नवरात्रि के तीसरे दिन देवी दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है। यह स्वरूप देवी के तीसरे रूप के तौर पर पूजा जाता है। देवी दुर्गा के इस स्वरूप को विशेष रूप से शौर्य और साहस का प्रतीक माना जाता है। इस स्वरूप में देवी के माथे पर अर्धचंद्र जैसी घंटी का आकार होता है, इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार, असुरों ने देवी धरती और देवताओं को भयभीत कर रखा था। तब देवी दुर्गा ने चंद्रघंटा का रूप धारण किया था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवी दुर्गा का यह स्वरूप बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता है।
चंद्रघंटा देवी साहस, वीरता और शांत शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं। धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि उनके चार हाथों में शस्त्र और अभय मुद्रा होती है जबकि उनका वाहन शेर है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। देवी का यह स्वरूप भक्तों को भयमुक्त जीवन, आत्मविश्वास और साहस प्रदान करने वाला माना जाता है।
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देवी चंद्रघंटा का स्वरूप
धार्मिक ग्रंथों में देवी का रंग स्वर्ण जैसा तेजस्वी बताया गया है। इनकी चार भुजाएं हैं और हर हाथ में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र और वरमुद्रा रहती है। सिंह (शेर) इनका वाहन है, जो पराक्रम और साहस का प्रतीक माना जाता है। इनके माथे पर अर्धचंद्र की घंटी के समान छवि इन्हें चंद्रघंटा नाम देती है। मान्यता के अनुसार, देवी का यह स्वरूप भक्तों को दुष्टों से रक्षा और आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।
देवी दुर्गा ने क्यों धारण किया चंद्रघंटा का स्वरूप?
चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा स्वरूप है, जिसे शक्तिपीठों में विशेष रूप से पूजा जाता है। इस स्वरूप में देवी के माथे पर अर्धचंद्र की आकृति जैसी घंटी है इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। कथा के अनुसार, एक समय असुरों का आतंक बढ़ गया था और उन्होंने धरती और देवताओं को भयभीत कर रखा था। देवी दुर्गा ने उन असुरों का नाश करने के लिए अनेक रूप धारण किए। जब देवी ने चंद्रघंटा का रूप धारण किया तो उनका रूप इतना भव्य और दैवीय था कि असुर उनके सौम्य लेकिन शक्तिशाली स्वरूप को देखकर डर और भय में संतुलित हो गए।
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एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब महिषासुर ने देवताओं को परास्त कर त्रिलोक में उत्पात मचाया, तब सभी देवता महिषासुर के वध के लिए एकत्र हुए। उनकी सम्मिलित शक्तियों से माता दुर्गा प्रकट हुईं। मान्यता के अनुसार, महिषासुर के विरुद्ध युद्ध करते समय देवी ने चंद्रघंटा का यह रूप धारण किया था। इस रूप में माता ने सिंह (शेर) पर सवार होकर महिषासुर से भीषण युद्ध किया और अंत में उसे मारकर देवताओं को मुक्ति दिलाई।
महत्व और मान्यता
मान्यता के अनुसार, देवी चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों के जीवन से भय, संकट और शत्रु नष्ट होते हैं। देवी का यह स्वरूप भक्तों में आत्मबल और साहस का संचार करता है। मान्यता है कि माता की आराधना से अलौकिक ध्वनि घंटानाद से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और वातावरण पवित्र बनता है।