800 का पॉपकॉर्न, 400 की कोल्डड्रिंक; महंगा सामान बेचने के पीछे की वजह जानिए
मूवी देखने मल्टीप्लेक्स जाते हैं तो वहां पॉपकॉर्न तक 800 रुपये में मिलता है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। पर ऐसा क्यों होता है? इससे मल्टीप्लेक्स कितना कमाते हैं? जानते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
किसी जमाने में थियेटर में फिल्म देखना सस्ता हुआ करता था। मगर मल्टीप्लेक्स के जमाने में यह काफी महंगा होता जा रहा है। बाहर पानी की जो बोतल 10-20 रुपये में मिल जाती है, वही मल्टीप्लेक्स में 100 रुपये तक मिलती है। बाहर 50-100 रुपये में मिलने वाले पॉपकॉर्न की कीमत मल्टीप्लेक्स में 500 से 800 रुपये तक होती है। और तो और, 40 रुपये में मिलने वाली कोल्डड्रिंक मल्टीप्लेक्स में 400 रुपये तक आती है। इसके बाद फिल्म की टिकट भी होती है, जो 400 से 1,200 रुपये तक मिलती है।
अब इसी मल्टीप्लेक्स में 'काफी महंगा' मिलने वाले खाने-पीने के सामान पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी हफ्ते कहा, 'टिकट की कीमत कम रखिए ताकि लोग फिल्में देखने आएं, वरना हॉल खाली रह जाएंगे।'
यह सारा मामला कर्नाटक सरकार और कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से जुड़ा था। कर्नाटक सरकार ने नियम बनाए थे कि फिल्म की टिकट 200 रुपये तक होनी चाहिए। मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो सरकार के आदेश पर रोक तो लग गई लेकिन अदालत ने थियेटरों को हर टिकट की बिक्री का ऑडिट रखने का आदेश दिया। इस पर ही मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि मल्टीप्लेक्स में खाने-पीने का सामान किफायती होना चाहिए, ताकि सब तक इसकी पहुंच हो।
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क्या है पूरा मामला? SC ने क्या कहा?
- कर्नाटक सरकार का आदेश: सितंबर में कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक सिनेमा (रेगुलेशन) ऐक्ट के नियमों में बदलाव कर मल्टीप्लेक्स में टिकटों की कीमत पर 200 रुपये की कैप लगा दी थी। हालांकि, यह कैप उन मल्टीप्लेक्स पर लागू नहीं थी, जहां 75 या उससे कम सीटें हैं।
- कर्नाटक हाई कोर्ट का आदेश: मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन की याचिका पर हाई कोर्ट ने 23 सितंबर को कर्नाटक सरकार के आदेश पर रोक लगा दी। 30 सितंबर को दो जजों की बेंच ने रोक बरकरार रखी और कहा कि हर टिकट की बिक्री का रिकॉर्ड रखना जरूरी है।
- सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा: कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'मल्टीप्लेक्स 100 रुपये में पानी की बोतल और 700 में कॉफी बेच रहे हैं। लोग फिल्में देखने कम आ रहे हैं। टिकट का दाम कम रखिए वरना हॉल खाली रह जाएंगे।'
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मल्टीप्लेक्स में खाना-पीना इतना महंगा क्यों?
आम सिनेमा थियेटरों की तुलना में मल्टीप्लेक्स में न सिर्फ टिकट महंगी होती है, बल्कि खाना-पीना भी महंगा होता है। अगर टिकट महंगी न भी हो तो भी वहां खाने-पीने का सामान काफी महंगा पड़ता है।
पर ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे लागत का खेल है। अगस्त 2022 में इकोनॉमिक टाइम्स से PVR के एमडी अजय बिजली ने कहा था कि मल्टीप्लेक्स में ज्यादा स्क्रीन होती है, इसलिए कई प्रोजेक्शन रूम और साउंड सिस्टम की जरूरत होती है। इससे लागत 4 से 6 गुना बढ़ जाती है।
मल्टीप्लेक्स वालों की ओर से यह भी तर्क दिया जाता है कि हॉल चाहे पूरा भरा हो या 5-10% हो, संसाधनों का इस्तेमाल तो पूरा ही होता है। ऐसे में खाने-पीने का सामान बेचकर ही खर्चा निकाला जाता है।

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महंगे खाने-पीने से ही चल रहे मल्टीप्लेक्स?
