गले में लोहे के बेल्ट, मन में दहशत, महाराष्ट्र में तेंदुओं का खौफ कितना विकराल?
महाराष्ट्र में तेंदुओं के हमले से लोगों में खौफ व्याप्त है। लोग अपने घरों से निकलने में डर रहे हैं। तीन जिलों में अब तक 14 लोगों की जान तेंदुए ले चुके हैं। हर तीन डर के साये में बीत रहा है।

गले में लोहे के पट्टे पहने लोग। (Photo Credit: Social Media)
महाराष्ट्र के गन्ना बेल्ट में इन दिनों तेंदुओं का आंतक हैं। हालत इतने बिगड़ चुके हैं कि पुणे जिले के पिंपरखेड़ गांव में लोगों को अपने गले में कीलों से युक्त लोहे का पट्टा पहनना पड़ा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि तेंदुआ आमतौर पर गर्दन पर ही हमला करता है। इस बेल्ट का पहनने का उद्देश्य यह है कि तेंदुआ उनकी गर्दन पर हमला न कर सके। बच्चे, बुजुर्ग या महिला... हर किसी के गले पर आपको यह लोहे का पट्टा दिख जाएगा। तेंदुए के हमले में पिंपरखेड़ गांव ने अपने तीन लोगों को खोया है। पुणे शहर के बाहरी इलाके शिरूर और जुन्रा क्षेत्र में दहशत व्याप्त है। लोग अपने घरों से निकलने से पहले कई बार सोचते हैं।
पुणे के अलावा पड़ोसी जिले अहिल्यानगर और नासिक में भी तेंदुए का आंतक है। तीनों जिलों में दो महीने में 14 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। नासिक और अहिल्यानगर में 5-5 व पुणे में चार लोगों की मौत से खौफ का मंजर पसरा है। आइये जानते हैं कि महाराष्ट्र में तेंदुए की समस्या कितनी बड़ी है, क्यों इनका आंतक तेज हो रहा है और सरकार क्या कदम उठा रही है?
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कहां से आया लोहे के पट्टे पहनने का आईडिया
पिंपरखेड़ गांव की सुनीता ने बताया कि कुत्ते और तेंदुए की लड़ाई के बाद गले में लोहे के पट्टे पहनने का आईडिया आया। कुत्ते की गर्दन में लोहे का बेल्ट था। तेंदुए ने उसका पैर पकड़ रखा, लेकिन बेल्ट की वजह से गर्दन पर हमला नहीं कर रहा था। बेल्ट के कारण कुत्ते की जान बची तो सभी किसानों ने तय किया कि खेतों में काम करते वक्त वह भी ऐसा ही बेल्ट पहनना शुरू करेंगे।
इलाके में तेंदुओं के हमले में लगातार हो रही मौतों से ग्रामीणों में खौफ के साथ-साथ गुस्सा भी व्याप्त है। पुणे जिले में लोगों का गुस्सा काफी बढ़ता जा रहा है। अपनों की मौत से परेशान ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन का सहारा लिया तो मंत्री से मुख्यमंत्री तक को बयान जारी करना पड़ा। चार नवंबर को ग्रामीणों ने पुणे-नासिक हाईवे पर जाम लगाया था। वन विभाग के एक बेस कैंप और रेंजर की गाड़ी में आग लगा दी थी। विरोध प्रदर्शन के बाद वन मंत्री गणेश नाइक ने पीड़ित परिवार के लोगों से मुलाकात की।
क्या कर रही महाराष्ट्र सरकार?
महाराष्ट्र के वन मंत्री गणेश नाइक का कहना है कि नरभक्षी जानवर को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया है। सरकार ने 200 पिंजरों को खरीदा है। 1000 और खरीदने की तैयारी है। सीएम देवेंद्र फडणवीस ने केंद्र सरकार से आदमखोर जानवरों को मारने और पकड़ने की मंजूरी देने की मांग की। मुख्यमंत्री के मुताबिक पुणे और अहमदनगर जिले में करीब 1,300 तेंदुए हैं।
पूरे इलाके में वन विभाग के अधिकारी अलर्ट हैं। सीसीटीवी कैमरों से तेंदुओं की गतिविधियों को ट्रैक किया जा रहा है। हीट-सेंसिंग थर्मल ड्रोन से भी तलाश की जा रही है। जमीन पर बने पंजों के निशान से भी तेंदुओं को खोजा जा रहा है। कई स्थानों पर वन विभाग ने पिंजरे रखे हैं। इनमें चारे के तौर पर मुर्गी, बकरी और कुत्तों को रखा गया है। ग्रामीणों को भी अलर्ट रहने की सलाह दी गई है।
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महाराष्ट्र के इस इलाके में तेंदुए के हमले क्यों?
