दुनिया में मेंढकों की 7000 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। अगर आप अपने आस-पास नजर दौड़ाएंगे तो एक से बढ़कर इसकी किस्में दिखेंगी। एक मेंढक हल्के पीले रंग का बड़ा सा, दूसरा थोड़ा मटमैला, तीसरा एकदम छोटा और न जाने इसके कितने रूप हैं। क्या आप जानते हैं कि ये मेंढक, सर्दियों में कहां छिप जाते हैं, ये जमीन में ईंट-पत्थरों में दबने के बाद भी कैसे महीनों तक जिंदा रहते हैं और आसानी से सांस लेते हैं?
दूसरे जीव जहां बिना कुछ खाए-पीए एक सप्ताह न जी पाएं लेकिन मेंढक कैसे जिंदा रह लेते हैं। इसके पीछे छिपी है मेंढक की एक ऐसी तकनीक, जो अगर इंसान कर पाता तो जीने की तमाम जद्दो-जहद, पचड़े, उलझनों से उसका पीछा छूट जाता। आखिर क्या बात है कि मेंढक इतनी कलाकारी कर पाता है, आइए जानते हैं।
कैसे ईंट-पत्थर में दबकर भी जिंदा रह लेता है मेंढक?
मेंढक, उभयर प्राणी है। अंग्रेजी में इस वर्ग के अंतर्गत आने वाले प्राणियों को एम्फीबिया कहते हैं। ये पानी में भी उतने ही बेहतर तरीके से रह सकते हैं, जैसे सतह पर। उभयचर होने की वजह से अपनी त्वचा से भी सांस ले सकता हैं। ये वायुमंडल के तापमान के हिसाब से खुद में बदलाव करते हैं। जब मौसम गर्म होता है, तब वे तालाब या पानी के अंदर चले जाते हैं। मेंढक तापमान नियंत्रित करने के लिए खुद को ईंट, पत्थर या लकड़ियों के नीचे छिपा लेते हैं। मेंढक इतना कमाल का जीव है कि वह तीन तरह से सांस लेता है। वह मुंह से भी सांस ले सकता है, फेफड़ों से भी और त्वचा से भी। जहां हल्का सा भी ऑक्सीजन मौजूद है, मेंढक शीतनिद्रा की अवस्था में नहीं मरेगा।
आखिर मेंढक कौन सा जादू करता है?
मेंढक इस दौरान हाइबरनेशन की अवस्था रहते हैं। इस अवस्था को शीतनिद्रा भी कहते हैं। हाइबरनेशन की अवस्था में जीवों को भोजन की भी जरूरत नहीं पड़ती है। उसके शरीर का तापमान स्थिर हो जाता है, मेटाबोलिज्म की दर धीमी हो जाती है, हृदयगति भी शिथिल हो जाती है, सांस लेने की जरूरत कम पड़ती है और हिलना-डुलना भी न के बराबर होता है।
कितने दिन ईंट-पत्थर में दबा रह सकता है मेंढक?
मेंढक हाइबरनेशन की अवस्था में महीनों तक रह सकता है। वह अपना भोजन, अपने शरीर में संचित वसा से लेता है। मेंढको की कुछ प्रजातियां गहरे पानी में मिट्टी में छिपकर धंस जाती हैं। कुछ प्रजातियां हल्की दलदली जमीनों में इस अवस्था में चली जाती हैं। कुछ मेंढक, पत्थर, ईंट या लकड़ियों के तले दबे रहते हैं। जैसे ही ठंड खत्म होती है और वसंत आता है, ये शीतनिद्रा की अवस्था से बाहर आने लगते हैं. पानी वाले मेंढक तो अपनी त्वचा से ही एक वाटरप्रूफ परत तैयार कर लेते हैं, जिनके भीतर वे कैद हो जाते हैं। सिर्फ मुंह ही खुला रहता है। शीतनिद्रा से वापस आने के बाद वे अपने शारीरिक प्रयासों से इसे गिरा देते हैं।