपनी माया से किसी का भी रूप रख लेता था। 

 

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क्यों शुरू किया गया ऑपरेशन?

सीएम धामी का कहना है कि आज कल पहचान छिपाकर साधु-संतों की वेशभूषा में लोगों को कुछ छद्म वेशधारी ठगते हैं। खासकर यह महिलाओं को निशाना बनाते हैं। इन छद्म वेशधारियों की मूल पहचान को उजागर करने की खातिर ऑपरेशन कालनेमि शुरू किया गया है। 14 जुलाई को उन्होंने एक्स पर एक वीडियो साझा किया और कैप्शन लिखा- 'छद्म वेशधारियों का उतरने लगा मुखौटा।' सीएम का कहना है कि इससे धार्मिक भावनाओं को आहत करने के अलावा सामाजिक सद्भाव और सनातन परंपरा की छवि को भी धूमिल किया जा रहा है।

 

उत्तराखंड के महानिरीक्षक नीलेश आनंद भरणे का कहना है कि पुलिस संदिग्धों से पूछताछ और सत्यापन का काम कर रही है। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में धार्मिक और सांस्कृतिक पवित्रता बनाए रखने के लिए ऑपरेशन कालनेमि चलाने का निर्देश दिया है। पुलिस अधीक्षक और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रैंक के सभी पुलिस अधिकारियों को कांवड़ियों का वेश धारण करने वाले शरारती तत्वों की पहचान करने का निर्देश दिया गया है।

किन धाराओं में दर्ज होता है केस?

सावन के पवित्र महीने में भगवान शिव के भक्तों का तांता उत्तराखंड में लगता है। कांवड़ यात्रा के बीच साधु-संतों के वेशभूषा में असामाजिक तत्व भी सक्रिय होते हैं। इनका धर्म से कोई नाता नहीं होता है। इन छद्म वेशधारियों को पुलिस ठगी, धोखाधड़ी और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार करती है।

छद्म वेशधारियों से खतरा क्या?

सरकार का तर्क है कि फर्जी वेशभूषा में अपराधी और असामाजिक तत्व हो सकते हैं। ठगी और धोखाधड़ी के अलावा भ्रामक गतिविधियों में संलिप्त हो सकते हैं।

 

  • सनातन परंपरा की छवि को नुकसान।
  • सामाजिक समरसता में बाधा।
  • धार्मिक भावनाओं को आहत करना।
  • लोगों के विश्वास को तोड़ना।
  • पहचान छिपाकर आस्था को चोट पहुंचाना।

ऑपरेशन का उद्देश्य क्या?

  • लोगों को धोखाड़ी से बचाना।
  • असामाजिक तत्वों की पहचान करना।
  • लोगों को गुमराह करने वालों को पकड़ना।
  • सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखना।
  • अनैतिक गतिविधियों पर लगाम लगाना।
  • धार्मिक स्थलों पर ठगी को रोकना।
  • धोखेबाजों को पकड़ना।
  • धार्मिक शिक्षाओं की रक्षा करना।

कैसे होगी असली और नकली की पहचान?

उत्तराखंड के कालनेमि ऑपरेशन पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि असली और नकली की पहचान कैसे होगी?अधिकांश मामलों में दस्तावेज के आधार और लोगों की शिकायत पर एक्शन लिया जाता है। मगर बहुत से लोग सिर्फ धार्मिक आस्था के आधार पर भगवा धारण करते हैं। उनके पास धर्म का इतना व्यापक ज्ञान भी नहीं होता है। वह जीवन पद्धति के तौर पर इसे स्वीकार करत हैं। कुछ बुजुर्ग एक निश्चित उम्र के बाद साधु-संन्यासी के तौर पर रहना पसंद करते हैं। ऐसे में पुलिस के सामने असली अनुयायी और छद्म वेशधारियों के बीच अंतर करने की चुनौती है। 

 

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जूना अखाड़े का मिला साथ

जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि ने कालनेमि ऑपरेशन का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि धार्मिक वेश का दुरुपयोग करने वाले ढोंगियों और आपराधिक तत्वों के खिलाफ यह एक साहसिक कदम है। उन्होंने इसे पूरे देश में लागू करने की मांग की। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने भी ऑपरेशन कालनेमि का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह सामाजिक और नैतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। 

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