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मढ़ौरा विधानसभा: RJD का गढ़ बचेगा या इस बार NDA लगाएगा सेंध?

सारण की मढ़ौरा विधानसभा कभी औद्योगिक क्षेत्र के तौर पर मशहूर थी लेकिन अब यहां सिर्फ कंपनियों के खंडहर ही बचे हैं।

marhaura assembly

मढ़ौरा विधानसभा, Photo Credit: Khabargaon

बिहार के सारण जिले में आने वाली मढ़ौरा विधानसभा सबसे ज्यादा चर्चा में रहती है। इसी साल जुलाई के महीने में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मढ़ौरा से निर्यात किए जाने वाले इंजन को हरी झंडी दिखाई तो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और एनडीए में जुबानी जंग शुरू हो गई। आज यह फैक्ट्री बिहार सरकार के लिए करोड़ों का राजस्व जुटाती है और सैकड़ों लोग यहां काम करते हैं। सारण जिले के बीचोंबीच बसा यह विधानसभा क्षेत्र एक सिरे पर मुजफ्फरपुर जिले को भी छूता है। कभी कई फैक्ट्रियों की वजह से चर्चा में रहने वाले मढ़ौरा में अब कई फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं। 

 

मॉर्टन टॉफी फैक्ट्री हो, बिहार की पहली चीनी मिल हो, सारण इंजीनियरिंग वर्क्स हो या फिर अन्य छोटे-मोटे उद्योग। अब ज्यादातर बंद ही हैं। यही वजह है कि कभी औद्योगिक क्षेत्र रहा मढ़ौरा अब उन फैक्ट्रियों के खंडहरों की वजह से जाना जाता है। कृषि उद्योगों से जुड़ी फैक्ट्रियां बंद होने से यहां के किसान भी प्रभावित हुए हैं। फैक्ट्रियों के ये मुद्दे जनता के साथ-साथ नेताओं के बीच भी चर्चा का विषय बनते हैं। कुछ समय पहले ही सारण के सांसद राजीव प्रताप रूड़ी ने आरोप लगाए थे कि लालू प्रसाद यादव के चलते यहां की चीनी मिलें बंद हो गई हैं।

 

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2006-07 में यूपीए की सरकार के दौरान एलान किया गया था कि मढ़ौरा में डीजल लोकोमोटिव मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई जाएगी। तब आरजेडी मुखिया लालू यादव ही रेलमंत्री हुआ करते थे। हालांकि, बाद में इस प्रोजेक्ट में कई अड़चनें आईं और यहां से उत्पादन शुरू करने में भी देरी हुई। 2018 से ही यहां रेल के इंजन बनने लगे हैं और अब तक सैकड़ों इंजन तैयार भी हो चुके हैं। इसी साल जुलाई से यहां के इंजनों का निर्यात भी शुरू हो गया है।

मौजूदा समीकरण


अपनी जीत के रिकॉर्ड और लालू परिवार से नजदीकी के चलते इतना तो लगभग तय माना जा रहा है कि जितेंद्र कुमार राय एक बार फिर से आरजेडी के टिकट पर चुनाव में उतरेंगे। वह अपने क्षेत्र में खूब सक्रिय भी हैं और लगातार काम भी करवाते रहते हैं। वहीं, पिछला चुनाव हारे अल्ताफ आलम फिलहाल सारण जिले में जेडीयू के जिला अध्यक्ष हैं और अपने क्षेत्र में भी खूब सक्रिय हैं। अपने बारे में वह दावा करते हैं कि उन्होंने बिना विधायक रहते ही बहुत सारे काम करवा दिए हैं। ऐसे में चुनाव लड़ने को लेकर एनडीए की ओर से उनका दावा काफी मजबूत है।

 

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वहीं, नई नवेली जन सुराज की ओर से डॉ. नूतन कुमारी जैसी नेता भी मैदान में उतरने के लिए पसीना बहा रही हैं। हालांकि, यहां के जातीय समीकरण और आरजेडी के प्रभाव को देखकर यह कहा जा सकता है कि अभी भी यहां महागठबंधन मजबूत स्थिति में है। 

2020 में क्या हुआ?

