नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। माथे पर अर्धचंद्र और घंटे की आभा से युक्त देवी का यह रूप वीरता और शौर्य का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को साहस, आत्मविश्वास और भयमुक्त जीवन की प्राप्ति होती है। देशभर के कई शक्तिपीठों और मंदिरों में इस दिन देवी चंद्रघंटा की विशेष आराधना की जाती है, जिनमें वैष्णो देवी (जम्मू-कश्मीर), चंडी देवी (हरिद्वार), ज्वाला देवी (हिमाचल), दुर्गा मंदिर (वाराणसी) और शारदा देवी (मैहर, मध्यप्रदेश) प्रमुख हैं।

 

देवी चंद्रघंटा की पूजा के समय 'ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः' मंत्र का जाप और आरती से वातावरण भक्तिमय हो उठता है। मान्यता है कि देवी चंद्रघंटा की आराधना से भक्तों को अपार साहस मिलता है और जीवन में भय और संकट से मुक्ति मिलती है। देवी चंद्रघंटा की पूजा मुख्य रूप से नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। उनकी आराधना उत्तर भारत के कई शक्तिपीठों और मंदिरों में होती है।

 

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प्रमुख तीर्थस्थल

  • वैष्णो देवी मंदिर, कटरा (जम्मू-कश्मीर) - यहां नवरात्र में तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा का विशेष महत्व है।
  • झारखंड के देवघर और तारापीठ (पश्चिम बंगाल) -शक्ति साधना में देवी चंद्रघंटा के स्वरूप की विशेष पूजा की जाती है।
  • काशी (वाराणसी) का दुर्गा मंदिर - यहां भी नवरात्र के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा के स्वरूप का विशेष अनुष्ठान किया जाता है।
  • हरिद्वार और हिमालयी क्षेत्र के शक्ति मंदिरों में भी देवी चंद्रघंटा का पूजन विशेष धूमधाम से होता है।
  • चंडी देवी मंदिर, हरिद्वार (उत्तराखंड) - चंद्रघंटा स्वरूप की विशेष पूजा।
  • शारदा देवी मंदिर, मैहर (मध्य प्रदेश) - दुर्गा के नौ रूपों की सामूहिक पूजा का स्थल।

मां चंद्रघंटा की पूजा का मंत्र

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा के समय यह मंत्र पढ़ा जाता है:

ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः।

 

इसके अतिरिक्त देवी का ध्यान मंत्र

 

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टा यशस्विनी।।

 

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आरती – देवी चंद्रघंटा जी की

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम, 
पूर्ण कीजो मेरे काम।  

चंद्र समान तू शीतल दाती,  
चंद्र तेज किरणों में समाती।  

मन की मालक मन भाती हो,  
चंद्रघंटा तुम वर दाती हो।  

सुंदर भाव को लाने वाली,  
हर संकट में बचाने वाली।  

हर बुधवार को तुझे ध्याये,  
श्रद्धा सहित जो विनय सुने।  

मूर्ति चंद्रआकार बनाए,  
सनमुख घी की ज्योत जलाएं।  

शीश झुका कहे मन की बाता,  
पूर्ण आस करो जगदाता।  

कांचीपुर स्थान तुम्हारा,  
कर्नाटक में मान तुम्हारा।  

नाम तेरा रटू महारानी,  
भक्त की रक्षा करो भवानी।