4 महीने की डेडलाइन, 3 राज्य, 'रेड कॉरिडोर' से कितना मिट पाया नक्सलवाद?
मध्य प्रदेश के बालाघाट से लेकर छत्तीसगढ़ के बस्तर तक, नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं। समर्पण करने वाले माओवादियों में पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी तक के माओवादी शामिल हैं।

नक्सल लीडर भूपति, आत्मसमर्पण के बाद संविधान की राह पर चलने का दावा कर रहा है। (Photo Credit: PTI)
साल 1967। पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव। जमींदारों के उत्पीड़न से तंग आए किसानों ने रक्त रंजित विद्रोह छेड़ दिया। माओवादी विचारधारा से प्रभावित होकर चारु मजूमदार ने कुछ दस्तावेज बनाए, जो विद्रोही किसानों के लिए संविधान बन गया। पहली बार एक जनयुद्ध छिड़ा। पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में 60 के दशक में भड़के इस जनआंदोलन ने भारत में माओवाद की जड़ें इतनी गहरी जमा दीं कि वामपंथी उग्रवाद से देश अब तक नहीं निकल पाया।
कानू सान्याल ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) की नींव रखी। इस संगठन का दशकों तक रेड कॉरिडोर पर राज रहा। भारत तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था तो बन गया, रेड कॉरिडोर के जाल में फंसे जंगल, आदिवासी, आज भी मुख्य धारा की विकास यात्रा से कटे रहे।
न सड़कें बन पाईं, न अस्पताल पहुंच पाया, न बिजली न शिक्षा। अस्पताल बने तो उड़ा दिए गए, सड़कें बिछाई गईं तो माओवादियों ने धमाके में उड़ा दिया। नक्सली, दंडकारण्य के राजा हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इनके पांव ऐसे जड़े हैं कि इन्हें सरकारें हिला तक नहीं पाई हैं। अब केंद्र सरकार ने तय किया है कि 31 मार्च 2026 तक भारत नक्सलवाद मुक्त हो जाएगा। भारत में लाल आतंक का राज खत्म हो जाएगा, बिछड़े समूहों मुख्य धारा में लाया जाएगा।
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नक्सलियों का रेड कॉरिडोर क्या था?
नक्सली हमलों में 60 के दशक से अब तक सैकड़ों जवान मारे जा जुके हैं। भारत में 9 से ज्यादा राज्यों में नक्सलवाद फैला है। अब नक्सलवाद का प्रभाव 18 जिलों तक सिमट गया है। एक जमाने में रेड कॉरिडोर 10 से ज्यादा राज्यों में फैला था। यह कॉरिडोर लगभग 10-12 राज्यों तक फैला था। पहले ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों के जंगली और मैदानी इलाकों में माओवाद चरम पर रहा है। देश के 90 से लेकर 100 जिले तक नक्सलवाद से प्रभावित रहे हैं।
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अब क्या हाल है?
साल 2014 से लेकर अब तक नक्सलवाद साल-दर-साल घटता गया है। साल 2014 तक देश के 35 जिले नक्सलवाद से प्रभावित रहे हैं, 2025 में यह संख्या घटकर 6 रह गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार-बार कह रहे हैं कि 31 मार्च 2026 तक भारत नक्सलमुक्त हो जाएगा।
रेड कॉरिडोर कितना घट गया है?
कई राज्यों में फैला नक्सलवाद अब देश के 3 राज्यों में समिट गया है। गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या अप्रैल 2018 में 126 से घटकर 90, जुलाई 2021 में 70 और अप्रैल-2024 में 38 हो गई। कुल नक्सलवाद प्रभावित जिलों में से, सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6 हो गई है।
- छत्तीसगढ़: बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा
- झारखंड: पश्चिमी सिंहभूम
- महाराष्ट्र: गढ़चिरौली
गृह मंत्रालय की नजर में कितना कम हुआ नक्सलवाद?
