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राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए अदालतें नहीं तय सकतीं टाइमलाइन: सुप्रीम कोर्ट

विधानसभा में पास बिल को तीन महीने में मंजूरी देने के पिछले फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अब राय दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी अदालत राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समयसीमा नहीं तय कर सकतीं।

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट। (Photo Credit: PTI)

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सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में विधानसभा से पास बिल के अटकने पर जो टाइमलाइन सेट की थी, उसे लेकर अब संवैधानिक बेंच ने कहा है कि यह तय करने का अधिकार किसी अदालत के पास नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल वाले फैसले को लेकर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने सवाल पूछा था कि जब संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट कैसे समयसीमा तय करने का फैसला दे सकता है। अब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने कहा है कि कोई भी अदालत बिल पास करने के लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल के टाइमलाइन नहीं तय कर सकती।


दरअसल, इस साल 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था, जिसमें राज्यों के बिल पर राज्यपाल और राष्ट्रपति को फैसला करने के लिए 3 महीने की टाइमलाइन तय की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल बिल को लंबे समय तक रोककर नहीं बैठ सकते।


सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने सवाल उठाए थे। उन्होंने इसे लेकर 14 सवाल पूछे थे। इसके बाद चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्या कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर की बेंच ने 10 दिन सुनवाई की थी और 11 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने अपनी राय दी है।

 

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत बिलों को मंजूरी देने के राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों के लिए कोई समयसीमा तय नहीं कर सकतीं।


कोर्ट ने अपनी राय देते हुए कहा, 'टाइमलाइन लगाना संविधान की भावना के खिलाफ है। राज्यपाल या राष्ट्रपति की शक्तियों को हड़पना संविधान की भावना के खिलाफ है।'


कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगर लंबे समय तक राज्यपाल या राष्ट्रपति ने कोई फैसला नहीं लिया तो उसे 'डीम्ड असेंट' यानी 'अपने आप पास होना' नहीं माना जा सकता। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कह दिया कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के फैसले को अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बिल पास हो गया है और कानून बन गया है, तभी उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। इससे पहले नहीं।


हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने यह भी कहा कि राज्यपाल लंबे समय तक और बिना किसी वजह के बिल को अटकाकर नहीं रख सकते। अगर ऐसा होता है तो अदालत इसमें दखल दे सकती है।

 

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सुप्रीम कोर्ट की क्या है राय? 5 पॉइंट्स में समझें

  1. कोई समयसीमा नहीं: अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि राज्यपाल और राष्ट्रपति बिल पर 3 महीने में फैसला लें। अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि संविधान में समयसीमा जैसी कोई बात नहीं है।
  2. डीम्ड असेंट नहीं मान सकते: लंबे समय तक बिल पर फैसला नहीं हुआ तो उसे 'डीम्ड असेंट' माना जाता है। अब कोर्ट ने कहा कि बिल पास तभी होगा जब राज्यपाल या राष्ट्रपति इस पर मंजूरी देंगे।
  3. अदालत में चुनौती नहीं दे सकते: सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय में यह भी साफ किया कि बिल के मामले में राज्यपाल या राष्ट्रपति के फैसले को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  4. कानून बनने के बाद ही समीक्षा: अब किसी बिल की न्यायिक समीक्षा तभी होगी जब वह कानून बन जाएगा। कोर्ट ने साफ किया कि बिल के कानून बनने से पहले उसे किसी अदालत में नहीं ले जा सकते।
  5. कोर्ट तभी दखल देगी जब: अगर राज्यपाल बिना किसी वजह के लंबे समय तक बिल पर फैसला नहीं लेते हैं तो अदालत सीमित निर्देश दे सकती है। यानी, कोर्ट राज्यपाल को बिल पर फैसला करने को कह सकती है।

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पूरा मामला क्या है?

कई बार राज्यपाल लंबे समय तक बिल पर कोई फैसला नहीं लेते जिससे टकराव की स्थिति बनती है। इसे लेकर तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। इसे लेकर 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को अपने पास बिल को अनिश्चितकाल के लिए रोकने का अधिकार नहीं है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने टाइमलाइन तय की थी। कोर्ट ने कहा था कि अगर कैबिनेट की सलाह पर राज्यपाल बिल को रोकते हैं या उसे राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो उन्हें यह सब एक महीने के भीतर करना होगा। अगर राज्यपाल बिल पर मंजूरी रोकते हैं या उसे राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर इस पर फैसला लेना होगा। इसके अलावा, अगर राज्यपाल बिल को वापस भेजते हैं और विधानसभा दोबारा उसे पास कर देती है तो फिर राज्यपाल को एक महीने में इसे मंजूरी देनी होगी।


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया था कि अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति समयसीमा के भीतर कोई फैसला नहीं लेते हैं तो सरकारें अदालत जा सकती हैं।


इसके बाद 15 मई को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने 14 सवाल पूछे थे। । राष्ट्रपति मुर्मू ने पूछा था कि जब संविधान में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट कैसे समयसीमा तय करने का फैसला दे सकता है। उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 200 में राज्यपाल और 201 में राष्ट्रपति की शक्तियों और बिल को मंजूरी देने या न देने की प्रक्रियाओं का जिक्र है लेकिन इनमें कोई समयसीमा तय नहीं की गई है।

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