बिहार के सारण जिले की सोनपुर विधानसभा पिछले 2 बार से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के कब्जे में है। इस सीट की पहचान यह है कि यहां से जीतने वाले दो नेता बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पहले थे राम सुंदर दास और दूसरे लालू प्रसाद यादव। लालू प्रसाद यादव एक बार जनता पार्टी के टिकट पर तो दूसरी बार लोकदल के टिकट पर सोनपुर के विधायक बने थे। यही वजह सीट थी जिससे लालू प्रसाद यादव पहली बार विधायक बने थे। एक तरफ गंगा और दूसरी तरफ गंडक नदी से घिरा यह इलाका धार्मिक और पौराणिक महत्व भी रखता है।
हर साल नवंबर में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला सोनपुर मेला विश्व विख्यात है। इस दिन भगवान हरिहरनाथ की पूजा होती है और सोनपुर मेले को ही हरिहरनाथ मेले के रूप में भी जाना जाता है। मुख्य रूप से यह पशुओं का मेला होता है जहां तमाम तरह के पशु लाए जाते हैं। कहा जाता है कि चंद्र गुप्त मौर्य ने गंगा नदी के पार हाथी और घोड़े खरीदने की शुरुआत की थी और तब से ही इस मेले का आयोजन होता रहा है। बेहद महत्वपूर्ण विधानसभा सीट होने के बावजूद कई मूलभूत सुविधाएं ही अभी तक यहां नहीं पहुंच सकी हैं।
यह भी पढ़ें- घोसी विधानसभा: 38 साल तक सत्ता में रहने वाला परिवार वापसी कर पाएगा?
सोनपुर को जिला बनाने की मांग काफी पुरानी है और कुछ समय पर यह मांग सिर उठाने ही लगती है। नदियों के घिरे सोनपुर में बाढ़ भी एक बड़ी समस्या है और हर साल आम जनमानस को इससे जूझना पड़ता है। इस बार भी विधायक रामानुज प्रसाद यादव ने सरकार को चिट्ठी लिखकर सोनपुर को बाढ़ ग्रस्त घोषित करने की मांग की थी।
मौजूदा समीकरण
रामानुज प्रसाद कई बार चुनाव जीत चुके हैं और उनका दावा भी मजबूत है। हालांकि, कुछ उनकी बयानबाजी और कुछ पार्टी के भीतर से ही विरोध, उनका दावा कमजोर कर रहा है। सुरेंद्र प्रसाद यादव के समर्थक मुखर तौर पर रामानुज के खिलाफ हैं। वहीं कई बार चुनाव जीतने और हारने वाले विनय कुमार सिंह भी क्षेत्र में सक्रिय हैं और अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुटे हुए हैं।
पिछले दो चुनाव हार चुके विनय कुमार सिंह को अपनी ही पार्टी के डॉ. पंकज कुमार सिंह से भी चुनौती मिल रही है। अनामिका हॉस्पिटल के फाउंडर पंकज सिंह भी इस बार अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। मंत्री सुमित कुमार सिंह के ससुर ओम कुमार सिंह की सक्रियता ने भी बीजेपी के अन्य नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। वहीं, कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे अशोक कुमार सिंह अब जन सुराज का हाथ थाम चुके हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि वही इस विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ेंगे। ऐसे में इस बार सोनपुर का चुनाव त्रिकोणीय भी हो सकता है।
यह भी पढ़ें- शेखपुरा विधानसभा: RJD फिर जीतेगी या JDU करेगी वापसी? क्या हैं समीकरण
2020 में क्या हुआ?