गृहमंत्री अमित शाह बार-बार कह रहे हैं कि 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद खत्म होगा। 16 अक्तूबर को जब नक्सलियों के सीनियर ऑपरेटिव ने सरेंडर किया था, तब अमित शाह ने कहा था-
अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री:-
यह अत्यंत हर्ष की बात है कि एक समय आतंक का गढ़ रहे छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ और नॉर्थ बस्तर को आज नक्सली हिंसा से पूरी तरह मुक्त घोषित कर दिया गया है। अब छिटपुट नक्सली केवल साउथ बस्तर में बचे हुए हैं, जिन्हें हमारी सुरक्षा बल शीघ्र ही समाप्त कर देंगे। जनवरी 2024 में छत्तीसगढ़ में हमारी पार्टी की सरकार बनने के बाद से 2100 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, 1785 को गिरफ्तार किया गया है और 477 को न्यूट्रीलाइज किया गया है। यह 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के हमारे दृढ़ संकल्प का प्रतिबिम्ब है।
जिन नक्सलियों के सरेंडर से टूट रही माओवाद की जड़ें
15 अक्तूबर के आसपास एक साथ 170 से ज्यादा नक्सलियों ने सरेंडर किया। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की सूची में 10 सीनियर ऑपरेटिव शामिल थे। जिस एक नाम की सबसे ज्यादा चर्चा रही, वह सतीश उर्फ रूपेश, उर्फ टी वासुदेव राव उर्फ रवन्ना था। वह माओवादी पार्टी का सेंट्रल कमेटी मेंबर (CCM) रहा है। वह कुख्यात नक्सली था, जिसके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था। बीजापुर में 1 करोड़ से ज्यादा के इनाम वाले कुख्यात नक्सली नेता भूपति ने भी अपने 60 साथियों के साथ सरेंडर किया था।
टी वासुदेव राव ने अपने साथ 170 साथियों का सरेंडर कराया था। उसके साथ स्टेट जोनल कमेटी मेंबर रानीता ने भी सरेंडर किया। वह माड़ डिवीजन की सचिव थी। भास्कर, नीला उर्फ नंदे, दीपक पालो, इंद्रावती जैसे कुख्यात नक्सलियों के सरेंडर से माओवाद आंदोलन को बड़ा झटका लगा था। इन नक्सलियों पर 25 लाख रुपये का इनाम था। नक्सली अपने साथ बड़ी संख्या में स्वचालित हथियार, जिनमें एके-47, इंसास, SLR, 303 राइफल लेकर आ रहे हैं।
26 अक्तूबर को भी माओवादियों के सीनियर नेता मल्लोजुला वेणुगोपाल राव ने सरेंडर किया था। उनके साथ 61 नक्सलियों ने सरेंडर किया था। वह पूरा कैडर लेकर ही आ गए थे। वह सेंट्रल कमेटी के सदस्य थे। अब उन्हें माओवादियों ने गद्दार करार दिया है। 15 अक्तूबर को देवेंद्र फडणवीस की मौजूदगी में नक्सलियों ने सरेंडर किया था।
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क्यों सरकार उत्साहित है?
