संजय सिंह, पटना: नवगठित नीतीश मंत्रिमंडल के मंत्रियों की अगर संपत्ति की बात करें तो उसमें शामिल 21 मंत्री करोड़पति हैं। औराई से निर्वाचित विधायक रमा निषाद के पास सर्वाधिक 31.86 करोड़ की संपत्ति है। बेगुसराय के बखरी से निर्वाचित विधायक संजय कुमार के पास सबसे कम 22.30 लाख की संपत्ति है। 15 मंत्रियों ने अपनी देनदारी भी घोषित की है। उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा के पास 82.33 लाख की देनदारी है। मंत्रिमंडल में शामिल 11 मंत्रियों पर आपराधिक मामला भी दर्ज है। एडीआर की रिपोर्ट में इन बातों का उल्लेख किया गया है।
जेडीयू के मंत्री अशोक चौधरी, बीजेपी के डा. प्रमोद कुमार एवं रालोमो के दीपक प्रकाश की संपत्ति का विश्लेषण नहींं किया गया है। बीजेपी के 13 मंत्रियों के पास औसतन 6.91 करोड़ और जेडीयू के मंत्रियों के पास 4.66 करोड़ की संपत्ति है। एलजेपी आर और हम के मंत्रियों के पास इनसे कम संपत्ति है। एलजेपी आर के दोनों मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज है। इनमें से एक पर गंभीर आपराधिक मामला दर्ज है।
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विधान परिषद से बनते रहे हैं सीएम
विधान परिषद में रहकर बिहार में मुख्यमंत्री बनने का सिलसिला कोई नया नहीं है। नीतीश कुमार आठवें मुख्यमंत्री हैं, जो विधान परिषद का सदस्य रहते हुए सीएम पद पर दसवीं बार विराजमान हुए हैं। बिहार में पहली बार बीपी मंडल विधान परिषद रहते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए थे। वीपी मंडल सामाजिक न्याय के पुरोधा माने जाते हैं। दूसरे मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर थे। वह भी विधान परिषद के सदस्य थे। गफूर बिहार के 13वें मुख्यमंत्री हुए।
कांग्रेस ने जमुई निवासी चंद्रशेखर सिंह को भी मुख्यमंत्री बनाया। पहले वे केंद्र की राजनीति में थे। वह भी विधान परिषद के सदस्य थे। विधानसभा का चुनव उन्होंने नहीं लड़ा था। फिर भी राज्य का 16वां मुख्यमंत्री बनाया गया था। उनका कार्यकाल मुख्यमंत्री के रूप में शानदार रहा। उन्होंने 1983 में मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी।
इनके हटने के बाद केंद्रीय मंत्री भागवत झा आजाद को विधान परिषद सदस्य बनकर ही मुख्यमंत्री बनया गया था। आजाद के हटने के बाद सत्येंद्र नरायण सिंह उर्फ छोटे साहब बिहार के मुख्यमंत्री बने। वे भी विधान परिषद के ही सदस्य थे। 1990 में कांग्रेस का शासन समाप्त हुआ। तब लालू प्रसाद सत्ता में आए। लालू जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो वे विधान परिषद के सदस्य थे। दूसरी बार उन्होंने राघोपुर से चुनव जीता। उनके बाद राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। वह भी विधान परिषद की सदस्य थीं।
उपेंद्र कुशवाहा ने दी सफाई
अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनए जाने को लेकर उपेंद्र कुशवाहा को राजनीतिक रूप से घेरने की कोशिश की जा रही है। उन पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया जा रहा है। वे स्वयं राज्यसभा के सदस्य हैं और उनकी पत्नी स्नेहलता विधानसभा की सदस्य। बेटा दीपक प्रकाश न तो विधानसभा के सदस्य हैं और न ही विधान परिषद का। फिर भी उन्हें नीतीश मंत्रिमंडल का सदस्य बना दिया गया।
इसी बात को लेकर इनके राजनीतिक विरोधी इन्हें घेरने का प्रयास कर रहे हैं। अपनी सफाई में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि पार्टी के भविष्य और अस्तित्व को बचाए रखने के लिए यह कदम उठाना जरूरी था। उन्होंने कहा कि उनका बेटा स्कूल की परीक्षा में कभी फेल नहीं हुआ है। अपनी मेहनत के बल पर उसने इंजीनियरिंग की डिग्री ली। थोड़े समय बाद उनका बेटा राजनीति में बेहतर करने लगेगा।
पप्पू के खिलाफ गो बैक का नारा
चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस में राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव, प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और प्रदेश के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू के खिलाफ टिकट चोरी का आरोप लगाकर धरने पर बैठे हैं। पप्पू यादव नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने गए थे। उन्हें देखते ही नाराज कार्यकर्ता भड़क गए।
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नाराज कार्यकर्ता टिकट चोर, गो बैक का नारा लगाने लगे। पप्पू यादव भी वहां मौजूद कुछ बच्चों को कुछ रुपये देकर अपने पक्ष में नारा लगवाने लगे। पप्पू के समर्थक भी वहां पहुंच गए। दोनो गुटों के बीच धक्का मुक्की भी हुई। पप्पू माहौल को बिगड़ता देख वहीं जमीन पर बैठ गए। उन्होंने कार्यकर्ताओं से पार्टी हित में आंदोलन खत्म करने का अनुरोध किया, लेकिन आक्रोशित कार्यकर्ताओं ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया।