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महाकाली शत्रु नाशक स्तोत्र: पाठ कैसे करें, धार्मिक महत्व क्या हैं?

हिंदू धर्म में महाकाली शत्रु नाशक स्तोत्र का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस स्तोत्र के पाठ मात्र से शत्रु और मुकदमे खत्म होते हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: Ai

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आस्था के इस दौर में जहां लोग मानसिक तनाव, भय और जीवन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं, वहीं देवी काली की उपासना एक बार फिर केंद्र में आ गई है। महाकाली शत्रु नाशक स्तोत्र आज देशभर में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। यह वही पौराणिक स्तोत्र है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसका जाप करने से नकारात्मक ऊर्जा, बाधाएं, अशुभ ग्रह और शत्रु बाधाएं शांत हो जाती हैं।

 

दुर्गा सप्तशती और तंत्र परंपरा में वर्णित यह स्तोत्र देवी काली के शांत और भयंकर, दोनों रूपों का दिव्य संगम है। भक्तों का मानना है कि इस स्तोत्र के हर श्लोक में ऐसा अद्भुत बल है कि यह व्यक्ति को मानसिक साहस, सुरक्षा और आत्मविश्वास प्रदान करता है।

 

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श्लोक अर्थ सहित

पहला श्लोक

 

नमः काल्यै नमः शांत्यै नमः सौम्यै नमो नमः।
नमः कराल रूपायै काली रूपै नमो नमः॥

 

अर्थ :

 

हे देवी काली! आपको बार-बार नमस्कार है।
आप शांति का स्वरूप भी हैं और कराल (भयंकर) रूप में भी कृपा करती हैं।
आपके हर रूप को मेरा प्रणाम।

 

दूसरा श्लोक

 

सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

 

अर्थ :

 

हे सनातन शक्ति स्वरूपिणी देवी!
आप ही सृष्टि का निर्माण, पालन और विनाश करने वाली ऊर्जा हैं।
आप तीनों गुणों (सत्व, रज, तम) का आधार हैं।
आपको प्रणाम।

 

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तीसरा श्लोक

 

सर्वं शत्रु विनाशाय करालवदना सदा।
स्मर्तव्यां सिद्धिदां देवि काली कर्पूरवर्णिनी॥

 

अर्थ :

 

हे कराल मुख वाली देवी!
आपका स्मरण करने मात्र से शत्रुओं का नाश होता है।
आप स्मरण करने वाले भक्तों को सिद्धि और विजय देती हैं।

 

चौथा श्लोक

 

दुष्टानां निग्रहार्थाय भक्तानां परिपालनम्।
कुरु काली जगद्धात्रि कराल रूपधारिणि॥

 

अर्थ :

 

हे जगत की धात्री देवी काली!
आप दुष्टों को दंड देने और भक्तों का पालन करने के लिए भयंकर रूप धारण करती हैं।
हमेशा हमारी रक्षा करें।

 

पांचवा श्लोक

 

खड्गिनी शूलिनी घोरा गुणातीताऽनुपाश्रया।
कालरात्रिर्महादुर्गा काली कर्पूरसुन्दरि॥

 

अर्थ :

 

खड्ग और त्रिशूल धारण करने वाली देवी!
आप गुणों से परे, काल की रात्रि (अत्यंत बलवान) और महादुर्गा हैं।
आपका कर्पूर के समान उज्ज्वल और दिव्य रूप हमें भय से मुक्त करता है।

 

छठा श्लोक

 

रक्षा-रूपेण मां नित्यं सन्निहिता भवेश्वरी।
सर्वोपद्रवशान्त्यर्थं करालवदना भव॥

 

अर्थ :

 

हे ईश्वरी!
आप सदा हमारे पास रहकर रक्षा करती रहें।
हमारे सारे संकटों का नाश करने के लिए अपने भयंकर रूप से कृपा बरसाएं।


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