दिल्ली-एनसीआर के इलाके में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) 300 से 400 के बीच में आता है जिसका मतलब है वायु गुणवत्ता 'खराब' और 'गंभीर' श्रेणी में है। सुबह की शुरुआत स्मॉग के चादर के साथ होती है। प्रदूषण की वजह से लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। लोगों को विभिन्न प्रकार की समस्याएं हो रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि वायु प्रदूषण हमारे फेफड़ों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा रहा है। अगर समय रहते इस समस्या का निवारण नहीं किया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है।
प्रदूषण हमारे फेफड़ों के लिए कितना खतरनाक है? और क्या खराब फेफड़ों को फिर से हील किया जा सकता है? इस बारे में हमने दिल्ली इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के रेस्पिरेट्री मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट
डॉक्टर निखिल मोदी से बात की।
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प्रदूषण की वजह से हो सकता है COPD
डॉक्टर निखिल ने बताया, 'पॉल्यूशन में विभिन्न प्रकार के पार्टिकुलेट मैटर होते हैं। अलग-अलग गैसेज विभिन्न प्रकार की समस्याएं लेकर आती हैं। हवा में जो ये कार्बोनमोनोक्साइड, नाइट्रो ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड होता है। इनका जो मिश्रण है वो इरिटेंट की तरह काम करता है। प्रदूषण की वजह से ये गैसेज सांस लेते समय आपके फेफड़ों में पहुंच जाती है। इस वजह से आपको अस्थमा जैसे लक्षण दिखते हैं जैसे एक दम खांसी होना, म्यूकस निकलना, सांस लेने वाली नलियों में ये प्रदूषक तत्व जम जाते हैं जिस वजह से सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज निकलती है।' इस कारण सांस लेने में दिक्कत होती है। यह लक्षण तभी दिखते हैं जब आप अधिक प्रदूषण वाली जगह पर होते हैं। ये लक्षण अस्थमा के अटैक जैसे होते हैं।
उन्होंने आगे कहा, 'दूसरा कुछ केमिकल्स और पार्टिकुलेट मैटर जैसे (PM 2.5)। जब हम सांस लेते हैं तब ये सूक्ष्म कण सांस की नलियों को क्रॉस करते हुए फेफड़ों में जाकर बैठ जाते हैं। ये जो प्रदूषण के सूक्ष्म कण है. फेफड़ों को हमेशा नुकसान पहुंचाते हैं। कई बार ये आपकी सांस की नलियों को नुकसान पहुंचाते हैं जिसकी वजह से म्यूकस अधिक बनने लगता है। अधिक समय तक प्रदूषण में रहने की वजह से सांस की नलियां स्थाई रूप से डैमेज हो जाती है जिस वजह से सीओपीडी (COPD) बीमारी होती है। इस बीमारी की वजह से व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है।
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प्रदूषण की वजह से हो सकता है फेफड़ों का कैंसर
फेफड़ों की लाइनिंग में डैमेज होने से एम्फिसीमा होता है। एम्फिसीमा में व्यक्ति सांस तो लेता है लेकिन ऑक्सीजन अच्छे से एब्जॉर्ब नहीं हो पाता है। ये पर्मानेट बदलाव है जिसे बदला नहीं जा सकता है। ये परेशानी उन लोगों को ज्यादा होती है जो लगातार पॉल्यूशन वाली जगहों में रहते हैं। खासतौर से जो मजदूर बाहर रहकर काम करते हैं उन लोगों में ये परेशानी समय के साथ देखी जाती है।
डॉक्टर निखिल ने बताया था कि पहला एक समय था जब COPD उन लोगों को होती थी जो बहुत ज्यादा स्मोकिंग करते थे लेकिन आज यह बीमारी प्रदूषण की वजह से भी देखी जा रही है। साथ ही प्रदूषक तत्व फेफड़ों के सेल्स के डीएनए को भी प्रभावित करता है जिसकी वजह से लंग कैंसर होने का खतरा भी बढ़ रहा है। पहले अधिक स्मोकिंग करने की वजह से फेफड़ों का कैंसर होता था लेकिन अब पॉल्यूशन की वजह से भी हो रहा है।
कैसे बच सकते हैं?
- घर में एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करें।
- घर से निकलते समय N-95 मास्क जरूर लगाएं। N-95 मास्क प्रदूषण के कणों को 95% तक फिल्टर करता है जिसकी वजह से एक्सपोजर बहुत कम हो जाता है।
- सुबह और शाम में घर की खिड़कियां बंद रखें ताकि प्रदूषित हवा घर में न आए।
- जरूरत पड़ने पर ही घर से निकलें।
- घर पर योगा और ब्रीथिंग एक्सरसाइज करें।
- घर पर रोजाना भाप लें ताकि फेफड़े साफ होते रहें।
- डाइट में एंटी ऑक्सीडेंट फ्रूट्स और हरि सब्जियां लें। विटामिन ए, सी और ई वाली चीजें एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होती हैं।