प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी जन सुराज के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि उन्होंने ईमानदार प्रयास किया है और उसमें बिल्कुल सफलता नहीं मिली। इसे स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है। प्रशांत किशोर ने कहा है कि वह भितिहरवा आश्रम में मौन व्रत रखेंगे। प्रशांत किशोर की पार्टी, जन सुराज, महात्मा गांधी के स्वराज आंदोलन से प्रभावित रही है। हार के बाद एक बार फिर वह महात्मा गांधी की शरण में जाते नजर आ रहे हैं। 

प्रशांत किशोर जिस आश्रम में मौन व्रत रखेंगे, वह आश्रम भितिहरवा में है। यह पश्चिमी चंपारण में पड़ता है। यहां महात्मा गांधी ने अपने बिहार प्रवास का एक हिस्सा गुजारा था। यहां महात्मा गांधी से जुड़े कई प्रतीक संजोकर रखे गए हैं। बिहार पर्यटन में इस जगह का एक अहम स्थान है। महात्मा गांधी जिन जगहों से गुजरे थे, उन्हें ऐतिहासिक प्रतीक का दर्जा मिल चुका है। पश्चिम चंपारण का भितिहरवा गांधी आश्रम, गांधीवादियों के लिए मंदिर की तरह है। बिहार सरकार का पर्यटन विभाग ने आधिकारिक तौर पर लिखा है कि महात्मा गांधी ने पश्चिमी चंपारण के इसी आश्रम से सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था।

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महात्मा गांधी ने यहां नौकरी लायक पढ़ाई के लिए देश का पहला बेसिक स्कूल भी बनाया था। भितिहरवा में महात्मा गांधी से जुड़ी कई स्मृतियां संजो कर रखी गईं हैं। यहां उनसे जुड़ी कई वस्तुओं को सहेजकर रखा गया है। यह ऐतिहासिक जगह इसलिए भी है क्योंकि यहां महात्मा गांधी ठहरे थे, जब वह चंपारण में सत्याग्रह कर रहे थे। 

प्रशांत किशोर, संस्थापक, जन सुराज:-
जनता ने हम लोगों पर विश्वास नहीं दिखाया। इस हार की जिम्मेदारी पूरी तरह से मेरी है। जिस प्रयास से हमलोग जुड़े थे, उनका विश्वास नहीं जीत पाया। हमलोग सामूहिक तौर पर हारे हैं। मैं बिहार की जनता की अपेक्षाओं पर खड़ा नहीं उतर सका, इसके लिए मैं माफी चाहता हूं। प्रायश्चित के तौर पर मैं भितिहरवा गांधी आश्रम में एक दिन का मौन उपवास रखूंगा। जो भी जनसुराज के साथी हैं, सभी लोग भितिहरवा गांधी आश्रम में 24 घंटे का उपवास रखूंगा। 

महात्मा गांधी ने यहां क्या किया था?

साल 1917 में महात्मा गांधी यहां पहुंचे थे। यहीं से उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन की नींव रखी थी। इस आश्रम में उन्होंने अपने वस्त्र त्यागे थे। आजादी से जुड़े कई किस्से इस आश्रम में मौजूद लोग सुनाते हैं। यहां महात्मा गांधी के लिए एक आश्रय स्थल बनाया गया था, जिसे बनाने में खप्पर और ईंड का इस्तेमाल किया गया था। यहां उनके साथ पत्नी कस्तूरबा गांधी भी रहीं थीं। बिहार सरकार ने उनसे जुड़ी स्मृतियों को सुरक्षित रखा है। यहां महात्मा गांधी की चक्की, मेज और घंटी रखी गई है।

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भितिहरवा आश्रम। (Photo Credit: Bihar Tourism)

यहां क्यों आए थे महात्मा गांधी?

अंग्रेज, चंपारण में किसानों को नील की खेती के लिए मजबूर कर रहे थे। उनका शोषण करते थे। चंपारण के राज कुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी को इस उत्पीड़न को खत्म करने के लिए चंपारण आने का न्योता दिया था। बार-बार जोर देने पर महात्मा गांधी 15 अप्रैल 1917 को चंपारण आए। 

यहीं से शुरू हुआ था स्वराज का जन आंदोलन

उनकी अगुवाई में एक जन आंदोलन खड़ा हो गया। वह इसी आश्रम में ठहरे थे। यहां वह स्वराज की शिक्षा देते, लोगों को जोड़ते, आंदोलन की रूपरेखा तैयार करते थे। यहां की बदहाली देखकर उनका मन पसीज गया था। यहां कई स्कूलों की स्थापना की गई। कस्तूरबा गांधी यहां  के स्कूल में खुद बच्चों को शिक्षा देती थीं।


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आज भी वैसे ही सुरक्षित है गांधी का कमरा 

महात्मा गांधी जिस कमरे में ठहरते थे, उसे सुरक्षित खा गया है। वहां एक चरखा रखा है, एक चक्की है और गांधी से जुड़े कुछ प्रतीक रखे गए हैं। यहां लोग ध्यान करने आते हैं। बड़ी संख्या में लोग यहां गांधी को समझने-पढ़ने आते हैं।

कैसे पहुंचें?

भितिहरवा आश्रम आप यूपी के रास्ते भी पहुंच सकते हैं। यूपी के गोरखपुर से नरकटियागंज तक कई ट्रेनें चलतीं हैं। यह आश्रम भी इसी रूट पर पड़ता है। नरकटियागंज से आश्रम की दूरी 16 किलोमीटर के आसपास है, जहां ऑटो या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। आश्रम में आप मुफ्त एंट्री ले सकते हैं। कुछ ट्रेनें भितिहरवा आश्रम रेलवे स्टेशन पर भी रुकती हैं। बेतिया से भी यहां टैक्सी से पहुंचा जा सकता है।