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वेदों के बारे में सब जानते हैं, वेदांत में क्या लिखा है, कितने तरह के होते हैं?

हिंदू धर्म में 4 वेद हैं, जिनकी विशेष मान्यता बताई गई है। वेदों के अलावा इस धर्म में वेदांत का भी महत्व बताया गया है, वेदांत को वेदों का सार माना जाता है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

भारत की प्राचीन वैदिक परंपरा में वेदांत दर्शन को ज्ञान का शिखर माना गया है। यह न केवल भारतीय दर्शन का गूढ़तम पक्ष है, बल्कि मानव जीवन के अंतिम उद्देश्य, मोक्ष की ओर मार्गदर्शन भी करता है। ‘वेदांत’ शब्द का अर्थ है वेदों का अंत या सार से जुड़ा हुआ है, जो वेदों के ज्ञानकांड यानी उपनिषदों पर आधारित है। वेदांत यह बताता है कि आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध कैसा है और मनुष्य कैसे ज्ञान, भक्ति और कर्म के संतुलन से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

 

वेदांत को एक ही रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि समय के साथ इसके कई दार्शनिक मत विकसित हुए है, जिसमें आदि शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत, रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत, माधवाचार्य का द्वैत, वल्लभाचार्य का शुद्धाद्वैत, निंबार्काचार्य का द्वैताद्वैत और चैतन्य महाप्रभु का अचिन्त्य भेदाभेद शामिल है। हर दर्शन आत्मा और ईश्वर के संबंध को अलग दृष्टिकोण से समझाता है लेकिन सभी का लक्ष्य एक ही है।

 

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वेदांत कितने तरह के होते हैं?

भारतीय दर्शन में वेदांत के कई मत (शाखाएं) विकसित हुए। मुख्य रूप से छह प्रमुख वेदांत दर्शन माने जाते हैं।

अद्वैत वेदांत 

  • प्रवर्तक: आदि शंकराचार्य
  • मान्यता: आत्मा और परमात्मा अलग नहीं हैं, दोनों एक ही हैं।
  • विशेषता: यह एकत्ववाद का दर्शन है - सब कुछ ब्रह्म है।
  • लक्ष्य: 'अहं ब्रह्मास्मि' (मैं ही ब्रह्म हूं) की अनुभूति से मोक्ष की प्राप्ति।

विशिष्टाद्वैत वेदांत 

  • प्रवर्तक: रामानुजाचार्य
  • मान्यता: आत्मा और परमात्मा एक हैं, परंतु आत्मा परमात्मा का अंश है, समान नहीं।
  • विशेषता: यह भक्ति मार्ग पर आधारित है।
  • उदाहरण: जैसे सागर और उसकी लहरें – दोनों जल हैं पर लहर सागर नहीं है।

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द्वैत वेदांत 

  • प्रवर्तक: मध्वाचार्य
  • मान्यता: आत्मा और परमात्मा संपूर्ण रूप से अलग हैं।
  • विशेषता: ईश्वर सर्वोच्च है, आत्मा उसकी कृपा से ही मुक्त हो सकती है।
  • यह ईश्वर-भक्ति और भेदभाव पर आधारित दर्शन है।

शुद्धाद्वैत वेदांत 

  • प्रवर्तक: वल्लभाचार्य
  • मान्यता: केवल शुद्ध ब्रह्म ही वास्तविक है, जगत भी उसी का रूप है।
  • विशेषता: यह दर्शन 'कृष्ण भक्ति' और 'पुष्टिमार्ग' पर आधारित है।

द्वैताद्वैत वेदांत 

  • प्रवर्तक: निंबार्काचार्य
  • मान्यता: आत्मा और ब्रह्म एक भी हैं और अलग भी - दोनों का संबंध अविभाज्य है।
  • उदाहरण: सूर्य और उसकी किरणें - दोनों जुड़े भी हैं और अलग भी।

अचिन्त्य भेदाभेद वेदांत 

  • प्रवर्तक: चैतन्य महाप्रभु
  • मान्यता: आत्मा और परमात्मा में 'अचिन्त्य भेदाभेद' (अकल्पनीय एकता और भिन्नता) दोनों हैं।
  • विशेषता: यह दर्शन गौड़ीय वैष्णव परंपरा का आधार है।

वेदांत की विशेषताएं

  • ब्रह्म पर केंद्रित दर्शन – परम सत्य ब्रह्म है, जो सबके मूल की वजह है।
  • मोक्ष का मार्ग बताता है – आत्मज्ञान के जरिए मुक्ति।
  • भक्ति और ज्ञान दोनों का संगम – कुछ मत ज्ञान पर, तो कुछ भक्ति पर जोर देते हैं।
  • सभी मतों का अंतिम लक्ष्य समान – आत्मा की परमात्मा में एकता या मिलन।

वेदांत का अर्थ क्या है?

वेदांत का मतलब है, वेदों का अंतिम भाग या वेदों का निष्कर्ष। क्योंकि वेदों के अंतिम हिस्से में जो दार्शनिक विचार मिलते हैं, वे उपनिषद कहलाते हैं। इसलिए वेदांत को उपनिषदों का दर्शन भी कहा जाता है।

 

दार्शनिक दृष्टि से:

  • वेदांत वह दर्शन है जो यह बताता है कि
  • ब्रह्म (परम सत्य) क्या है,
  • आत्मा (जीव) क्या है,
  • जगत (संसार) क्या है,
  • और इन तीनों का आपसी संबंध कैसा है।
  • वेदांत यह सिखाता है कि जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष (मुक्ति) है, जो आत्मज्ञान से प्राप्त होता है।

वेदांत के आधार ग्रंथ क्या हैं?

वेदांत के तीन प्रमुख आधार हैं, जिन्हें प्रस्थानत्रयी कहा जाता है।

उपनिषद (श्रुति प्रस्थान)

भगवद गीता (स्मृति प्रस्थान)

ब्रह्म सूत्र (न्याय प्रस्थान)

इन तीनों के आधार पर भारत में वेदांत के अनेक मत विकसित हुए - जैसे अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैत आदि।

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