अंतरिक्ष में सांस लेना नामुमकिन है, ऐसा इसलिए क्योंकि वहां हवा या ऑक्सीजन नहीं होती। हालांकि, अंतरिक्ष यात्री कई-कई महीनों तक ISS जैसे बड़े-बड़े स्पेस स्टेशन में रहते हैं। अब सवाल ये उठता है कि वह वहां सांस कैसे लेते हैं? तो बता दें की इसके लिए अंतरिक्ष में ऑक्सीजन बनाई जाती है, जिससे अंतरिक्ष को स्पेस में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। आइए, जानते हैं कि ISS में ऑक्सीजन कैसे बनाई जाती है और इससे जुड़ी दूसरी जरूरी बातें।
ऑक्सीजन बनाने के लिए क्या है जरूरी
ISS पर ऑक्सीजन बनाने के लिए सबसे मुख्य तकनीक इलेक्ट्रोलाइसिस है। इस प्रोसेस में पानी, जिसे विज्ञान की भाषा में H₂O कहते हैं, को दो हिस्सों में तोड़ा जाता है – हाइड्रोजन (H₂) और ऑक्सीजन (O₂)।
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ISS में लगे Oxygen Generation System (OGS) में बिजली की मदद से पानी को अलग-अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में पहले पानी में बिजली छोड़ी जाती है। इससे पानी के अणु टूटते हैं और ऑक्सीजन गैस अलग होती है। इसके बाद यही ऑक्सीजन स्पेस स्टेशन में छोड़ी जाती है ताकि यात्री सांस ले सकें। वहीं हाइड्रोजन गैस को सुरक्षित तरीके से बाहर अंतरिक्ष में छोड़ दिया जाता है। बता दें कि अंतरिक्ष में बिजली, सोलर पैनलों से मिलती है, जो ISS की बाहरी सतह पर लगे होते हैं।
पानी कहां से आता है?
ऑक्सीजन बनाने के लिए पानी जरूरी है। ISS पर पानी को दो तरीकों से पाया जाता है। एक तो पानी को कुछ मात्रा में पानी रॉकेट्स के जरिए ISS तक भेजा जाता है। वहीं दूसरी तरफ ISS पर Recycling सिस्टम है, जो urine, पसीना और सांस से निकली भाप को फिल्टर करके फिर से पानी में बदल देता है। इसे Water Recovery System (WRS) कहते हैं।
अगर इलेक्ट्रोलाइसिस सिस्टम में कोई खराबी आ जाए, तो ISS पर बैकअप ऑक्सीजन सिस्टम भी होता है, जिसे Solid Fuel Oxygen Generation – SFOG कहते हैं, इन्हें जलाने पर ऑक्सीजन गैस बनती है। वहीं ISS पर High-Pressure Oxygen Tanks भी होते हैं, जिनमें कंप्रेस ऑक्सीजन भरी होती है, जिसे जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल किया जाता है।
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साथ ही जब अंतरिक्ष यात्री सांस छोड़ते हैं, तो कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) हवा में भर जाती है। इसे हटाना भी जरूरी है। इसके लिए ISS में CO₂ हटाने वाली मशीनें लगी हैं जैसे CDRA (Carbon Dioxide Removal Assembly) होती है। ये मशीनें CO₂ को सोख लेती हैं ताकि ऑक्सीजन साफ रहे।