- दिल्ली में हैं तो न चाहकर भी हर दिन 12-13 सिगरेट पी ले रहे हैं।
- दिल्ली में हैं तो आप दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी में रह रहे हैं।
- दिल्ली में हैं तो एक दिन भी ऐसा नहीं है जब साफ हवा नसीब हुई हो।
ये तीन आंकड़े काफी हैं सिर्फ इतना बताने के लिए कि दिल्ली की हवा कितनी जहरीली है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट बताती है कि इस साल 1 जनवरी से 18 नवंबर के बीच 323 दिनों में एक दिन भी ऐसा नहीं रहा, जब दिल्ली की हवा साफ रही हो। साफ हवा तब मानी जाती है, जब एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI का स्तर 0 से 50 के बीच हो। मगर ऐसा इस साल तो क्या पिछले साल भी नहीं हुआ था।
CPCB की ही रिपोर्ट कहती है कि 2016 से 2025 के बीच 10 साल में दिल्ली वालों को सिर्फ 14 दिन ही साफ हवा नसीब हुई है। यानी, इतने सालों में सिर्फ 14 दिन ही दिल्ली में AQI का स्तर 0 से 50 रहा है।
इतना ही नहीं, इस साल के 323 दिनों में से 200 दिन ही ऐसे रहे हैं जब AQI 200 से नीचे रहा है। बाकी बचे 123 दिन AQI का स्तर 200 के पार ही रहा है। इसका मतलब हुआ कि दिल्ली वालों को जहरीली हवा में सांस लेते हुए 4 महीने से ज्यादा हो चुका है।
अब इस जहरीली हवा से बचने के लिए लोग क्या करते हैं? जो लोग खर्च कर सकते हैं, वे एयर प्यूरीफायर खरीद लेते हैं। एयर प्यूरीफायर 'लग्जरी' माना जाता था लेकिन आज के समय में यह 'जरूरत' बन गया है। एयर प्यूरीफायर का बाजार कितना बड़ा है? यही समझेंगे लेकिन उससे पहले जानते हैं कि दिल्ली की हवा वाकई में कितनी जहरीली है?
यह भी पढ़ें-- तंबाकू से ज्यादा जानलेवा खराब हवा, दिल्ली में क्यों नहीं कम होता वायु प्रदूषण?
गैस चैंबर बन चुकी है दिल्ली!
हर साल सर्दियों की शुरुआत से पहले ही दिल्ली की हवा जहरीली हो जाती है। दिल्ली की तुलना 'गैस चैंबर' से की जाती है। वर्ल्ड एयर क्वालिटी की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि अगर हवा में PM2.5 की मात्रा 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक है तो आप साफ हवा में सांस ले रहे हैं। मगर दिल्ली में यह कई गुना ज्यादा है। CPCB के मुताबिक, दिल्ली में PM2.5 का औसत स्तर 244 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था। यानी, दिल्ली में PM2.5 का स्तर WHO के पैमाने से 50 गुना ज्यादा है। PM2.5 को सबसे खतरनाक माना जाता है, क्योंकि यह इतना महीन होता है कि सांसों के जरिए ही यह शरीर में घुस जाता है और बीमार कर देता है।

दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने में सबसे बड़ा रोल गाड़ियों से निकलने वाले धुएं का है। दिल्ली के एक थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) ने 2019 में एक स्टडी छापी थी। इसमें दिल्ली में प्रदूषण के कारणों का अंदाजा लगाया गया था। इसके लिए 2010 से 2018 के बीच हुई कई स्टडीज का एनालिसिस किया गया था।
इसमें बताया गया था कि दिल्ली में PM2.5 की मात्रा बढ़ने की सबसे बड़ी वजह गाड़ियों से निकलने वाला धुआं है। इसकी हिस्सेदारी 17.9% से 39.2% थी। इसके अलावा, इंडस्ट्रियों से निकलने वाले धुएं का योगदान 2.3% से 28.9% था। पावर प्लांट का 3.1% से 11%, सड़कों से उड़ने वाली धूल का 18.1% से 37.8% और कंस्ट्रक्शन का 2.2% से 8.4% था।
यह भी पढ़ें-- सांस लेने में हो रही है तकलीफ, बचने के लिए लगाएं कौन सा मास्क?
