बिहार के गोपालगंज जिले में पड़ने वाली गोपालगंज विधानसभा का चुनावी इतिहास काफी पुराना है। यहां 1952 से चुनाव होते आ रहे हैं। गोपालगंज का नाम भगवान श्रीकृष्ण के नाम गोपाल से जुड़ा माना जाता है। इस जिले पर 300 सालों तक बंगाल के सुल्तानों का राज था। बाद में मुगलों ने यहां पर शासन किया। वैसे तो पलायन बिहार में बड़ा मुद्दा है, लेकिन गोपालगंज के लोग दूसरे राज्यों की बजाय मध्य पूर्व के देशों में ज्यादा जाते हैं।
गोपालगंज उन विधानसभाओं में से एक है, जहां जनता ने सभी राजनीतिक पार्टियों को मौका दिया है। इस सीट पर मायावती की बसपा और निर्दलीय उम्मीदवार भी जीत चुके हैं। दो दशकों से यहां बीजेपी का कब्जा है।
मौजूदा समीकरण
2005 से अब तक हुए सारे विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत हुई है। 2022 में जब यहां मौजूदा विधायक सुभाष सिंह के निधन के बाद उपचुनाव हुए थे, तब माना जा रहा था कि बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल सकती है। तब बीजेपी को कड़ी टक्कर मिली थी लेकिन आखिरकार जीत गई थी। यहां मुस्लिम-यादव फैक्टर भी काम करता है। लगातार 5 चुनाव यहां से बीजेपी जीत रही है, इसलिए इस बार उसे कड़ी चुनौती मिल सकती है।
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2020 में क्या हुआ था?
2020 के चुनाव में यहां से बीजेपी के सुभाष सिंह लगातार चौथी बार जीते थे। उन्होंने बसपा के अनिरुद्ध प्रसाद को लगभग 36 हजार वोटों से हराया था। अगस्त 2022 में सुभाष सिंह का बीमारी के चलते निधन हो गया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी ने उनकी पत्नी कुसुम देवी को टिकट दिया। उपचुनाव में कुसुम देवी को आरजेडी के मोहन गुप्ता से कड़ी टक्कर मिली। आखिरकार, कुसुम देवी ने मोहन गुप्ता को 1,794 वोटों से हराकर जीत हासिल की थी।
विधायक का परिचय
2005 से अगस्त 2022 तक बीजेपी के सुभाष सिंह गोपालगंज से विधायक थे। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी कुसुम देवी यहां से विधायक हैं। कुसुम देवी का यह पहला चुनाव था।
कुसुम देवी 10वीं पास हैं। 2022 में उन्होंने पहली बार कोई चुनाव लड़ा था। राजनीति में कुसुम देवी को कोई खास अनुभव नहीं था। उनका कहना था कि जब उनके पति घर पर नहीं होते थे, तब वह जनता की फरियाद सुनती थीं और उसका निपटारा करती थीं।
2022 में उपचुनाव के वक्त दाखिल किए हलफनामे में उन्होंने अपने पास 3.31 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति होने की जानकारी दी थी।
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विधानसभा का इतिहास
इस सीट पर अब तक 19 बार चुनाव हो चुके हैं। इनमें दो उपचुनाव भी शामिल हैं। इस सीट पर कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, बसपा और निर्दलीय भी जीत चुके हैं।
1952: कमला राय (कांग्रेस)
1957: कमला राय (कांग्रेस)
1961: सत्येंद्र नारायण सिंह (कांग्रेस)
1962: अब्दुल गफूर (कांग्रेस)
1967: हरि शंकर सिंह (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1969: राम दुलारी सिन्हा (कांग्रेस)
1972: राम दुलारी सिन्हा (कांग्रेस)
1977: राधिका देवी (जनता पार्टी)
1980: काली प्रसाद पांडे (निर्दलीय)
1985: सुरेंद्र सिंह (निर्दलीय)
1990: सुरेंद्र सिंह (जनता दल)
1995: रामवतार (जनता दल)
2000: साधु यादव (आरजेडी)
2005: रियाजुल हक (बसपा)
2005: सुभाष सिंह (बीजेपी)
2010: सुभाष सिंह (बीजेपी)
2015: सुभाष सिंह (बीजेपी)
2020: सुभाष सिंह (बीजेपी)
2022: कुसुम देवी (बीजेपी)