- तेंदुओं के प्राकृतिक आवास में कमी।
- जंगलों में इंसानी गतिविधियों का बढ़ना।
- इलाके में बड़ी मात्रा में गन्ने की खेती।
- जंगली आग से तेंदुओं का पलायन।
- यह इलाका सह्याद्रि पर्वतमाला से घिरा।
- इलाके में बांध बनने से तेंदुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट।
- जंगलों के आसपास तेजी से शहरीकरण।
- मानव बस्तियों के पास भोजन की तलाश।
- पालतू जानवरों की खोज में गांवों के पास आना।
जुन्नार क्षेत्र में तेंदुओं की हमले की एक वजह यह भी
महाराष्ट्र में वन अधिकारियों ने 2001 में तेंदुओं को पकड़कर आबादी वाले इलाके से दूर संरक्षित क्षेत्रों में भेजने का फैसला किया। मगर इसका असर यह हुआ कि पुणे जिले के जुन्नार इलाके में तेंदुओं की हमले में इजाफा होने लगा, क्योंकि अधिकांश तेंदुओं को यही रिहा किया जाता था। इस इलाके में साल 1993 से 2001 तक सिर्फ 33 बार तेंदुओं ने मनुष्यों पर हमला किया। मगर तेंदुओं के इलाके में रिहा करने के बाद इसमें करीब 325 फीसद का इजाफा हुआ और 2001 से 2004 तक 44 हमले रिकॉर्ड किए गए।
यूपी और उत्तराखंड में भी दहशत
लोगों पर तेंदुओं के हमले की एक वजह उनकी संख्या में इजाफा भी है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक देशभर में तेंदुओं की करीब 13,800 आबादी है। एक स्टडी के मुताबिक भारत में 1875 से 1912 के बीच तेंदुओं ने करीब 11,909 लोगों की जान ली। वहीं भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी का अनुमान है कि 1994 से 2017 तक लगभग 4,410 तेंदुओं को मारा गया।
महाराष्ट्र के अलावा उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के तराई के इलाके में भी गन्ने की खेती खूब होती है। यह इलाका भी तेंदुओं की गतिविधियों से अछूता नहीं है। 2023 से अब तक यूपी के सिर्फ बिजनौर जिले में 35 लोगों की जान तेंदुओं ने ली। उत्तरांखड में इस साल आठ लोगों की मौत हुई। 2024 में 16, 2023 में 18 और 2022 में 22 की जान गई थी। पिछले साल राजस्थान में तेंदुओं के हमले में 10 लोगों की मौत हुई थी।
शहरों के करीब क्यों आ रहे तेंदुए?
एक अध्ययन से पता चला है कि तेंदुए हिरण, सांभर, जंगली सुअर और लंगूर का शिकार करते हैं। मगर मौका मिलने पर मवेशी, सूअर और कुत्ते को भी नहीं छोड़ते हैं। अगर कोई इंसान दिख जाता है तो उस पर भी हमला करने पर कोई गुरेज नहीं करते हैं। इंसानी बस्तियों के आसपास तेंदुओं के आने की एक वजह यह है कि शहरों के बाहर अक्सर कूड़े के ढेर होते हैं। यहां सूअर और कुत्तों का होना आम बात है। इस वजह से भी तेंदुएं शहरों के आसपास आ जाते हैं।
अध्ययन के मुताबिक भारत में पाए जाने वाले नर तेंदुए 127 से 142 सेमी तक बड़े होते हैं। मादा तेंदुएं 104 से 117 सेमी के बीच बढ़ते हैं। बांघों की तुलना में छोटे होने कारण अक्सर इन्हें जंगलों से खदेड़ दिया जाता है। ऐसी स्थिति में वह शिकार की तलाश में मानव बस्तियों के पास पहुंचते हैं।
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