जितनी जहरीली हवा, एयर प्यूरीफायर की बिक्री उतनी ज्यादा
दिल्ली की हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि न चाहकर भी आप हर दिन 12.4 सिगरेट पी ले रहे हैं। यानी, एक दिन में 12 या 13 सिगरेट पीने से फेफड़ों को जितना नुकसान पहुंचता है, उतना सिर्फ दिल्ली की हवा में सांस लेकर हो जा रहा है।
जब प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं तो इसका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है। अस्थमा के मरीज हैं या दिल की कोई बीमारी है तो यह जानलेवा भी हो सकता है। इतना ही नहीं, वायु प्रदूषण के कारण लंग कैंसर तक हो सकता है। साइंस जर्नल लैंसेट की एक स्टडी बताती है कि वायु प्रदूषण नॉन-स्मोकर्स में लंग कैंसर के खतरे को बढ़ा रहा है। पिछले साल ही लैंसेट की स्टडी आई थी, जिसमें बताया गया था कि अब नॉन-स्मोकर्स में भी लंग कैंसर तेजी से बढ़ रहा है और इसका एक बड़ा कारण वायु प्रदूषण है।
अब इस जहरीली हवा से बचने के दो ही तरीके हैं। पहला या तो N95 मास्क लगाकर रखें। या फिर एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें ताकि हवा साफ हो सके। अब दिल्ली में एयर प्यूरीफाइर का खूब इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि, ये एयर प्यूरीफायर आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। कुछ की कीमत 5-10 हजार है तो कुछ लाखों में भी आते हैं। खैर, साफ हवा की खातिर लोग अब एयर प्यूरीफाइर पर खर्चा करने लगे हैं।
अमेजन इंडिया में होम, किचन एंड आउटडोर के डायरेक्टर केएन श्रीकांत ने फोर्ब्स को बताया था कि हाल के दिनों में दिल्ली-एनसीआर में एयर प्यूरीफाइर की बिक्री में 20 गुना उछाल देखा गया है। उन्होंने बताया था कि 75% उछाल 10 हजार से कम कीमत वाले एयर प्यूरीफायर में आया था। 10 से 20 हजार वाले एयर प्यूरीफायर की बिक्री में 70% का उछाल देखने को मिला है। वहीं, 20 हजार से ज्यादा कीमत वाले एयर प्यूरीफायर की बिक्री में तो 150% का उछाल आया है।

सिर्फ अमेजन ही नहीं, बल्कि फ्लिपकार्ट पर भी एयर प्यूरीफायर की बिक्री बढ़ी है। फोर्ब्स के मुताबिक, अक्टूबर के मुकाबले नवंबर के पहले हफ्ते में एयर प्यूरीफायर की बिक्री 8 गुना बढ़ गई है।
यह भी पढ़ें-- प्रदूषण की वजह से खराब हुए फेफड़ों को क्या ठीक किया जा सकता है? डॉक्टर से जानिए
भारत में एयर प्यूरीफायर का बाजार कितना बड़ा है?
जिस तरह से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, उस तरह से एयर प्यूरीफायर की बिक्री भी लगातार बढ़ रही है। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि भारत में एयर प्यूरीफाइर का मार्केट हर साल डबल डिजिट में बढ़ने की उम्मीद है।
एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि एयर प्यूरीफायर का बाजार 2033 तक बढ़कर 1.8 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इस दौरान हर साल यह बाजार 14.6% की सालाना दर से बढ़ने का अनुमान है।
वहीं, एक्सपर्ट मार्केट रिसर्च की रिपोर्ट कहती है कि 2025 में भारत में एयर प्यूरीफायर का बाजार लगभग 905 करोड़ रुपये का है। यह बाजार 2034 तक बढ़कर 3,520 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। इस हिसाब से मार्केट हर साल 16.3% की दर से बढ़ने की उम्मीद है। अनुमान है कि हर साल भारत में 5 लाख एयर प्यूरीफायर बिकेंगे।

हालांकि, जानकारों का कहना है कि भारत में एयर प्यूरीफायर का मार्केट अभी भी काफी छोटा है। ब्लू स्टार के मैनेजिंग डायरेक्टर बी. त्यागराजन ने फोर्ब्स से कहा कि 'हर साल दिवाली के आसपास एयर प्यूरीफायर मार्केट लगभग डेढ़ से दो महीने के लिए ऊपर उठता है। इसके बाद फिर वहीं आ जाता है, जहां था।' उन्होंने कहा कि भारत में एयर प्यूरीफाइर का मार्केट छोटा है और वह भी ज्यादातर दिल्ली और मुंबई में ही है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 1% घरों में भी एयर प्यूरीफायर नहीं है।
इतना ही नहीं, एक बड़ी चिंता यह भी है कि भारत में एयर प्यूरीफायर का बाजार भले ही बढ़ रहा हो लेकिन इससे फायदा विदेशी कंपनियों को ही है। दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 83 भारत में हैं। इसके बावजूद एयर प्यूरीफायर के मार्केट में डायसन, श्याओमी, फिलीप्स, हनीवेल और पेनासोनिक जैसी विदेशी कंपनियों का कब्जा है।
यह भी पढ़ें-- डायबिटीज से ज्यादा खतरनाक है प्रदूषण, दिल्ली में 17000 से ज्यादा मौतें
क्या कारगर हैं एयर प्यूरीफायर?