लंबे समय एक-दूसरे से हारते और जीतते आ रहे रामानुज प्रसाद यादव और विनय कुमार सिंह ही एक बार फिर आमने-सामने हुए। 2015 में भी विनय कुमार सिंह रामानुज से चुनाव हारे थे लेकिन बीजेपी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया। हालांकि, विनय कुमार सिंह इस भरोसे पर खरे नहीं उतर पाए। वह पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोट पाने में तो कामयाब हुए लेकिन ये वोट जीत के लिए काफी नहीं थे।
2020 में आरजेडी के रामानुज प्रसाद यादव को कुल 73,247 वोट मिले और बीजेपी के विनय कुमार सिंह को 66,561 वोट ही मिले। वहीं, कई निर्दलीय उम्मीदवार भी ऐसे थे जिन्हें 3 से लेकर 8 हजार तक वोट मिले। इस तरह रामानुज प्रसाद यादव सोनपुर से चौथा चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
विधायक का परिचय
RJD के नेता रामानुज प्रसाद यादव कुल 4 बार सोनपुर से विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। MA, LLB और PhD तक की पढ़ाई कर चुके रामानुज प्रसाद बिहार के पढ़े-लिखे विधायकों में गिने जाते हैं। 2020 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक, उनके खिलाफ कुल 4 केस दर्ज थे। उन्होंने अपनी संपत्ति लगभग 47 लाख रुपये घोषित की थी और बताया था कि उनकी आय का साधन विधायक के रूप में वेतन, खेती और कारोबार हैं।
यह भी पढ़ें- लखीसराय विधानसभा: डिप्टी CM विजय कुमार के गढ़ में क्या हैं समीकरण?
अपने क्षेत्र में रामानुज की छवि की बात करें तो इसी साल अगस्त महीने में सोनपुर के कुछ आरजेडी कार्यकर्ता पटना में राबड़ी देवी के आवास के बाहर धरना देने पहुंच गए थे। इन लोगों की मांग थी की इस बार रामानुज प्रसाद को टिकट न दिया जाए। इन लोगों की शिकायत थी कि रामानुज प्रसाद ने ठीक से काम नहीं करवाया। हालांकि, यह भी कहा गया कि ऐसा प्रदर्शन करवाने वाले लोग भाई सुरेंद्र यादव के समर्थक थे। बता दें कि साल 2023 में रामानुज प्रसाद ने सोनपुर मेले के उद्घाटन के समय तत्कालीन जेडीयू-आरजेडी सरकार पर ही सवाल उठा दिए थे।
विधानसभा का इतिहास
इस सीट की एक खूबी है कि राम जयपाल सिंह यादव के अलावा यहां से कोई भी नेता लगातार तीन चुनाव नहीं जीता है। इस बार रामानुज प्रसाद यादव के सामने भी यही चुनौती है। 2005 में भी वह दोनों चुनाव जीते थे लेकिन 2010 में बीजेपी के विनय कुमार सिंह ने उन्हें हरा दिया। इससे पहले राज कुमार रॉय लगातार दो चुनाव जीते थे तब भी विनय कुमार सिंह ने ही 2000 में उन्हें हरा दिया था। इसी सीट से लालू प्रसाद यादव भी दो बार (1980 और 1985 में) चुनाव जीत चुके हैं। 2010 के चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने राबड़ी देवी को चुनाव में उतारा था लेकिन बीजेपी के विनय कुमार सिंह ने उन्हें चुनाव हरा दिया था।
पूर्व सीएम राम सुंदर दास भी इसी विधानसभा सीट से 1977 में चुनाव जीते थे।
1952-जगदीश शर्मा-कांग्रेस
1957-राम बिनोद सिंह- निर्दलीय
1962-शिव बचन सिंह- CPI
1967-राम जयपाल सिंह यादव-कांग्रेस
1969-राम जयपाल सिंह यादव-कांग्रेस
1972-राम जयपाल सिंह यादव-कांग्रेस
1977-राम सुंदर दास- जनता पार्टी
1980-लालू प्रसाद यादव-जनता पार्टी
1985-लालू प्रसाद यादव- लोक दल
1990-राज कुमार रॉय-जनता दल
1995-राज कुमार रॉय-जनता दल
2000-विनय कुमार सिंह-BJP
2005-रामानुज प्रसाद यादव-RJD
2005-रामानुज प्रसाद यादव-RJD
2010-विनय कुमार सिंह-BJP
2015-रामानुज प्रसाद यादव-RJD
2020-रामानुज प्रसाद यादव-RJD
