बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। गुरुवार को सुबह 11.30 पर पटना के गांधी मैदान में उनका शपथ ग्रहण कार्यक्रम तय हुआ है। शपथ ग्रहण की तैयारियां पूरी हो गईं हैं लेकिन गृह मंत्रालय को लेकर जनता दल यूनाइटेड (JDU) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच खींचतान चल रही है। दोनों पार्टियां दावा कर रहीं कि गृह मंत्रालय उन्हें ही चाहिए।
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी का कहना कि अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बन रहे हैं तो गृह मंत्रालय बीजेपी को मिलना चाहिए। वजह यह है कि बीजेपी के पास जेडीयू से ज्यादा सीटें हैं। बीजेपी के पास 89 विधायक हैं, नीतीश कुमार के पास 85 विधायक है। ऐसे में बीजेपी दबाव दे रही है कि गृह मंत्रालय का पद उन्हें ही चाहिए। नीतीश कुमार ने यह विभाग 20 साल से अपने पास रखा है, जिसे वह देने के लिए तैयार नहीं हैं।
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गृह मंत्रालय पर ही क्यों जोर है?
- मुख्यमंत्री, सारे मंत्रालयों का मुखिया है। हर विभाग पर मुख्यमंत्री की नजर होती है, विशेषाधिकार होते हैं। ज्यादातर राज्यों में गृह मंत्रालय, मुख्यमंत्री अपने पास रखते हैं। साल 2022 में महाराष्ट्र में यह पंरपरा टूटी थी। एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री थे लेकिन गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस थे। बिहार में बीजेपी यही मंत्रालय अपने पास रखना चाह रही है।
- बिहार का गृह विभाग राज्य सरकार का सबसे शक्तिशाली विभाग है। गृह मंत्रालय के पास पुलिस, खुफिया विभाग, होम गार्ड, जेल, फायर और आंतरिक सुरक्षा का पूरा नियंत्रण होता है। राज्य में कानून-व्यवस्था, अपराध नियंत्रण, VIP सुरक्षा और चुनावी व्यवस्था भी इसी विभाग के अधीन होती है।
- बिहार में बीजेपी इसी मंत्रालय के लिए जोर दे रही है। बिहार में बदहाल कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार सरकार पर विपक्ष ने खूब सवाल उठाए थे। बीजेपी, नीतीश कुमार से यह मंत्रालय लेने की मांग कर रही है।
- दूसरी तरफ सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार 'सुशासन' वाली छवि को कायम रखना चाहते हैं और हर हाल में अपने पास गृह मंत्रालय रखना चाहते हैं। वह अपराध के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति कई बार दोहरा चुके हैं।
- बिहार दशकों तक जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य रहा है। 2010 तक जातीय नरहसंहार हुए हैं। ऐसे में नीतीश कुमार किसी भी कीमत पर नहीं चाहते हैं कि पुलिसिंग की व्यवस्था किसी दूसरे व्यक्ति को मिले। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले 20 वर्षों से गृह विभाग अपने पास ही रखते आए हैं।
- यह विभाग मुख्यमंत्री को प्रशासनिक और राजनीतिक ताकत देता है। पुलिस ट्रांसफर-पोस्टिंग, खुफिया तंत्र, दंगा नियंत्रण और पूरी कानून व्यवस्था इसी विभाग के अधीन होता है। जिन राज्यों में मुख्यमंत्री के पास गृह मंत्रालय नहीं है, वहां सीएम और गृह मंत्री दोनों में टकराव देखने को मिलता है।
गृह मंत्रालय, सीएम के पास न हो तो क्या होता है?
कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया हैं, गृह मंत्री जी परमेश्वरा हैं। दोनों के बीच फैसलों को लेकर टकराहट हु है, जबकि दोनों एक ही दल से हैं। ऐसे में अलग-अलग दलों के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री रहे तो टकराव और बढ़ सकता है। यही वजह है कि गृह मंत्रालय हासिल करने पर बीजेपी जोर दे रही है।
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क्या समाधान निकल सकता है?
जेडीयू, गृह विभाग अपने पास ही रखेगी। बीजेपी को वित्त और विधानसभा स्पीकर का पद सौंपा जा सकता है। जेडीयू पहले यह पद भी अपने पास रखना चाहती थी। गठबंधन की सरकारों में, गठबंधन टूटने पर स्पीकर का पद सबसे खास हो जाता है।
बीजेपी के साथ साथ मंत्रिमंडल बंटवारे में जेडीयू ने स्पीकर पद छोड़ने की पेशकश की, लेकिन गृह विभाग पर कोई समझौता नहीं किया। किसी भी राज्य के संदर्भ में यह सच है कि जिसके पास गृह है, वही असल में सत्ता चलाता है। बिहार की राजनीति में गृह विभाग एक राजनीतिक पोर्टफोलियो से कहीं ज्यादा, सियासी दमखम दिखाने का जरिया है।
बिहार की टॉप लीडरशिप में किसे मिलेगी जगह?
- मुख्यमंत्री: नीतीश कुमार
- डिप्टी सीएम: सम्राट चौधरी
- डिप्टी सीएम: विजय सिन्हा
मंत्रिमंडल बंटवारे का फॉर्मूला क्या है?
- लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) पार्टी को 2 से 3 मंत्रालय दिए जा सकते हैं।
- HAM और RLM को एक-एक मंत्रालय मिल सकता है।
- ज्यादातर मंत्री BJP और JDU से ही होंगे।
बिहार में क्या हो रहा है?
जेडीयू के विधायक दल के नेता नीतीश कुमार चुने गए हैं। बीजेपी के विधायक दल के नेता सम्राट चौधरी चुने गए हैं। बिहार के डिप्टी सीएम पद पर विजय सिन्हा भी बने रह सकते हैं। चिराग पासवान की पार्टी भी डिप्टी सीएम पद मांग रही थी लेकिन फिलहाल गठबंधन में उनकी मांग खारिज हो गई है। बीजेपी के उपनेता विजय कुमार सिन्हा चुने गए हैं।