यू-ट्यूबर और फ्लैट अर्थ (पृथ्वी सपाट होने) थ्योरी के प्रचारक जेरन कैम्पनेला ने एक महंगी और अनोखी यात्रा के बाद अपनी थ्योरी को लंबे समय के बाद नकार दिया। उन्होंने कैलिफोर्निया से अंटार्कटिका तक का सफर किया और इस यात्रा पर लगभग 37,000 डॉलर, भारतीय रुपयों में 31.4 लाख रुपए खर्च किए। इसका उद्देश्य यह साबित करना था कि पृथ्वी सपाट है। हालांकि, इस यात्रा से लौटने के बाद उनका नजरिया पूरी तरह से बदल गया।
गलत साबित हुए जेरन कैम्पनेला
जेरन कैम्पनेला, लंबे समय से यह दावा करते आ रहे थे कि अंटार्कटिका एक ‘बर्फ की दीवार’ है जो फ्लैट अर्थ यानी सपाट पृथ्वी के किनारे पर स्थित है. उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान अपने सिद्धांत को जांचने की ठानी। उनका यह भी मानना था कि दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य का चलन दुनिया के बाकी हिस्सों से बिल्कुल अलग है। उनका विश्वास था कि अंटार्कटिका में सूर्य न तो उगता है और न ही डूबता है, बल्कि स्थिर रहता है या फिर पूरी तरह अलग पथ पर चलता है।
कैम्पनेला ने इस विचार के साथ अपनी यात्रा शुरू की कि वह अंटार्कटिका में जाकर पृथ्वी के सपाट होने का प्रमाण पा लेंगे। लेकिन जब वह अंटार्कटिका के बर्फीले क्षेत्रों में पहुंचे, तो उनका यह विश्वास टूट गया। वहां उन्होंने देखा कि दक्षिणी गोलार्ध की गर्मियों के दौरान सूर्य 24 घंटे तक दिखाई देता है। इसे 'मिडनाइट सन' कहा जाता है, जो केवल गोल पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र में ही होता है।
इस जांच ने कैम्पनेला के फ्लैट अर्थ सिद्धांत को पूरी तरह झुठला दिया। उन्होंने अपने इस अनोखे अनुभव को एक वीडियो के जरिए साझा किया और माना कि वह गलत थे। उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी जीवन में आप गलत होते हैं। मैंने सोचा था कि अंटार्कटिका में 24 घंटे का सूरज नहीं होता। वास्तव में, मैं इस पर पूरी तरह से विश्वास करता था। लेकिन मैंने जो देखा, उसने मेरी धारणा को बदल दिया।’
जेरन कैम्पनेला ने फॉलोवर्स से की ये अपील
कैम्पनेला ने यह भी बताया कि उन्होंने कई वैज्ञानिक तथ्यों को पहले नकार दिया था और अपने थ्योरीज पर अडिग थे। लेकिन उनकी यह यात्रा ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया। उन्होंने महसूस किया कि विज्ञान और अवलोकन के माध्यम से सच्चाई को समझा जा सकता है।
इस अनुभव के बाद, कैम्पनेला ने अपने फॉलोवर्स से कहा कि पृथ्वी का गोलाकार होना केवल एक वैज्ञानिक तथ्य नहीं, बल्कि एक ऐसा सत्य है जिसे हर व्यक्ति देख और समझ सकता है। उनकी यह यात्रा इस बात का प्रमाण है कि सच्चाई को जानने के लिए हमें अपने विचारों और मान्यताओं से बाहर निकलना होगा।