दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक माइक्रोसॉफ्ट 4.9 मिलियन मीट्रिक टन इंसानी मल और सीवेज वेस्ट खरीदने की तैयारी में है। कंपनी इसके लिए 1.7 बिलियन यानी कि लगभग 14 हजार करोड़ रुपये के करीब खर्च करेगी। मल और दूसरा बॉयो कचरा खरीदने के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने वॉल्टेड डीप नाम की एक कंपनी से 12 साल की डील साइन की है। इसके तहत माक्रोसॉफ्ट अगले साल से ही मल खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर देगी।
माइक्रोसॉफ्ट दूसरी टेक कंपनियों की तरह AI की रेस में शामिल है जबकि AI भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करता है। यानी जब कोई इंटरनेट पर AI का इस्तेमाल करता है तो उसमें इंटरनेट पर नॉर्मल सर्फिंग के मुकाबले कहीं ज्यादा बिजली का इस्तेमाल होता है।
यह भी पढ़ें: 'खेल शुरू हो गया है', AI को लेकर एलन मस्क ने ऐसा क्यों कहा?
इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
माइक्रोसॉफ्ट ने साल 2020 से 2024 के बीच 75.5 मिलियन टन के बराबर कार्बन उत्सर्जन किया था। ऐसे में माइक्रोसॉफ्ट अपने कार्बन फुटप्रिंट्स कम करना चाहता है। इसका मतलब है कि कंपनी AI टूल्स बनाने और उनके इस्तेमाल में जितना कार्बन उत्सर्जन कर रही है, उतना ही कार्बन उत्सर्जन दूसरे तरीकों से कम करना चाहती है।
इसमें मल खरीदना भी एक तरीका है। माइक्रोसॉफ्ट वॉल्टेड डीप से मल खरीदेगी, इसका मतलब यह हुआ कि वह जितना मल और कचरा खरीदेगी वॉल्टेड डीप उस कचरे का इस तरह से निस्तारण करेगी जिससे कार्बन उत्सर्जन न हो।
कंपनी ने लक्ष्य रखा है कि वह 2030 तक कार्बन उत्सर्जन जीरो कर लेगी। वहीं, माइक्रोसॉफ्ट ने योजना बनाई है कि उन्होंने जितनी भी ग्रीन हाउस गैस पर्यावरण में छोड़ी हैं उससे कहीं ज्यादा खत्म करेंगे।
इंसानी मल का क्या करेगी वॉल्टेड डीप?
हमारी धरती पर कई तरह का कचरा होता है, इसमें कुछ आसानी से गल सड़कर खत्म हो जाता है और पर्यावरण को नुकसान नहीं होता लेकिन कुछ ऐसा कचरा होता है, जो पर्यावरण को भारी नुकसान करता है और उससे काफी कार्बन उत्सर्जन होता है। वॉल्टेड डीप उसी कचरे का इस तरह से नष्ट करती है, जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो।
कंपनी खतरनाक कचरे को जमीन के 5 हजार फीट नीचे दबा देती है। जिससे न तो इससे निकलने वाली मीथेन गैस हवा में फैलती है और न ही वह कचरा नदियों और मिट्टी को दूषित कर पाता है।
यह भी पढ़ें: क्या डेटिंग को आसान बनाएगा AI? जेन-जी और एक्सपर्ट ने सच बताया
गूगल का कार्बन उत्सर्जन 51% बढ़ा
टेक कंपनियों पर एक तरफ जहां बेहतर से बेहतर AI टूल्स डेवलेप करने का दबाव बढ़ रहा है। वहीं, इससे होने वाले कार्बन उत्सर्जन से निपटना उनके लिए बड़ी चुनौती बन गया है। 2019 के बाद गूगल के कार्बन उत्सर्जन में 51% तक की बढ़ोतरी हुई है।
मेटा को अपने कार्बन फुटप्रिंट्स कम करने के लिए न्यूक्लियर एनर्जी पर शिफ्ट होना पड़ा है। वजह यह है कि AI मशीनों की बिजली आपूर्ति के लिए अगर कोयले से होगी तो उससे काफी ग्रीन हाउस गैस निकलेंगी जबकि न्यूक्लियर एनर्जी को क्लीन एनर्जी माना जाता है।