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मनमोहन सिंह और बंद लिफाफे का किस्सा

तस्वीर: इंडियन एक्सप्रेस/योगेश पाटिल

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3 जुलाई 1991. नार्थ ब्लाक में पीएम ऑफिस. प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव अपनी कुर्सी पर बैठे थे. सामने बैठे थे नए नवेले वित्त मंत्री मनमोहन सिंह. दोनों के बीच शांत लेकिन बेहद गर्म चर्चा रही थी. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री राव को समझा रहे थे कि रुपए का डिवैल्यूएशन करना देश के लिए बेहद जरूरी है. राव इस फैसले को रोकना चाह रहे थे. चर्चा खत्म होती है. मनमोहन दफ्तर से बाहर निकलते हैं. उनके हाथ में एक सफेद लिफाफा होता है. वो प्रधानमंत्री के निजी सचिव के दफ्तर की ओर मुड़ जाते हैं. उन्हें जाकर ये लिफाफा थमाते हैं और कहते हैं इसे प्रधानमंत्री के निजि कोष तक पहुंचा दिया जाए. और चुपचाप वहां से निकल जाते हैं. मनमोहन सिंह ने उस दिन जो काम किया था, वो काफी साहसिक काम था. उसे सार्वजनिक कर वो बड़ा पॉलिटिकल फायद उठा सकते थे. लेकिन कभी उन्होंने इस बारे में किसी से बात नहीं की.

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