बिहार के सारण जिले की अमनौर विधानसभा साल 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। सारण और वैशाली जिले की यह विधानसभा सीट मुजफ्फरपुर से भी सटी हुई है। देश की आजादी के लिए हुए संघर्ष के लिए चर्चा में आई जगहों में एक नाम अमनौर का भी है। इस क्षेत्र के 4 दर्जन से ज्यादा स्वतंत्रता सेनानियों के नाम इतिहास में दर्ज जरूर हैं लेकिन समय ने उनको भुला दिया है। अमनौर के स्वतंत्रता सेनानी बासुदेव नारायण सिंह के घर का 'महात्मा गांधी द्वार' याद दिलाता है कि 1934 में महात्मा गांधी आए थे और परसुरामपुर गांव में ठहरे थे।
अंग्रेजों ने इस इलाके के वीरों पर काफी जुल्म भी किए थे। अंग्रेजों ने बहुरिया में बनी एक कोठी को डायनामाइट से उड़ा दिया था। इतना ही नहीं अब्दुल बारी के बनवाए स्वराज्य आश्रम को भी बम से उड़ा दिया गया था। अंग्रेजों का मानना था कि इन जगहों से क्रांतिकारी गतिविधियां होती हैं और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ साजिश रची जाती है। अब ये जगहें खंडहर हो चुकी हैं।
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अमनौर विधानसभा में अमनौर और मकेर ब्लॉक आती हैं। इसके अलावा कुछ इलाके परसा सीडी ब्लॉक के भी आते हैं। इसी साल राज्य सरकार ने अमनौर को सारण जिले का औद्योगिक केंद्र बनाने का एलान किया था। हालांकि, हकीकत यह है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अमनौर आज भी पिछड़ा हुआ है। नीतीश सरकार के मंत्री कृष्ण कुमार मंटू का क्षेत्र होने की वजह से यहां सड़कों पर खूब खर्च हुआ है लेकिन परिवहन की व्यवस्था अभी भी लचर है। स्थानीय स्तर पर पंचायतों को बेहतर बनाने की दिशा में कोई खास काम नहीं हुआ है।
मौजूदा समीकरण
इस विधानसभा क्षेत्र का सबसे रोचक समीकरण कृष्ण कुमार मंटू की सोशल मीडिया प्रोफाइल पर दिखती है। मौजूदा विधायक की हैसियत से जनसंपर्क में जुटे कृष्ण कुमार मंटू इस बात का जिक्र नहीं करते हैं कि वह किस पार्टी में हैं। वजह है कि इस सीट पर बीजेपी और जेडीयू दोनों ही दावेदारी कर सकती हैं। कहा जाता है कि इसी के चलते कृष्ण कुमार मंटू अपने विकल्प खुले रख रहे हैं। वहीं, आरजेडी नेता सुनील कुमार पिछला चुनाव हारे भले थे लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं। वह अपने क्षेत्र में लगातार जनसंपर्क करके अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुटे हुए हैं।
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वहीं, 2015 से 2020 तक विधायक रहे शत्रुधन तिवारी उर्फ चोकर बाबा अब जन सुराज के साथ हैं। सामाजिक कार्यों के जरिए क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहने वाले चोकर बाबा इस बार जन सुराज के सहारे अपना दावा मजबूत कर रहे हैं। जनसुराज से ही उज्जवल कुमार सिंह भी जमकर पसीना बहा रहे हैं और टिकट के लिए जुगत लगा रहे हैं। उम्मीदवार ज्यादा हैं, ऐसे में इस बात की पूरी उम्मीद है कि जिन्हें टिकट नहीं मिलेगा, वे भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतरकर यहां के चुनाव को रोमांचक बना सकते हैं।
2020 में क्या हुआ था?
