सर्दियों की शुरुआत से पहले ही दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की धुंध छा जाती है। एक दौर तो ऐसा भी आता है जब सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है। यहां हर साल एयर क्वालिटी 'खतरनाक स्तर' पर पहुंच जाती है। पिछले कुछ हफ्तों से दिल्ली की हवा 'खराब' और 'बहुत खराब' बनी हुई है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक, दिवाली के बाद से दिल्ली की हवा लगातार बिगड़ती जा रही है। वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली अभी 'रेड जोन' में बना हुआ है। दिल्ली में AQI का स्तर शनिवार को 361 रहा, जो 'बहुत खराब' की श्रेणी में आता है।
अब तो हवा इतनी खराब हो गई है कि दफ्तरों का समय भी बदल गया है। दिल्ली सरकार के दफ्तरों का समय पहले सुबह 9:30 से शाम 6 बजे तक होता था। अब इसे बदलकर सुबह 10 बजे से शाम 6:30 तक कर दिया गया है। वहीं, नगर निगम के कर्मचारियों का समय आधा घंटे पहले कर दिया गया है। अब सुबह 9 बजे की बजाय 8:30 बजे तक दफ्तर पहुंचना होगा। वहीं, शाम 5 की बजाय 5:30 बजे तक निकलना होगा।
ऐसा इसलिए किया गया है ताकि सुबह और शाम के समय दफ्तरों का समय एक ही न होने से ट्रैफिक थोड़ा कम हो और गाड़ियों के धुएं से होने वाले प्रदूषण में कमी आए।
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प्रदूषण की समस्या कितनी बड़ी?
दिल्ली में कई सालों से प्रदूषण की समस्या बनी हुई है। सर्दियां आने से पहले ही हवा खराब होने लगती है। साल के 365 में से कुछ ही दिन होते हैं जब दिल्ली की हवा साफ होती है।
हवा को जहरीला बनाने में सबसे बड़ा रोल PM2.5 का होता है। यह एक बहुत ही महीन कण होता है, जो इंसानी बाल से भी 100 गुना ज्यादा पतला होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अगर हवा में PM2.5 की मात्रा 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक है तो आप साफ हवा में सांस ले रहे हैं। मगर दिल्ली में यह कई गुना ज्यादा है। CPCB के मुताबिक, इस साल दिल्ली में PM2.5 का औसत स्तर 72 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहा है। यह WHO के पैमाने से 14 गुना ज्यादा है।
हालांकि, इस साल फिर भी हवा थोड़ी ठीक रही है। CPCB का डेटा बताता है कि इस साल जनवरी से अक्टूबर तक दिल्ली का औसत AQI 170 दर्ज किया गया है। पिछले साल यह 184 और 2023 में 172 था। इतना ही नहीं, इस साल दिल्ली में 'संतोषजनक' दिनों की संख्या भी ज्यादा रही है। इस साल जनवरी से अक्टूबर तक 79 दिन AQI का स्तर 'संतोषजनक' रहा है। जब AQI का स्तर 51 से 100 के बीच होता है तो उसे 'संतोषजनक' माना जाता है।
दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है। यहां पर PM2.5 का औसत स्तर 91.8 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जो WHO के पैमाने से लगभग 18 गुना ज्यादा है। दिल्ली में रहने वाले लोग सालभर में मुश्किल से ही कुछ दिन साफ हवा में सांस लेते हैं।
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मगर इन सबका कारण क्या है?
