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दिल्ली से महाराष्ट्र तक छात्र कर रहे सुसाइड, एक्सपर्ट ने बताया कैसे लगेगी लगाम?

दिल्ली से महाराष्ट्र तक इन दिनों स्कूली छात्रों के सुसाइड की खबरें सुर्खियों में हैं। सुसाइड के बढ़ते मामलों ने एक नई बहस शुरू कर दी है। इस बीच एक्सपर्स्ट ने बताया कि सुसाइड केस पर लगाम कैसे लगेगी।

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सांकेतिक तस्वीर, Photo Credit: Freepik

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दिल्ली में 16 साल के दसवीं के छात्र ने राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन से कूद कर अपनी जान दे दी। शौर्य ने अपने डेढ़ पन्ने के सुसाइड नोट में लिखा था कि उनके शिक्षकों ने उनका मानसिक उत्पीड़न किया है, जिसके कारण वह आत्महत्या कर रहा है। जयपुर में भी एक चौथी क्लास की बच्ची ने आत्महत्या कर ली। इसके बाद महाराष्ट्र के जालना के स्कूल में पढ़ने वाली 13 साल की बच्ची ने स्कूल की तीसरी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली। इस मामले में परिजनों ने स्कूल टीचर्स पर गंभीर आरोप लगाए हैं। छात्रों में बढ़ते आत्महत्या के मामलों ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। एक्सपर्ट्स स्कूल में मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की बात पर जोर दे रहे हैं। इस तरह के मामलों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की मांग की जा रही है। 


हाल के दिनों में सामने आए इन सुसाइड केस ने पूरे देश में छात्रों की मेंटल हेल्थ को लेकर और स्कूलिंग सिस्टम पर बहस शुरू कर दी है। कुछ लोग  छात्रों के सुसाइड के लिए स्कूल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो कुछ माता-पिता की उस मांग का समर्थन कर रहे हैं कि सरकार को स्कूलों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। हालांकि, मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट नेहा किरपाल ने इस बहस में ना पड़कर समस्या का हल निकालने पर जोर दिया।  उन्होंने कहा कि अगर कोई छात्र सुसाइड करता है तो यह हम सब की जिम्मेदारी है। इसमें माता-पिता, स्कूल, केयर टेकर, स्टाफ और पूरा समाज शामिल है और कोई भी खुद को इससे अलग नहीं कर सकता।

 

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सुसाइड को कैसे रोका जा सकता है?

नेहा किरपाल का मानना है कि सुसाइड का विचार अचानक नहीं आता। छात्र सुसाइड करने से पहले कई फेज से गुजरते हैं। इन फेज को अक्सर गलतफहमी समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। नेहा ने कहा, 'सुसाइड के मामलों में अचानक लगे सदमे की कहानी अक्सर समाज को जिम्मेदारी से बचा लेती है लेकिन इसके संकेत पहले से ही मौजूद होते हैं। इन संकेतों को जल्दी से पहचानना और बच्चे के लिए सुरक्षित और सपोर्टिव तरीके से जवाब देना बहुत जरूरी होता है। अगर पैरेंट्स इन संकेतों को समझ लेते हैं तो सुसाइज जैसी घटना को रोका जा सकता है। 

संस्थानों में करना होगा परिवर्तन

नेहा किरपाल इस बात पर जोर देती हैं कि संस्थानों में परिवर्तन करने के अलावा सुसाइड को रोकने का और कोई विकल्प नहीं हो सकता।  उन्होंने कहा, 'हमारी प्राथमिकता मेंटल हेल्थ सपोर्ट और इंस्टीट्यूशनल रिस्पॉन्स में सिस्टम की कमियों को दूर करना होनी चाहिए। मीडिया और अन्य सभी लोगों से घटनाओं की डिटेल्स से आगे बढ़कर काम करने की अपील की है।'

 

उन्होंने सुझाव दिया है कि सरकार और समाज को मेंटल हेल्दी स्कूलों को बनाने पर जोर देना चाहिए, जिसमें स्टाफिंग, ट्रेनिंग, रिसोर्सिंग और पॉलिसी के लिए पैमाने निर्धारित किए जाएं। बता दें कि मेंटल हेल्दी स्कूल एक ग्लोबल पहल है। इस पहल में यह देखा जाता है कि कोई स्कूल मेंटली हेल्दी इंस्टीट्यूशन के तौर पर क्वालिफाई करने के सिए स्टाफ ट्रेनिंग और काउंसलर जैसी जरूरतों को पूरा करता है या नहीं। 

 

नेहा किरपाल ने बताया कि हमारे स्कूलों में अभी काउंलर बहुत कम हैं और बजट कम होने के कारण मेंटल हेल्थ फ्रेमवर्क की भी कमी है। उन्होंने कहा कि ऐसे बदलावों को लाया जाना चाहिए जो ना सिर्फ छात्रों बल्कि टीचर्स की मेंटल हेल्थ का भी ध्यान रखें। मेंटल हेल्थ पर काम करके ही छात्रों में बढ़ रहे सासाइड केस को रोका जा सकता है। 

टीचर्स क्यों होते हैं फेल?

हाल में सामने आए छात्रों के सुसाइड केस में टीचर्स पर भी आरोप लग रहे हैं। इसके लिए क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जयंती दत्ता ने सिस्टम को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि स्कूल मे छात्र खराब माहौल का सामना करते हैं। टीचर खुद प्रेशर में रहते हैं और अक्सर बुलीइंग या उत्पीड़न को ठीक करने में फेल हो जाते हैं। उन्होंने कहा, 'इन सभी स्कूलों में काउंसलर और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं लेकिन वे अक्सर  छात्रों की शिकायतों पर दखल नहीं देते। ज्यादातर टीचर्स खुद प्रेशर में होते हैं और उनके पास टाइम नहीं होता। प्रशासन भी टीचर्स की समस्याओं पर ध्यान नहीं देता और इससे स्कूल का माहौल खराब बन जाता है।' टीचर्स ही नहीं बल्कि कई बार माता-पिता भी बच्चों की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेते हैं। इस कारण बच्चे अक्सर माता-पिता पर भरोसा नहीं कर पाते हैं और यह बच्चों की मेंटल हेल्थ जर्नी में सबसे खतरनाक है। 

 

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स्कूल पर लगे आरोप

दिल्ली में हुए सुसाइड केस में पेरेंट्स स्कूल पर आरोप लगा रहे हैं। दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की प्रेसिडेंट अपराजिता गौतम स्कूलों को सीधे तौर इन मामलों के लिए जिम्मेदार ठहरा रही हैं। उन्होंने स्कूलों को सिर्फ पैसा कमाने पर ध्यान देने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, 'मुझे पता है कि स्कूलों में बच्चों की शिकायतें अक्सर नहीं सुनी जाती या फिर सुन कर भी अनसुनी कर दी जाती हैं। ऐसे स्कूल सिर्फ कागजों में ही काउंसलर रखते हैं।' बच्चों की मौत पर पेरेंट्स का गुस्सा जायज है लेकिन इसके लिए एक दूसरे पर दोष लगाने की बजाय समस्या के हल पर ध्यान देना चाहिए और स्टूडेंट्स को मेंटल हेल्थ फ्रेंडली माहौल देना चाहिए।

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