2015 में विधायक बने शत्रुघ्न तिवारी का टिकट बीजेपी ने 2020 में काट दिया था। उनकी जगह पर कृ्ष्ण कुमार मंटू को मौका दिया गया। नतीजा फिर वही हुआ कि शत्रुधन तिवारी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ गए। वहीं, आरजेडी ने सुनील कुमार को चुनाव लड़वाया। यही सुनील कुमार महतो 2015 के चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़े थे और 29 हजार से ज्यादा वोट पाकर नंबर 3 पर रहे थे।
रोचक बात है कि 2015 और 2020 दोनों ही चुनाव में तीनों प्रमुख उम्मीदवार चुनाव लड़े। 2015 में निर्दलीय रहे सुनील कुमार 2020 में आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़े। 2015 में जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़े कृष्ण कुमार मंटू को 2020 में बीजेपी ने अपने टिकट पर लड़ाया और 2015 में जीते शत्रुधन तिवारी इस बार निर्दलीय हो गए।
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इस बार की उठापटक में जीत हुई बीजेपी की। 2015 में मामूली अंतर से चुनाव हारे कृष्ण कुमार मंटू को इस बार 63,316 वोट मिले और वह चुनाव जीत गए। वहीं, आरजेडी के सुनील कुमार एक बार फिर हार गए और उन्हें 59,635 वोट मिले। वहीं, टिकट न मिलने पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े शत्रुधन तिवारी को सिर्फ 7493 वोट ही मिले।
विधायक का परिचय
कृष्ण कुमार मंटू वही नेता हैं जो इस विधानसभा सीट से पहली बार 2010 में विधायक बने थे। 2015 में वह मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे लेकिन 2020 बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते और फिर से विधायक बन गए। कुर्मी समुदाय के चर्चित नेता भले ही बीजेपी के विधायक हों लेकिन वह नीतीश कुमार और जेडीयू के भी करीबी हैं। यही वजह है कि अब वह नीतीश कुमार की सरकार में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी हैं। उन्हीं इसी साल फरवरी के महीने में ही मंत्री बनाया गया है।
सारण के सांसद राजीव प्रताप रूडी के करीबी कहे जाने वाले कृष्ण कुमार छात्र राजनीति के बाद मुखिया रह चुके हैं। उनकी पत्नी भी प्रखंड प्रमुख रही हैं। वह समय-समय पर कुर्मी एकता रैली जैसे जाति आधारित कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। कई जिलों में पटेल समाज के छात्रों के लिए हॉस्टल चलाने वाले छात्रावासा निर्माण ट्रस्ट के मुखिया भी कृष्ण कुमार मंटू हैं। इसके चलते कुर्मी वोटबैंक पर उनकी अच्छी-खासी पकड़ मानी जाती है। कहा जाता है कि कृष्ण कुमार राजनीतिक तौर पर प्रभुनाथ सिंह के शिष्य हैं।
वह कई बार अधिकारियों से बदसलूकी करने के लिए भी चर्चा में आ चुके हैं। एक बार वह बीडीओ को पीटने के मामले में भी घिर चुके हैं। इसी के चलते उनके खिलाफ केस भी दर्ज हुए थे। 2020 के चुनावी एफिडेविट में ही कृष्ण कुमार मंटू ने बताया था कि उनके खिलाफ कुल 9 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें मारपीट, हत्या का प्रयास और लूट जैसे आरोप शामिल हैं। 2020 में उनकी कुल संपत्ति 8 करोड़ रुपये से ज्यादा की थी।
विधानसभा का इतिहास
साल 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट पर कुल तीन बार चुनाव हुए हैं। यहां एक बार जेडीयू और दो बार बीजेपी जीती है। दो बार यहां से कृष्ण कुमार मंटू ही चुनाव जीते हैं और 2015 में शत्रुघ्न तिवारी चुनाव जीते थे।
2010- कृष्ण कुमार मंटू- JDU
2015- शत्रुघ्न तिवारी- BJP
2020- कृष्ण कुमार मंटू- BJP
