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जस्टिस निर्मल यादव केस?

तस्वीर: इंडियन एक्सप्रेस/योगेश पाटिल

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चंडीगढ़ में एक हाई कोर्ट जज के दरवाजे पर एक डिलीवरी मैन 15 लाख रुपये की नकदी से भरा एक पैकेट लेकर आता है। जज निर्मलजीत कौर चौंक जाती हैं। वह तुरंत पुलिस और मुख्य न्यायाधीश को सूचित करती हैं। पता चलता है कि कथित तौर पर यह पैसा एक अन्य जज - जस्टिस निर्मल यादव के लिए था, लेकिन मिलते-जुलते नामों के कारण इसे गलत पते पर पहुंचा दिया गया। इसके बाद 17 साल लंबा कानूनी ड्रामा चला। मामला सीबीआई को सौंप दिया गया, एक मौजूदा जज सहित पांच लोगों को आरोपी बनाया गया और 80 से अधिक गवाहों से पूछताछ की गई। यहां तक ​​कि सीबीआई ने दो बार क्लोजर रिपोर्ट भी दाखिल की। ​​फिर भी मामला लंबा खिंचता चला गया। अब, लगभग दो दशकों के बाद, अदालत ने अपना फैसला सुनाया है: कोई भी दोषी नहीं है। कोई रिश्वत नहीं, कोई आपराधिक साजिश नहीं और किसी को भी दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं। पूर्व जस्टिस निर्मल यादव सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है। यह कहानी भारत की कानूनी व्यवस्था, न्यायिक जवाबदेही और जांच प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल उठाती है। इस वीडियो में, खबरगांव के हिमांशु दुबे ने कुख्यात "जज के दरवाजे पर नकदी" मामले की पूरी घटनाक्रम का विश्लेषण किया है - 2008 में चौंकाने वाले फैसले से लेकर 2025 में अंतिम फैसले तक। अधिक जानकारी के लिए पूरी वीडियो जरूर देखें।

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