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कैसे दैत्यों के गुरु बने शुक्राचार्य? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

हिंदू धर्म ग्रंथों में शूरक्राचार्य को दैत्यों का गुरु कहा गया है। आइए जानते हैं, क्या है उनसे जुड़ी प्रसिद्ध कथा और उनसे जुड़ी मान्यताएं।

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सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: AI Image)

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भारतीय ज्योतिष और पौराणिक ग्रंथों में शुक्र ग्रह को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शुक्र ग्रह को दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के रूप में जाना जाता है। इनका वर्णन वेद, पुराण और महाकाव्यों में विस्तार से मिलता है। शुक्राचार्य को असुरों का गुरु कहा जाता है, और इन्हें विशेष रूप से संजीवनी विद्या के ज्ञाता के रूप में जाना जाता है, जिसके द्वारा वे मृतकों को पुनः जीवित कर सकते थे।

शुक्राचार्य का जन्म और तपस्या

शुक्राचार्य का जन्म भृगु ऋषि के घर हुआ था। उनके माता-पिता ने उनका नाम ‘शुक्र’ रखा। बचपन से ही वे अत्यंत मेधावी और बुद्धिमान थे। जब वे शिक्षा ग्रहण करने योग्य हुए, तो उन्होंने देवगुरु बृहस्पति के आश्रम में जाकर वेदों और शास्त्रों का अध्ययन किया। शुक्राचार्य अत्यंत तेजस्वी थे और अपनी बुद्धि के बल पर शीघ्र ही शास्त्रों में निपुण हो गए।

 

किन्तु जब उन्होंने देखा कि देवगुरु बृहस्पति देवताओं को शिक्षा दे रहे हैं और असुरों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, तो उन्होंने दैत्यों (असुरों) को ज्ञान देने का संकल्प लिया। शुक्राचार्य ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनसे संजीवनी विद्या प्राप्त की। इस विद्या के बल पर वे मृत असुरों को पुनः जीवित करने की शक्ति रखते थे। इस कारण असुरों को देवताओं के विरुद्ध युद्ध में बड़ी सहायता मिलने लगी।

 

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शुक्राचार्य और भगवान विष्णु

एक बार देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध छिड़ा। शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या के बल पर असुरों को बार-बार जीवित कर रहे थे, जिससे देवता उन्हें पराजित नहीं कर पा रहे थे। यह देखकर इंद्रदेव अत्यंत चिंतित हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।

 

भगवान विष्णु ने युक्ति से असुरराज बलि को वामन अवतार के रूप में छल से हराया। जब वामन भगवान ने तीन पग भूमि मांगकर असुरों से उनका सारा राज्य ले लिया, तो शुक्राचार्य ने इस छल को भांप लिया और वे वामन के कमंडल में प्रवेश कर गए ताकि भगवान बलि को जल न दे सकें। लेकिन वामन भगवान ने एक तिनके से कमंडल के मुख को खोलने का प्रयास किया, जिससे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। इसी कारण शुक्राचार्य को काना भी कहा जाता है।

शुक्र ग्रह का महत्व

हिंदू धर्म में शुक्र ग्रह को ऐश्वर्य, भोग-विलास, प्रेम और कला का कारक माना जाता है। शुक्र ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में धन, वैभव और सौंदर्य से जुड़ा होता है। शुक्राचार्य के प्रभाव से शुक्र ग्रह को विवाह, संगीत, काव्य और आकर्षण का प्रतीक माना जाता है।

 

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह बलवान होता है, तो उसे जीवन में सुख-समृद्धि, धन और वैभव की प्राप्ति होती है। वहीं, यदि शुक्र ग्रह कमजोर होता है, तो व्यक्ति के जीवन में विवाह संबंधी बाधाएँ, आर्थिक संकट और भोग-विलास की कमी हो सकती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।


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