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धान की खेती से भी ज्यादा पानी पी जाता है Chat GPT! समझिए पूरा गणित

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे बिजली और पानी की जरूरतें भी बढ़ती जा रही हैं। यही वजह है कि भारत ने भी अब इस दिशा में सोचना शुरू कर दिया है।

paddy vs ai

प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo: Bing AI

कहा जा रहा है कि 21वीं सदी का समय अब आर्टिफिशियल इंटेलिजिसेंस (AI) पर आधारित होगा। अभी भी बहुत सारे काम एआई से हो रहे हैं। चैट जीपीटी जैसे चैट बॉट कई कामों में लोगों की मदद कर रहे हैं। अब एक रिसर्च सामने आई है जिसमें यह खुलासा हुआ है कि Chat GPT जैसे मॉडल के काम करने के लिए भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है। पानी की खपत इतनी ज्यादा है कि यह भारत में धाने की खेती के लिए खर्च होने वाले पानी से भी ज्यादा है। सर्वर, मशीनों और कंप्यूटरों को चलाने के लिए बिजली की खपत भी बहुत ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस के लिए काम करने वाली मशीनों और कंप्यूटरों को ठंडा रखने के लिए पानी का इस्तेमाल बड़े स्तर पर होता है। इस रिसर्च के मुबातिक, चैट जीपीटी को अगर 100 शब्द भी लिखने होते हैं तो इतने काम के लिए लगभग 3 लीटर पानी खर्च हो जाता है।

 

यूनिवर्सिटी ऑप कैलिफोर्निया ने जेनरेटिव एआई पर चलने वाले इन मॉडल के खर्च पर एक स्टडी की है। इसी स्टडी में इन बातों का खुलासा किया गया है। स्टडी के मुताबिक, अलग-अलग जगहों के हिसाब से पानी का खर्च अलग-अलग होता है। कहीं बिजली सस्ती पड़ती है तो कहीं बिजली की खपत बहुत ज्यादा होती है। उदाहरण के लिए टेक्सास में पानी की खपत बहुत कम होती है। टेक्सास में अगर चैट जीपीटी को 100 शब्दों का एक ईमेल लिखना हो तो पानी का खर्च सिर्फ 235 मिली लीटर होता है। वहीं वॉशिंगटन में 1409 मिली लीटर खर्च हो जाते हैं।

धान vs AI का गणित क्या है?

 

धान की खेती पानी पर ही आधारित होती है। यही वजह है कि भारत में धान की खेती करने वाले राज्यों में भूजल की खपत बहुत ज्यादा होती है। नदियों, नहरों और अन्य प्राकृतिक स्रोतों की कमी वाले राज्यों में इसी के चलते भूजल स्तर में कमी भी आई है। दरअसल, लगभग एक किलो धान पैदा करने के लिए 4000 से 5000 लीटर पानी खर्च हो जाता है। वहीं, AI के लिए बिजली और पानी पर खूब खर्च करना पड़ रहा है। डेटा सेंटर को ठंडा रखने, AI मॉडल को ट्रेन करने और हर क्वेरी पर होने वाले खर्च की मात्रा बहुत ज्यादा है।

 

दरअसल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड मॉडल हों, सर्च इंजन हों या इंटरनेट के लिए इस्तेमाल में आने वाले वेब सर्वर, इन सबका काम बड़े-बड़े डेटा सेंटर के जरिए होता है। ये डेटा सेंटर 24 घंटे चलते रहते हैं इसलिए इनमें लगी मशीनों और सर्वर को ठंडा रखने के लिए पानी का इस्तेमाल खूब होता है। इसके चलते ये उन शहरों की बिजली और पानी का खूब इस्तेमाल करते हैं, जहां इन्हें बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, मेटा ने अपने LLaMA-3 मॉडल को जब तक ट्रेन किया तब तक 2.2 करोड़ लीटर पानी खर्च हो गया। इतने पानी में लगभग दो टन धान पैदा किया जा सकता है।

 

पानी ही नहीं, बिजली की खपत के मामले में भी चैट जीपीटी की जरूरतें बहुत ज्यादा हैं। इस रिसर्च के मुताबिक, अगर 10 लोग हफ्ते में एक बार चैट जीपीटी का इस्तेमाल साल भर के लिए करें तो लगभग 1.21 लाख मेगावाट-आवर बिजली खर्च होगी जो कि लगभग 6.7 लाख लोगों की 20 दिन की जरूरत के बराबर है। 

भारत में भी हो रही तैयारी

 

बता दें कि भारत में भी आत्मनिर्भरता सुनिश्चित के लिए AI बेस्ड डेटा सेंटर को समृद्ध बनाने की कोशिशें चल रही हैं। इसी क्रम में आईटी मिनिस्ट्री ऊर्जा मंत्रालय और अन्य विभागों से बातचीत कर रही है कि वे मिलकर एक रोडमैप तैयार करें ताकि भविष्य में डेटा सेंटरों के लिए बिजली की सप्लाई सुनिश्चित की जा सके। एक अनुमान के मुताबिक, डेटा सेंटरों के बढ़ने के साथ ही अगले दो साल में भारत में बिजली की जरूरत दोगुना बढ़ जाएगी।

 

वैश्विक स्तर पर ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए मेटा, फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां न्यूक्लियर प्लांट से बात कर रही हैं कि ताकि सीधे उनसे बिजली खरीद सकें। भारत सरकार AI बेस्ड डेटा सेंटर बनाने के लिए सब्सिडी देने पर भी विचार कर रही है ताकि भारत में एआई बेस्ड इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया जा सके।

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