दिल्ली की हवा को साफ करने के लिए तमाम उपाय किए जा रहे हैं, मगर इसके बावजूद प्रदूषण की समस्या से निजात नहीं मिल पा रही है। अब तो हर साल की यही कहानी हो गई है। वैसे तो सालभर ही हवा प्रदूषित रहती है लेकिन सर्दियों के समय यह और ज्यादा जहरीली हो जाती है।
दिल्ली की हवा खराब रहने के कई सारे कारण हैं। दिल्ली के एक थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) ने 2019 में एक स्टडी छापी थी। इसमें दिल्ली में प्रदूषण के कारणों का अंदाजा लगाया गया था। इसके लिए 2010 से 2018 के बीच हुई कई स्टडीज का एनालिसिस किया गया था।
इसमें बताया गया था कि दिल्ली में PM2.5 की मात्रा बढ़ने की सबसे बड़ी वजह गाड़ियों से निकलने वाला धुआं है। इसकी हिस्सेदारी 17.9% से 39.2% थी। इसके अलावा, इंडस्ट्रियों से निकलने वाले धुएं का योगदान 2.3% से 28.9% था। पावर प्लांट का 3.1% से 11%, सड़कों से उड़ने वाली धूल का 18.1% से 37.8% और कंस्ट्रक्शन का 2.2% से 8.4% था। कई स्टडीज से यह पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर की हवा खराब करने में सबसे बड़ा रोल गाड़ियों से निकलने वाला धुएं का होता है।
आमतौर पर दिल्ली-एनसीआर में खराब होती हवा के लिए पराली को जिम्मेदार ठहराया जाता है। कहा जाता है कि अक्टूबर-नवंबर में पंजाब-हरियाणा के किसान पराली जलाते हैं, जिससे निकलने वाले धुएं से दिल्ली की हवा खराब होती है। हालांकि, पराली का योगदान कम ही रहता है। पिछले साल दिल्ली की हवा में PM2.5 का स्तर बढ़ाने में पराली की हिस्सेदारी 10% के आसपास थी।
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कितनी खतरनाक है खराब हवा?
WHO का मानना है कि दुनिया की 99 फीसदी आबादी खराब हवा में सांस ले रही। यानी, दुनिया के 99 फीसदी लोग ऐसी जगह रह रहे हैं, जहां PM2.5 का स्तर WHO के पैमाने से कहीं ज्यादा है।
आपको जानकार हैरानी होगी लेकिन यह सच है कि दुनिया में मौतों की दूसरी सबसे बड़ी वजह वायु प्रदूषण ही है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (SAGA) की 2025 की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें हाई ब्लड प्रेशर के कारण होती है। इसके बाद वायु प्रदूषण की वजह से लोग सबसे ज्यादा मारे जाते हैं।
SAGA की रिपोर्ट की मानें तो 2023 में दुनियाभर में 79 लाख से ज्यादा मौतें सिर्फ वायु प्रदूषण के कारण हुई थी। इसमें भी सबसे ज्यादा मौतें सिर्फ भारत और चीन में होती हैं। भारत और चीन में हर साल 20-20 लाख वायु प्रदूषण के कारण मारे जाते हैं। 2023 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 20.06 लाख लोगों की मौत हुई थी। उस साल चीन में 20.51 लाख लोग मारे गए थे। 2022 की तुलना में 2023 में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें लगभग 4 फीसदी बढ़ गई थीं। 2022 में भारत में 19.34 लाख मौतें हुई थीं।
इन आंकड़ों के हिसाब से भारत में जहरीली हवा के कारण हर दिन औसतन 5,496 लोगों की मौत हो रही है। इस हिसाब से हर घंटे औसतन 229 लोग मारे जा रहे हैं।
वायु प्रदूषण कितना खतरनाक हो सकता है? इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि भारत में हर साल 13.5 लाख लोग तंबाकू की वजह से मरते हैं। वहीं, वायु प्रदूषण के कारण 20 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है।
इतना ही नहीं, दिल्ली की हवा इतनी प्रदूषित है कि न चाहकर भी आप 11.8 सिगरेट पी ले रहे हैं। यानी 11.8 सिगरेट पीने के बाद आपके फेफड़े जितने खराब होंगे, उतना सिर्फ दिल्ली की हवा में सांस लेकर हो जा रहे हैं।
