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15 या 16 नवंबर कब है उत्पन्ना एकादशी? व्रत कथा से नियम तक, सब समझिए

मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन उत्पन्ना एकादशी का त्योहार मनाया जाता है। उत्पन्ना एकादशी को व्रत की जननी कहा जाता है, आइए जानते हैं, यह व्रत किस दिन और कैसे करना है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

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मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को देशभर में श्रद्धा और भक्ति के साथ उत्पन्ना एकादशी का पर्व मनाया जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित यह पावन व्रत वर्ष की पहली एकादशी मानी जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु के शरीर से एकादशी देवी का प्राकट्य हुआ था, जिन्होंने मुर नामक असुर का वध कर धर्म की रक्षा की थी। यही वजह है कि इस एकादशी को व्रतों की जननी भी कहा जाता है।

 

सूर्योदय से पहले स्नान-ध्यान कर श्रद्धालु भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन मंदिरों में विशेष सजावट की जाती है और भक्तों के जरिए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप किया जाता है। इस व्रत को रखने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

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उत्पन्ना एकादशी 2025 में कब है?

मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने वाले इस एकादशी व्रत की शुरुआत 15 नवंबर 2025 के दिन दोपहर 12 बजकर 49 मिनट से होगी और इस तिथि का सामपन 16 नवंबर 2025 के दिन दोपहर 2 बजकर 37 मिनट पर होगा। 

उत्पन्ना एकादशी का महत्व

  • यह साल की पहली एकादशी मानी जाती है। मान्यात है कि इसी दिन एकादशी देवी का प्राकट्य हुआ था।
  • यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है।
  • जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा से करता है, उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
  • इस व्रत से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन के संकट दूर होते हैं।
  • इस एकादशी को भव-बन्धन तोड़ने वाली एकादशी भी कहा गया है, क्योंकि यह नकारात्मक कर्मों से मुक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

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उत्पन्ना एकादशी की विशेषताएं

  • इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष विधान है।
  • व्रती को सुबह स्नान के बाद 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • तुलसी दल, धूप-दीप, फल-फूल और पंचामृत से भगवान की पूजा की जाती है।
  • यह व्रत नए व्रत चक्र की शुरुआत का प्रतीक है, इसलिए इसे 'व्रतों की जननी एकादशी' कहा जाता है।
  • इस दिन दान-पुण्य, भक्ति, ध्यान और कथा श्रवण का विशेष महत्व है।

व्रत-विधान (कैसे रखें व्रत)

दशमी तिथि (एक दिन पहले)

  • संध्या के बाद सात्विक भोजन करें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें और नकारात्मक भावों से दूर रहें।

एकादशी तिथि के दिन:

  • सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • व्रत रखने वाले को पूरा दिन उपवास करना चाहिए।
  • फलाहार, दूध और जल का सेवन किया जा सकता है।
  • पूजा में तुलसी पत्र अवश्य अर्पित करें।
  • 'ॐ विष्णवे नमः' मंत्र का जाप करें।
  • विष्णु सहस्रनाम या भगवद गीता के पाठ का भी विधान है।

रात में:

  • भजन-कीर्तन करें, भगवान की आरती उतारें और रात में जागरण करने का विधान है।

द्वादशी तिथि (व्रत के अगले दिन):

  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं, दक्षिणा दें।
  • इसके बाद स्वयं व्रत का पारण करें (फलाहार या सात्विक भोजन से व्रत खोलें)।

उत्पन्ना एकादशी व्रत के फायदे

  • यह व्रत करने वाला व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त होता है।
  • परिवार में शांति और समृद्धि आती है।
  • यह व्रत आरंभिक साधकों के लिए विशेष फलदायी है, क्योंकि यह भक्ति का मार्ग खोलता है।
  • विष्णु लोक की प्राप्ति का भी उल्लेख शास्त्रों में मिलता है।

 


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