मल्टीप्लेक्स में महंगे पॉपकॉर्न और महंगी कोल्डड्रिंक पर अक्सर चर्चा होती है। अदालतें भी कई बार इस पर सवाल उठा चुकी हैं। यहां तक कि संसद में भी इसे रेगुलेट करने पर बहस हो चुकी है। इसके बाद भी मल्टीप्लेक्स मालिकों का तर्क रहता है कि अगर खाने-पीने का सामान महंगा न बेचें तो लागत निकालना भी मुश्किल हो जाएगा।
इसे थोड़ा आंकड़ा से समझने की कोशिश करते हैं। भारत में मल्टीप्लेक्स थियेटर के दो बड़े खिलाड़ी- PVR और सिनेपॉलिस हैं। सिनेपॉलिस विदेशी कंपनी है, जिसकी भारत में 485 स्क्रीन्स हैं। वहीं, PVR भारतीय है जिसकी देशभर 1,757 स्क्रीन्स हैं।
सिनेपॉलिस की फाइनेंशियल रिपोर्ट्स नहीं हैं लेकिन PVR Inox की मौजूद है। PVR की रिपोर्ट से पता चलता है कि अगर खाने-पीने का सामान महंगा न बिके तो कुछ कमाई ही न हो।
PVR की रिपोर्ट बताती है कि 2025-26 की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर तक 1,858 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। इस तिमाही में 1,716 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। लगभग 37 करोड़ रुपये का टैक्स भर दिया था। इस तरह से PVR को 10.55 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दूसरी तिमाही में PVR को जो कमाई हुई थी, उसमें से 983 करोड़ रुपये टिकट की बिक्री से हुई थी। लगभग 125 करोड़ रुपये विज्ञापन से हुई थी। वहीं, खाने-पीने की चीजों की बिक्री से 588 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। इसका मतलब हुआ कि PVR ने जितना कमाया, उसमें से लगभग 30 फीसदी सिर्फ खाने-पीने की सामान की बिक्री से आया था। यानी, दूसरी तिमाही में PVR को 100 रुपये में से 30 रुपये की कमाई सिर्फ खाने-पीने के सामान की बिक्री से हुई थी।
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ऑक्यूपेंसी घटी, लेकिन खाने-पीने का खर्च बढ़ा
PVR की रिपोर्ट के मुताबिक, अब देशभर के 110 शहरों में 1,757 स्क्रीन्स हैं। 10 साल में PVR की स्क्रीन्स की संख्या लगभग तीन गुना बढ़ गई हैं। 2015-16 में PVR की देशभर में 516 स्क्रीन्स ही थीं। 2016-17 में PVR में एक टिकट की औसत कीमत 188 रुपये थी। अब 262 रुपये हो गई है।
स्क्रीन्स भले ही बढ़ रही हैं लेकिन दर्शकों की संख्या उस हिसाब से नहीं बढ़ रही है। आज भी मल्टीप्लेक्स में 70% से ज्यादा सीटें खाली पड़ी रहती हैं। PVR में सिटिंग ऑक्यूपेंसी लगातार कम होती जा रही है। 2015-16 में ऑक्यूपेंसी 34% थी। 2024-25 में यह घटकर 23% हो गई। इसका मतलब हुआ कि एक हॉल में सिर्फ 23% सीटें ही भरी होती हैं।
हालांकि, इसके बावजूद खाने-पीने पर खर्च लगातार बढ़ रहा है। 2015-16 में PVR में फिल्म देखने वाला एक व्यक्ति खाने-पीने पर औसतन 72 रुपये खर्च करता था। 2024-25 में यह बढ़कर 134 रुपये हो गया। वहीं, 2025-26 की दूसरी तिमाही में यह और बढ़कर 140 रुपये हो गया। इसका मतलब हुआ कि PVR आने वाला हर व्यक्ति औसतन 140 रुपये खाने-पीने पर खर्च कर दे रहा है।
जुलाई से सितंबर 2024 की तुलना में जुलाई से सितंबर 2025 में PVR को खाने-पीने से होने वाली कमाई 12.4% बढ़ गई है। यह तब है जब खाने-पीने की चीजों पर हर व्यक्ति का औसतन खर्च 1.4% कम हो गया है। जुलाई-सितंबर 2024 में PVR आने वाला हर व्यक्ति औसतन खाने-पीने पर 136 रुपये खर्च करता था। वहीं, जुलाई-सितंबर 2025 में यह खर्च कम होकर 134 रुपये हो गया।
पर ऐसा कैसे हुआ? दरअसल, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि PVR की सिटिंग ऑक्यूपेंसी बढ़ी है। 2025-26 की दूसरी तिमाही में 4.45 करोड़ लोगों ने PVR में मूवी देखी है। पिछले साल की दूसरी तिमाही में 3.88 करोड़ लोगों ने मूवी देखी थी। ज्यादा लोगों के आने से खाने-पीने से होने वाली कमाई भी बढ़ी है।
कुल मिलाकर, मल्टीप्लेक्स का बिजनेस खाने-पीने की चीजों से ही चलता है। अगर मल्टीप्लेक्स में खाने-पीने का महंगा सामान न मिले तो कंपनियां कुछ कमा ही न पाएं। यही कारण है कि मल्टीप्लेक्स में 800 रुपये के पॉपकॉर्न और 400 रुपये की कोल्डड्रिंक को कंपनियां जायज ठहराती हैं।
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