सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) अमेरिका के दौरे पर हैं। पिछले 7 साल में यह उनका पहला अमेरिकी दौरा है। इस दौरे पर पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का मामला भी चर्चा में आ गया है। मेहमान बनकर अमेरिका पहुंचे सलमान पर आरोप लगे थे कि उन्होंने ही खशोगी की हत्या करवाई। उस वक्त अमेरिका ने भी सलमान को दोषी माना था लेकिन अब उसी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्राउन प्रिंस सलमान को एक तरह से क्लीन चिट दे दी है। मीडिया के एक सवाल पर ट्रंप ने कहा कि जमाल बहुत विवादित व्यक्ति थे और इस मुद्दे को उठाकर मेहमान यानी सलमान को शर्मिंदा नहीं करना चाहिए।
डोनाल्ड ट्रंप से एक पत्रकार ने सवाल पूछा कि अमेरिकी खुफिया विभाग यह दावा करता है कि प्रिंस मोहम्मद ने जमाल की हत्या की साजिश रची थी, ऐसे में आपके परिवार का सऊदी में बिजनेस करना क्या सही है? जिस पर राष्ट्रपति भड़क गए और उससे पूछा, 'आप कहां से आई हैं?'
पत्रकार ने जवाब दिया- ABC न्यूज से हूं।
ट्रम्प ने कहा- 'फेक न्यूज, ABC फेक न्यूज। इस बिजनेस में सबसे बुरे संस्थानों में से एक।'
राष्ट्रपति ने आगे कहा कि उनका पारिवारिक बिजनेस से कोई लेना-देना नहीं है और उनका परिवार पूरी दुनिया में बिजनेस करता है।
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जमाल की हत्या
जमाल खशोगी सऊदी अरब के पत्रकार थे जो अमेरिकी अखबार 'वॉशिंगटन पोस्ट' के लिए लिखते थे। इस्तांबुल शहर में स्थित सऊदी अरब की एंबेसी में 2 अक्टूबर 2018 को उनकी हत्या कर दी गई थी। वह अपनी मंगेतर से शादी करने के लिए जरूरी कागज लेने एंबेसी गए थे लेकिन अंदर से कभी बाहर नहीं आए। तुर्की में हुई जांच के अनुसार उनकी हत्या सऊदी एजेंटों की एक टीम ने की थी। उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे और शरीर के टुकड़ों को कहीं छिपा दिया गया था।
इसके बाद से प्रिंस सलमान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, जिसमें उनकी भूमिका सबसे बड़ा विवाद बनी। फरवरी 2021 में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की तरफ से एक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि MBS ने ही जमाल को पकड़ने या उनकी हत्या करने के ऑपरेशन को मंजूरी दी थी। MBS और सऊदी सरकार ने लगातार इन आरोपों का खंडन किया है कि प्रिंस ने ही हत्या का आदेश दिया था।
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अमेरिका की मजबूरी!
7 साल के बाद यह प्रिंस सलमान का पहला वॉशिगटन दौरा है। आखिरी बार वह साल 2018 में अमेरिका गए थे। इन 7 साल में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में काफी कुछ बदला है। अमेरिका का अपने सहयोगी देशों खासकर भारत से कई मुद्दों पर विवाद सामने आया है। गाजा शांति प्रस्ताव पर इजरायल की मदद करने की वजह से अमेरिका को कई देशों की नाराजगी झेलनी पड़ी है।
दूसरी तरफ अगर सऊदी की बात करें तो चीन से उसके रिश्ते मजबूत हुए हैं। पिछले महीने दोनों देशों ने जॉइंट नेवी एक्सरसाइज की थी। चीन ने 2023 में सऊदी-ईरान समझौते में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। ट्रेड की बात करें तो इस मोर्चे पर भी चीन अब सऊदी का सबसे बड़ा साझेदार बन चुका है।
सऊदी अरब ने रूस के साथ मिलकर ओपेक+ गठबंधन का नेतृत्व किया है। अमेरिका के विरोध के बावजूद, सऊदी अरब ने रूस के साथ मिलकर वैश्विक तेल उत्पादन को सीमित करने का फैसला लिया, जिससे तेल की कीमतें बढ़ीं। दरअसल, सऊदी अरब अमेरिका का प्रमुख सुरक्षा भागीदार रहा है। उसके दूर जाने से इस क्षेत्र में चीन और रूस को पैर जमाने का मौका मिलेगा। सऊदी अरब और रूस मिलकर तेल उत्पादन को नियंत्रित करते हैं, तो वे तेल कीमतों और आपूर्ति के अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
सऊदी अरब अमेरिका का प्रमुख सुरक्षा भागीदार रहा है। उसके दूर जाने से इस क्षेत्र में चीन और रूस को पैर जमाने का मौका मिलेगा। सऊदी अरब और रूस मिलकर तेल उत्पादन को नियंत्रित करते हैं, तो वे तेल कीमतों और आपूर्ति के अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हाल के वर्षों में चीन और रूस ने मध्य पूर्व के देशों के साथ अपने आर्थिक और सैन्य संबंध मजबूत किए हैं।
अमेरिका अपनी मौजूदगी बनाए रखकर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि यह क्षेत्र उसके और उसके सहयोगियों के प्रभाव क्षेत्र से बाहर न जाए। यदि सऊदी या ईरान दोनों पर अमेरिका का प्रभाव कम होता है, तो वह ईरान की बढ़ती क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करने की क्षमता खो देगा।