अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने एक अनोखे एक्सोप्लानेट (बाह्य ग्रह) को खोजा है, जिसे TOI-3261 b नाम दिया गया है। खास बात यह है कि इस ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में एक साल सिर्फ 21 घंटे का होता है। इस ग्रह के आकार के बात करें तो यह ग्रह नेप्च्यून के आकार के समान है, और यह अपने तारे के बहुत नजदीक चक्कर लगाता है। यही कारण है कि इसका साल इतना छोटा है।
जानिए क्या होता है एक्सोप्लानेट (बाह्य ग्रह)?
एक्सोप्लानेट यानी बाह्य ग्रह उस ग्रह को कहा जाता है जो हमारे सौरमंडल के बाहर किसी अन्य तारे के चारों ओर चक्कर लगता है। ये ग्रह मिल्की वे के भीतर स्थित होते हैं और ऐसे कई करोड़ों ग्रह हो सकते हैं। Proxima Centauri b नामक बाह्य ग्रह हमारे सौरमंडल के सबसे नजदीकी तारे, प्रॉक्सिमा सेंटॉरी, के चारों ओर चक्कर लगाता है और अनुमान लगाया जाता है कि यह व्यक्ति के रहने के योग्य हो सकता है।
नासा ने कैसे की इस एक्सोप्लानेट की खोज?
नासा ने अपने ट्रांसिटिंग एक्सोप्लानेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) के जरिए इस खोज को किया है। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, चिली और दक्षिण अफ्रीका में मौजूद टेलीस्कोप ने इसकी पुष्टि भी की है। TOI-3261 b ‘हॉट नेप्च्यून’ नामक दुर्लभ श्रेणी में आता है। इन ग्रहों का आकार छोटा, और यह अपने तारे के करीब होते हैं। साथ ही इनका ऑर्बिटल पीरियड बहुत कम होता है। TOI-3261 b के मामले में, इसका एक साल केवल 21 घंटे का है। इसका मतलब ये है कि इस एक्सोप्लेनेट को अपने तारे का एक चक्कर लगाने में 21 घंटे लगते हैं, वहीं पृथ्वी को 365 दिन का समय लगता है।
क्या है वैज्ञानिकों का अनुमान?
वैज्ञानिकों ने इस ग्रह और इसके तारे के 6.5 अरब साल पुराने इतिहास को मॉडलिंग तकनीक से फिर से बनाया है। इस शोध से पता चला कि यह ग्रह शुरू में बृहस्पति के समान एक विशाल गैस का ग्रह था। हालांकि, समय के साथ इसने अपना अधिकतर मास खो दिया। जिसके पीछे दो बड़े कारण हो सकते हैं फोटोइवैपोरेशन और टाइडल स्ट्रिपिंग।
इस थ्योरी के अनुसार, या तो तारे की ऊर्जा ने ग्रह की गैस को उड़ा दिया या तारे का गुरुत्वाकर्षण बल इस ग्रह की गैस के परतों को हटा दिया। नासा के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसका वायुमंडल ठोस है और नेप्च्यून से दोगुना घना है, जो दर्शाता है कि इसमें हल्के तत्व हट चुके हैं और भारी तत्व बचे हो सकते हैं। ग्रह के वायुमंडल की संरचना को समझने के लिए वैज्ञानिक नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद से इसे इन्फ्रारेड लाइट में देखना चाहते हैं।