 

आरजेडी के मजबूत गढ़ माने जाने वाले मढ़ौरा में सिर्फ 2005 में निर्दलीय लाल बाबू राय चुनाव जीते थे। वरना 1995 से अब तक आरजेडी का ही कब्जा रहा है। 2020 में आरजेडी के विधायक जितेंद्र कुमार राय को चुनौती देने के लिए जेडीयू ने अल्ताफ आलम को उतारा। 2015 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े लाल बाबू राय इस बार निर्दलीय ही उतर गए। वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी ने विनय कुमार को टिकट दिया। एक चीज यह देखने को मिली कि निर्दलीय लाल बाबू राय और एलजेपी के लड़ने से यहां जेडीयू को नुकसान हुआ और आरजेडी को फायदा हुआ।

 

आरजेडी के जितेंद्र कुमार राय एक बार फिर से यहां से चुनाव जीते। उन्हें 59,812 वोट मिले जबकि दूसरे नंबर पर रहे अल्ताफ आलम को 48,427 वोट मिले। एलजेपी के विनय कुमार को 6550 और निर्दलीय लाल बाबू राय को 6323 वोट मिले। इतना ही नहीं, नागेंद्र राय को 4445, पंकज कुमार को 3512 और चंदेश्वर चौधरी को 3329 वोट मिले। 

विधायक का परिचय

 

तीन बार के विधायक जितेंद्र कुमार राय इसी सीट से पहले जनता दल फिर आरजेडी के विधायक रहे यदुवंशी राय के बेटे हैं। जितेंद्र कुमार राय कुछ समय तक जेडीयू में भी थे लेकिन बाद में उनकी घर वापसी हो ही गई। हालांकि, उनकी शुरुआत साल 2001 में युवा आरजेडी से ही हुई थी। 2005 में वह जेडीयू के टिकट से चुनाव भी लड़े थे लेकिन तब हार गए थे। 

 

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वह बिहार की सरकार (आरजेडी+जेडीयू गठबंधन) में कला, संस्कृति और युवा मामलों के मंत्री भी रह चुके हैं। अपने पिता यदुवंशी राय के नाम के साथ काम करने वाले जितेंद्र कुमार अक्सर अपने पिता को याद करते हैं और कहते हैं कि पिता के आदर्श ही उनकी पूंजी हैं। जितेंद्र कुमार राय को लालू यादव और तेजस्वी यादव का बेहद करीबी माना जाता है।

विधानसभा का इतिहास

 

लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर 1995 से जनता दल और आरजेडी ने ही जीत हासिल की। 2005 में लाल बाबू राय ने दोनों बार जीत हासिल की थी लेकिन फिर आरजेडी ने यहां अपना कब्जा जमा लिया। 1990 के चुनाव तक हुए कुल 11 चुनाव में से यहां 7 बार कांग्रेस ही जीती थी। 

 

1952- राम स्वरूप देवी- कांग्रेस
1952- जनार्दन प्रसाद सिंह- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (उपचुनाव)
1957-देवी लालजी- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1962- सूरज सिंह- कांग्रेस
1967- देवी लालजी- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1969- भीष्म प्रसाद यादव- कांग्रेस
1972-भीष्म प्रसाद यादव- कांग्रेस
1977-सूर्या सिंह- जनता पार्टी
1980-भीष्म प्रसाद यादव- कांग्रेस
1985-भीष्म प्रसाद यादव- कांग्रेस
1990- सुरेंद्र शर्मा- निर्दलीय
1995-यदुवंशी राय- जनता दल
2000-यदुवंशी राय-आरजेडी
2005-लाल बाबू राय- निर्दलीय
2005-लाल बाबू राय- निर्दलीय
2010-जितेंद्र कुमार राय-आरजेडी
2015-जितेंद्र कुमार राय-आरजेडी
2020-जितेंद्र कुमार राय-आरजेडी

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