बिहार की वैशाली विधानसभा सीट बीते ढाई दशक से जनता दल (यूनाइटेड) का गढ़ बनी हुई। मुजफ्फरपुर, सारण और वैशाली की सीमा पर बसा यह विधानसभा क्षेत्र ऐतिहासिक गौरव समेटे हुए है। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर की जन्मस्थली वैशाली में ही भगवान बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश दिया था। अब भले ही ज्यादातर ऐतिहासिक धरोहरें खंडहरों में तब्दील हो गई हैं लेकिन भारत का राष्ट्रीय प्रतीक यानी तीन शेरों वाला अशोक स्तंभ यहीं पर है।

 

कुर्मी, यादव और मुस्लिम वोटों की अधिकता के चलते जेडीयू लंबे समय से इस विधानसभा क्षेत्र में जीतने में कामयाब रही है। लगातार कोशिशें कर रहे विपक्ष के लिए यह सीट बड़ी चुनौती बनी हुई है। यही वजह है कि इस बार यहां का मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। अपनी उम्मीद बरकरार रखने के लिए मौजूदा विधायक सिद्धार्थ पटेल आखिरी वक्त तक भी उद्घाटन और शिलान्यास करते रहे।

 

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मौजूदा समीकरण

 

2020 में टिकट कटने के बावजूद राज किशोर सिंह ने जेडीयू का साथ नहीं छोड़ा है और इस बार भी वह अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं। वह अपनी ही पार्टी के मौजूदा विधायक सिद्धार्थ पटेल पर आरोप लगा रहे हैं कि 5 साल में कोई काम नहीं हुआ है। राज किशोर सिंह के अलावा, मौजूदा विधायक सिद्धार्थ पटेल भी सक्रिय हैं और टिकट के लिए उनकी दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है। हालांकि, अगर पिछली बार की तरह ही जेडीयू इस सीट पर अपना उम्मीदवार बदलने का मन बनाती है तो सिद्धार्थ पटेल का पत्ता कट सकता है।

 

वैशाली सीट से 6 बार विधानसभा का चुनाव जीतने वाले वृषिण पटेल 2020 के चुनाव से पहले आरजेडी में शामिल हो गए थे। 2015 में वह जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के उम्मीदवार थे और दूसरे नंबर पर रहे थे। अब वह जन सुराज में शामिल हो चुके हैं। बिहार सरकार में मंत्री सिवान से लोकसभा सांसद रहे वृषिण पटेल के आने से यहां जन सुराज का दावा भी मजबूत हो गया है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े संजीव सिंह भी अपनी पार्टी के साथ हैं और वह भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। पूर्व विधायक वीणा शाही भी क्षेत्र में लगातार जनसंपर्क कर रही हैं और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं।

 

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2020 में क्या हुआ था?

 

लगातार 4 बार चुनाव जीत चुकी जेडीयू ने अपने ही तत्कालीन विधायक राज किशोर सिंह का टिकट काटकर सिद्धार्थ पटेल को चुनाव में उतार दिया था। गनीमत इतनी रही कि राज किशोर सिंह चुनाव में नहीं उतरे। वहीं, कांग्रेस के कोटे में आई इस सीट पर संजीव सिंह को चुनाव लड़ाया गया। लोक जनशक्ति पार्टी ने इस सीट पर भी जेडीयू का खेल खराब करने की कोशिश की और अजय कुमार कुशवाहा को चुनाव लड़ाया। 

 

नतीजे आए तो जेडीयू को नुकसान जरूर हुआ लेकिन वह अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गई। सिद्धार्थ पटेल को 69,780 वोट मिले और वह चुनाव जीत गए। वहीं, कांग्रेस के संजीव सिंह दूसरे नंबर पर रहे और उन्हें 62,367 वोट मिले। एलजेपी के अजय कुमार कुशवाहा को 33,351 वोट मिले और वह नंबर 3 पर रहे।

विधायक का परिचय

 

साल 2020 में पहला विधानसभा चुनाव लड़े सिद्धार्थ पटेल पटना यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं। खेती-बाड़ी और कारोबार को अपनी आय का प्रमुख स्रोत बताने वाले सिद्धार्थ पटेल ने 2020 के चुनावी हलफनामे में बताया था कि उनकी संपत्ति लगभग 2.7 करोड़ रुपये है। तब तक उनके खिलाफ एक भी मुकदमा दर्ज नहीं था।

 

यह वही नेता हैं जिनके खिलाफ नीतीश कुमार के सामने ही नारेबाजी हो गई थी। इस पर सिद्धार्थ पटेल का कहना था कि नारेबाजी करने वाले लोग अपने लिए विधानसभा का टिकट चाहते हैं। इतना ही नहीं, सिद्धार्थ पटेल को अपने ही गांव में विरोध भी झेलना पड़ा था।

विधानसभा का इतिहास

 

1967 में बनी इस विधानसभा सीट पर शुरुआती तीन चुनावों में यहां से ललितेश्वर प्रसाद शाही चुनाव जीतते रहे। इससे पहले वह लालगंज सीट से विधायक बनते रहते थे। बृषिण पटेल साल 1980 में अपना पहला चुनाव जीते थे और दो बार लगातार तीन-तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। राज किशोर सिंह भी दो बार चुनाव जीत चुके हैं। एक बार हेमंत कुमार शाही भी चुनाव जीते और उनके निधन के बाद वीणा शाही भी दो बार यहां से विधायक बनीं।


1967-ललितेश्वर प्रसाद शाही-कांग्रेस
1969-ललितेश्वर प्रसाद शाही-लोकतांत्रिक कांग्रेस
1972-ललितेश्वर प्रसाद शाही-कांग्रेस
1977-नागेंद्र प्रसाद सिंह-जनता पार्टी
1980-बृषिण पटेल-जनता पार्टी
1985-बृषिण पटेल- लोक दल
1990-बृषिण पटेल-जनता दल
1991-हेमंत कुमार शाही- कांग्रेस (उपचुनाव)
1992-वीणा शाही-कांग्रेस
1995-राजकिशोर सिंह-JDU
2000-वीणा शाही-कांग्रेस
2005-बृषिण पटेल-JDU
2005-बृषिण पटेल-JDU
2010-बृषिण पटेल-JDU
2015-राजकिशोर सिंह-JDU
2020-सिद्धार्थ पटेल-JDU