प्रदूषण बढ़ने के साथ ही लोग एयर प्यूरीफायर खरीदने लगते हैं। मगर क्या यह वाकई हवा को साफ करने में मददगार हैं? ज्यादातर स्टडीज इस पर चिंता जताती हैं।
हाल ही में एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन में एक स्टडी छपी थी। इसमें 1929 से 2024 के बीच एयर क्लीनिंग टेक्नोलॉजी पर हुई 700 से ज्यादा स्टडीज का एनालिसिस किया गया था। इस स्टडी की को-ऑथर डॉ. लिसा बेरो ने कहा था, 'हम यह जानकर हैरान हो गए कि ज्यादातर रिसर्च लैब में हुई हैं, न कि उस दुनिया में जहां लोग रहते हैं या काम करते हैं।'
इस स्टडी के लीड ऑथर डॉ. आमिरान बदुआश्विली ने कहा था, 'ज्यादातर तकनीक सिर्फ कागज पर बड़े-बड़े दावे करती हैं लेकिन हमें नहीं पता कि असल दुनिया में यह कितनी कारगर होती हैं।'
कोलोराडो यूनिवर्सिटी की एक स्टडी बताती है कि UV बेस्ड एयर प्यूरीफायर ओजोन छोड़ते हैं, जिनसे फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है। यूनिवर्सिटी के रिसर्चर लुई लेज्ली कहते हैं, 'हवा साफ करने वालीं कुछ डिवाइसेज ओजोन और दूसरे खतरनाक केमिकल छोड़ती हैं, जिनसे हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है। खासकर बच्चों और उन लोगों को जिन्हें पहले से सांस की कोई बीमारी है।'
केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ने पिछले साल कहा था, 'मोबाइल पर AQI देखते हैं और डर के मारे लोग एयर प्यूरीफायर खरीदने लग जाते हैं। एयर प्यूरीफायर बनाने वाली कंपनियां झूठे दावे करती हैं। इसमें बस एक पंखा होता है, फिर भी दावे करती रहती हैं।'

दिल्ली एम्स के पल्मनोलॉजी विभाग के प्रमुख ड़ॉ. अनंत मोहन बीबीसी से कहते हैं, 'एयर प्यूरीफायर को लेकर वैज्ञानिक जानकारी बहुत कम है। फिर भी यह बुजुर्गों, बच्चों और बीमार लोगों के लिए अंदर की हवा को बाहर की हवा से ज्यादा बेहतर कर सकते हैं। कोई प्यूरीफायर कितना असरदार है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितना बड़ा है, उसकी क्षमता कितनी है और कमरा कितना बड़ा है।'
एयर प्यूरीफायर की बिक्री भले ही बढ़ रही हो और यह हवा कितनी ही साफ रखता हो, फिर भी इसे घर के जरूरी सामान में शामिल होने में अभी काफी वक्त लग सकता है। वह इसलिए क्योंकि प्यूरीफायर घर या दफ्तर की हवा तो बेहतर कर सकता है लेकिन बाहर निकलकर फिर प्रदूषित हवा ही मिलनी है। साफ हवा के लिए एयर प्यूरीफायर एक माध्यम जरूर हो सकता है लेकिन यह समाधान नहीं हो सकता।
