logo

ट्रेंडिंग:

शादी के बाद गोत्र बदलता है, महिला की संपत्ति पर ससुराल का हक: SC

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सावधान किया है। शीर्ष अदालत का कहना है कि हिंदू समाज की संरचना को कमतर न माने। महिला अधिकारों और सामाजिक संरचना के बीच संतुलन जरूर है।

Supreme Court News.

सुप्रीम कोर्ट। ( Photo Credit: PTI)

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम- 1956 की धारा 15 (1) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर बिना वसीयत के कोई महिला की मौत हो जाती है तो उसकी संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों को मिलती है। बशर्ते उसका कोई पति या बच्चा न हो। शीर्ष अदालत ने इसके पीछे तर्क दिया है कि शादी के बाद महिला का गोत्र बदल जाता है।

 

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ 1956 के अधिनियम के तहत उत्तराधिकार के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। अदालत ने कहा कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 के प्रावधानों को चुनौती देते समय सावधानी बरतेगा। हजारों सालों से चले आ रहे हिंदू सामाजिक ढांचे और उसके मूल सिद्धांतों को खंडित करने पर सावधान रहेगा।

 

सुप्रीम कोर्ट हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 और 16 पर सुनवाई कर रहा है। यह धाराएं बिना वसीयत के मरने वाली हिंदू महिलाओं की संपत्ति के ट्रांसफर को नियंत्रित करती हैं। धारा 15 के मुताबिक बिना वसीयत महिला की मृत्यु की स्थिति में उसकी संपत्ति महिला के माता-पिता से पहले उसके पति के उत्तराधिकारियों को मिलती है। याचिकाओं में इसी प्रावधान को चुनौती दी गई है।

 

यह भी पढ़ें:  '117 से घटकर 50 हुआ, आगे 35 होगा', GST में कटौती का संकेत दे गए PM?

हम सावधान कर रहे हैं: सुप्रीम कोर्ट

याचिका पर अदालत ने कहा कि हिंदू समाज की मौजूदा संरचना को कमतर न आंकें। कोर्ट के तौर पर हम सावधान कर रहे हैं। हिंदू सामाजिक संरचना को गिराएं नहीं। हम नहीं चाहते हैं कि हमारा फैसला हजारों सालों से चली आ रही किसी चीज को तोड़े। महिलाओं के अधिकार अहम है, लेकिन सामाजिक संरचना और महिला अधिकारों के बीच संतुलन होना जरूरी है

 

यह भी पढ़ें: बिहार: 17% आबादी, अल्पसंख्यक वोटों की होड़, नेताओं का हाल क्या है?

याचिकाकर्ता सामाजिक ढांचे को तबाह करना चाहता है: केंद्र

एक याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया किया जिन प्रावधानों को चुनौती दी गई है, वह महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण और बहिष्कार करने जैसे हैं। सिर्फ परंपराओं की वजह से महिलाओं को समान उत्तराधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है। दूसरी तरफ, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने अधिनियम का बचाव किया और आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता 'सामाजिक ढांचे को तबाह' करना चाहते हैं।

 

 

Related Topic:#supreme court

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap