आदमी दिल्ली में बैठे-बैठे, अमेरिका फोन मिला देता है और मजे से बात करता है। इंसान दिल्ली से दौलताबाद तक की दूरी नापने लगे तो 24 घंटे लग जाएंगे लेकिन अमेरिका में बैठे किसी शख्स से बात करने में कुछ सेंकेंड्स नहीं लगते हैं। बातों के यूं उड़न-छू होने का एक अलग विज्ञान होता है, जिसके बारे में तो लोग जानते हैं लेकिन उसके विस्तार के बारे में कुछ पता नहीं होता है. इसका विज्ञान आप समझते हैं या नहीं यह देखने वाली बात होगी।
जब लोग एक मोबाइल फोन से दूसरे मोबाइल फोन कॉल करते हैं, एक-दूसरे तक आवाज माइक्रोफोन के जरिए पहुंचती है। ये माइक्रोफोन, आपकी आवाज के रिसीवर होते हैं, इन्हीं के जरिए आवाज को डिजिटल साइन में बदल दिया जाता है।
कैसे आप तक पहुंचती हैं बातें?
फोन में MEMS सेंसर और IC लगा होता है। डिजिटल सिग्नल आपकी आवाज को इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडियो वेव में बदलता है, जिसे रेडियो फ्रीक्वेंसी कहते हैं। ये फ्रीक्वेंसी खुद सक्षम नहीं होती है कि यह इतनी दूर तक फैल सके तो इसे विस्तार देने का काम सेल टावर करते हैं।
ऐसे ट्रांसफर होती है आपकी बात
एक सेल टावर दूसरे सेल टावर तक फ्रीक्वेंसी का ट्रांसफर करता है। यह सब इतनी तेज गति से होता है कि सब कुछ रियल टाइम ही होता है। सेल टावर को सेल साइट्स भी कहते हैं। यहां इलेक्ट्रिक कम्युनिकेशन के उपकरण एंटीना के जरिए फ्रीक्वेंसी को एक जगह से दूसरे जगह ट्रांसफर करते हैं। वायरलेस कम्युनिकेशन डिवाइस के जरिए सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।
ये है रेडियो वेव का पूरा सिस्टम
सेल टावर आमतौर पर ऊंचा बनाया जाता है। उसमें एंटीना लगे होते हैं, एक सेल टावर का रेंज लगभग 45 मील तक हो सकता है। किसी टावर की रेंज ज्यादा या कम होने के कई कारण होते हैं। यह ट्रांसमिटर की ताकत पर निर्भर करता है। ट्रांसमिटर ही डेटा को रेडियो वेव में बदलकर उसे एंटीना के जरिए नजदीकी टावर तक भेजता है।
रिसीवर सेलुलर टावर से आने वाले डेटा को कैच करता है और रेडियो सिग्नल के जरिए उसे भेजता है। रिसीवर रेडियो सिग्नल को रिसीव करता है और उसे डिकोड करता है, जिससे हमको रियल टाइम आवाजें आसानी से सुनाई देती हैं।