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चंड़ीगढ़ से संबंधित बिल को लेकर सरकार का बयान, शीतकालीन सत्र में नहीं होगा पेश

संविधान संशोधन बिल 131 को लेकर केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि इसे बिना सभी लोगों से विचार विमर्श के संसद में पेश नहीं किया जाएगा।

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अमित शाह । Photo Credit: PTI

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चंडीगढ़ के प्रशासनिक ढांचे को लेकर केंद्र सरकार के एक प्रस्ताव पर राजनीतिक बवाल मच गया था, लेकिन रविवार को गृह मंत्रालय ने साफ किया कि अभी इस प्रस्ताव पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है और यह अभी विचाराधीन है।

 

गृह मंत्रालय ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर बयान जारी कर कहा कि चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया को सिर्फ आसान करने का प्रस्ताव अभी केंद्र सरकार के पास विचार के लिए है। अभी तक कोई फाइनल निर्णय नहीं लिया गया है।

 

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विचार-विमर्श के बाद फैसला

मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस प्रस्ताव से चंडीगढ़ की प्रशासनिक व्यवस्था या शासन में कोई बदलाव नहीं होने वाला है। पंजाब और हरियाणा के साथ चंडीगढ़ के पुराने परंपरागत संबंधों में भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सभी पक्षकारों (स्टेकहोल्डर्स) से पूरा विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा और चंडीगढ़ के हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा। इसलिए इस मामले में किसी को भी चिंता करने की जरूरत नहीं है।

 

गृह मंत्रालय ने यह भी साफ किया कि आने वाले संसद के शीतकालीन सत्र (1 दिसंबर 2025 से शुरू) में इस संबंध में कोई बिल पेश करने का केंद्र सरकार का कोई इरादा नहीं है।

 

दरअसल, केंद्र सरकार ने प्रस्ताव दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 240 में चंडीगढ़ को शामिल किया जाए, ताकि वहां लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त किया जा सके। इससे पंजाब का चंडीगढ़ पर दावा कमजोर पड़ सकता है, क्योंकि चंडीगढ़ अभी पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने इसका कड़ा विरोध किया था और कहा था कि भाजपा सरकार पंजाब के हक को छीनना चाहती है। अब केंद्र ने साफ कर दिया है कि अभी कुछ भी तय नहीं है और कोई जल्दबाजी नहीं की जा रही है।

पंजाब के लिए भावनात्मक मुद्दा

चंडीगढ़ का मुद्दा पंजाब के लिए हमेशा से एक गहरा भावनात्मक विषय रहा है। आज़ादी से पहले लाहौर अविभाजित पंजाब की राजधानी था। 1947 के बंटवारे के बाद लाहौर पाकिस्तान में चला गया, तब से चंडीगढ़ को पंजाब ने अपनी नई राजधानी के रूप में अपनाया।

 

साल 1966 में जब पंजाब का भाषाई आधार पर पुनर्गठन हुआ और हरियाणा अलग राज्य बना, तब से चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा दोनों की साझा राजधानी बना दिया गया। उस समय चंडीगढ़ का प्रशासक एक स्वतंत्र आईएएस अधिकारी (मुख्य सचिव स्तर का) होता था, जो केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर इसका प्रशासन चलाता था।

 

 

 

 

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पंजाब का राज्यपाल प्रशासक

लेकिन 1 जून 1984 से इसमें बड़ा बदलाव किया गया। उस दिन से पंजाब के राज्यपाल को ही चंडीगढ़ का प्रशासक (Administrator) बना दिया गया। यानी अब पंजाब का गवर्नर ही चंडीगढ़ का भी प्रशासक होता है, और चंडीगढ़ का मुख्य सचिव सिर्फ प्रशासक का सलाहकार बनकर रह गया।

 

इस व्यवस्था से पंजाब को हमेशा लगता रहा है कि चंडीगढ़ पर उसका भावनात्मक और व्यावहारिक हक मजबूत है। इसलिए जब भी केंद्र सरकार की तरफ से चंडीगढ़ के प्रशासन में कोई बदलाव या अनुच्छेद 240 के तहत लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त करने जैसे प्रस्ताव आते हैं, पंजाब में तीखी प्रतिक्रिया होती है, क्योंकि लोग इसे अपने हक पर डाका मानते हैं।


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