जनवरी 2026 से अब तक नक्सलियों के बड़े चेहरे या तो मारे जा चुके हैं या सरेंडर कर चुके हैं। जिन नक्सलियों के मरने से सरकार सबसे ज्यादा खुश हुई है, उनमें नंबाला, नरसिम्हा, कट्टा और कोसा जैसे कुख्यात नाम शामिल हैं। माओवादी इन्हें जन नेता मानते हैं, अपने आपको क्रांतिकारी कहते हैं। इन क्रांतिकारियों का इतिहास दागदार है, भारत की संप्रभुता को ये माओवादी बाधा पहुंचाते हैं, इनके हाथ जवानों के खून से रंगे हैं।
- नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजु: कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) का महासचिव था। सबसे बड़े नेता को सुरक्षाबलों ने नारायणपुर-बीजापुर बॉर्डर पर एक मुठभेड़ में ढेर किया था। माना जाता है कि बसवराजु के मरने के बाद माओवाद की कमर टूट गई थी। यह 10 करोड़ का इनामी नक्सली था, अबूझमाड़ के जंगलों में ढेर हुआ।
- नरसिम्हा चालम उर्फ सुधाकर: यह नक्सली, माओवादी सेंट्रल कमेटी मेंबर था। सैकड़ों बड़ी वारदातों में शामिल रहा है। बीजापुर को सबसे ज्यादा अशांत किया था। 40 लाख का इनाम सिर पर था। जून 2025 में बीजापुर में हुए एक एनकाउंटर में मारा गया था।
- कट्टा रामचंद्र रेड्डी उर्फ गुडसा उसेंदी, उर्फ विजय, उर्फ विकल्प: सेंट्रल कमेटी का सदस्य था। टॉप कमांडर रहा है। अबूझमाड़ के जंगलों में जवानों के लिए काल बना था। यह दंडकारण्य जोनल कमेटी का सर्वेसर्वा रहा है। सुरक्षाबलों पर हमला कैसे करना है, हथियार कब लूटने हैं, इसकी रूपरेखा तैयार करता था। सितंबर 2025 में नारायणपुर के अबूझमाड़ इलाके में सुरक्षाबलों ने इसे ढेर किया। इस पर 27 से ज्यादा केस आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में दर्ज थे। करोड़ों का इनाम था। माड़वी हिडमा, इसी का उत्तराधिकारी है। दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति (DKSZC) जिसके जिक्र से लोग कांपते हैं, यह उसी का मुखिया था। सितंबर में ही इसे भी सुरक्षाबलों ने मार गिराया।
- कोसा दादा उर्फ कादरी सत्यानारायण रेड्डी: सेंट्रल कमेटी का सबसे कुख्यात सदस्यों में से एक रहा है। इसे संगठन का थिंकटैंक कहा जाता था। 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा इनाम इस नक्सली पर था। 22 सितंबर को इसे भी अबूझमाड़ के जंगलों में सुरक्षाबलों ने ढेर किया था।
किन नक्सलियों की तलाश है?
- माड़वी हिडमा: पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन नंबर-1 के कमांडर माड़वी हिडमा, दंडाकारण्य में सुरक्षाबलों के लिए काल है। कोई तस्वीर नहीं है पुलिस के बाद जिससे यह पता चल सके कि अब वह कैसा दिखता है। 7 अप्रैल 2021 को सुरक्षाबलों की एक टुकड़ी इसकी तलाशी के लिए जंगल में गई थी, बीजापुर में इसे तलाशते-तलाशते एक साथ 22 जवान मारे गए थे। हिडमा सबसे दर्दनाक मौत देता है। हर साल इस पर इनाम बड़ता जाता है। 2 करोड़ से ज्यादा का इनाम इसके सिर पर है। जवान इसे एक दशक से तलाश रहे हैं, यह पकड़ा नहीं जा सका है, न सरेंडर के मूड में है।
- मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति: माओवादी पार्टी का पूर्व महासचिव है। पार्टी का थिंकटैंक है। सिर पर 2.5 करोड़ रुपये का इनाम है।
- थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी: केंद्रीय समिति का सदस्य है। 1 करोड़ रुपये का इनाम है।
- सुप्रभा उर्फ सुजाता: दक्षिण बस्तर की प्रभारी है। इसकी शादी कुख्यात नक्सली किशनजी से हुई थी। वह मुठभेड़ में मारा गया था। 1 करोड़ रुपये से ज्यादा का इनाम है।
- मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ सोनू: पोलित ब्यूरो सदस्य है। कई सुरक्षाबलों की हत्या में शामिल रहा है। 1 करोड़ से ज्यादा का इनाम है।
- मिशिर बेसरा: पोलित ब्यूरो सदस्य है। झारखंड और बिहार में होने वाली हर नक्सली गतिविधि के लिए जिम्मेदार है। 1 करोड़ से ज्यादा का सिर पर इनाम है।
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