सेवानिवृत्ति के बाद वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा वह है जो कोई भी कर्मचारी या कामकाजी व्यक्ति चाहता है। देश की सरकार का यह कर्तव्य है कि वह नागरिकों को देश की सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद सार्वजनिक या निजी नौकरी या व्यवसाय के रूप में मिलने वाली सुरक्षा और स्वतंत्रता का आश्वासन दे। कुल मिलाकर, वर्तमान सरकार नागरिकों को भविष्य निधि या पीएफ के रूप में अर्थव्यवस्था में उनके योगदान के लिए लाभ प्रदान करती है। पीएफ और इसके प्रकार, इसकी श्रेणियों, राष्ट्रीय पेंशन योजना और ग्रेच्युटी के बारे में नीचे अधिक जानें।
नौकरी पेशा आदमी के सामने सबसे बड़ा चैलेंज यही होता है कि रिटायरमेंट के बाद जिंदगी कैसे चलेगी। रिटायमेंट के बाद आर्थिक रूप से वह कैसे सुरक्षित रहेगा। इसके लिए लोग भी अपनी तरफ से कोशिश करते हैं और सरकार भी कोशिश करती है। सरकार भी चाहती है कि सर्विस पीरियड में या जब तक कोई काम करता है तब तक लोगों के पास इतनी सेविंग हो जाए कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें आर्थिक रूप से किसी समस्या का सामना न करना पड़े।
इसके लिए कई तरह की योजनाएं जैसे पीपीएफ, ईपीएफ, जीपीएफ, वीपीएफ और ग्रेच्युटी इत्यादि। पर सवाल यह है कि तमाम लोग इस बात को लेकर कन्फ्यूज़ हो जाते हैं कि इनमें क्या अंतर है और इसके किस तरह के फायदे हैं। इस लेख में खबरगांव यही बताएगा कि आखिर इन सबमें फर्क क्या है और किन स्कीम लाभ कौन ले सकता है?
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कर्मचारी भविष्य निधि (EPF)
कर्मचारी भविष्य निधि सैलरी पाने वाले लोगों को दी जाती है। किसी भी संगठन में अगर 20 से ज्यादा सैलरी पाने वाले लोग हैं तो अनिवार्य रूप से उस संगठन या कंपनी को कर्मचारी भविष्य निधि का भुगतान करना होता है। इसके लिए 12 प्रतिशत की कटौती कर्मचारी के वेतन से होती है और 12 प्रतिशत की कटौती कंपनी या संस्था द्वारा किया जाता है।
कर्मचारियों को इस जमा राशि पर ब्याज भी मिलता है। वर्तमान में इस पर मिलने वाला ब्याज 8.25 प्रतिशत है। पीएम जमा होने के 5 साल बाद यदि किसी कर्मचारी को मेडिकल इमरजेंसी होती है या शिक्षा इत्यादि के लिए इस खाते से आंशिक रूप से पैसा निकाला जा सकता है। हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि पीएफ खाते में कम से कम पांच साल तक पहले पैसा जमा किया गया हो।
खाता कर्मचारी के रिटायरमेंट पर मच्योर होता है। मच्योरिटी के बाद यह राशि भी टैक्स फ्री होती है, लेकिन एक व्यक्ति केवल एक ही ईपीएफ अकाउंट रख सकता है, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अगर कोई व्यक्ति के सिर पर किसी बैंक द्वारा लिए गए लोन की देनदारी हो तो भी किसी भी हालत में इस पैसे को उससे नहीं लिया जा सकता।
पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ)
यह अकाउंट भारत का कोई भी नागरिक खोल सकता है चाहे उसका बिजनेस हो या कोई अन्य कार्य। इसका मतलब है कि यह सैलरी पाने वाला या गैर-सेलरी वाला दोनों तरह के खोल सकते हैं। इस अकाउंट को खोलने के लिए सिर्फ एक ही कंडीशन है कि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक हो।
यह खाता ईपीएफओ में नहीं बल्कि इसे रखने वाले व्यक्ति की इच्छानुसार बैंकों या डाकघरों में रखा जाता है। इसलिए माना जाता है कि इसे राष्ट्रीयकृत बैंकों में रखना बेहतर होता है।
यह 500-1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष के बीच हो सकता है। इसमें मिलने वाला ब्याज ईपीएफ से थोड़ा कम होता है और ब्याज की दर को हर तीन महीने पर रिवाइज किया जा सकता है।
अकाउंट 15 साल बाद मच्योर होता है यानी कि 15 साल बाद इस पैसे को निकाला जा सकता है। लेकिन पांच साल की अवधि पूरी होने के बाद पैसे को आंशिक रूप से भी निकाला जा सकता है।
यह पैसा भी ऋण देयता (इसकी वसूली करके ऋण की आपूर्ति नहीं की जा सकती) से मुक्त होने के साथ साथ टैक्स फ्री भी होता है।
यह इंडिविजुअल नेचर का अकाउंट होता है यानी कि एक व्यक्ति केवल एक ही अकाउंट रख सकता है।
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जनरल प्रोविडेंट फंड (जीपीएफ)
यदि सरकारी सेवाओं में कार्यरत कोई व्यक्ति अपने वेतन के 12% की सीमा से अधिक राशि जमा करना चाहता है, तो सरकार ने उनके लिए जनरल प्रोविडेंड फंड अकाउंट या जीपीएफ खोलने का प्रावधान कर रखा है।
वॉलंटरी प्रोविडेंट फंड (वीपीएफ)
इसी तरह से यदि कोई व्यक्ति प्राइवेट सेक्टर में काम कर रहा है और वह 12 प्रतिशत से ज्यादा की राशि पीएफ अकाउंट में जमा करना चाहता है जो इस तरह के अकाउंट को वॉलंटरी प्रोविडेंट फंड अकाउंट या वीपीएफ अकाउंट कहते हैं।
नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस)
नेशनल पेंशन स्कीम भी सामाजिक सुरक्षा के लिए बनाई गई स्कीम है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 साल से 65 साल के बीच है वह इस अकाउंट को खोल सकता है।
इस योजना में एकमात्र समस्या 60 वर्ष या परिपक्वता से पहले जमा किए गए पैसे को वापस लेने की है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पैसा म्यूचुअल फंड या शेयर या बॉन्ड जैसे विभिन्न अन्य खातों में जमा किया जाता है। इस प्रकार यह ईपीएफ या पीपीएफ खातों की तुलना में अधिक जोखिम वाला है।
इस अकाउंट में भी ऋण देयता शून्य है और यह परिपक्वता के बाद टैक्स फ्री है। हालांकि आमतौर पर इस प्रकार के खाते में रिटर्न ईपीएफ और पीपीएफ दोनों से अधिक मिलता है।
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ग्रेच्युटी
इसका मतलब है बोनस। यह किसी कर्मचारी की लॉयल्टी को महत्त्व देने के लिए दिया जाता है। साल के अंत में 15 दिन का वेतन ग्रेच्युटी की न्यूनतम राशि है जो कर्मचारी को वेतन के रूप में दी जाती है।
इसके अलावा इसे (वेतन + डीए) x 15 x कार्यकाल / 26 के फॉर्मूले से भी कैलकुलेट किया जा सकता है।
कर्मचारियों को ग्रेच्युटी एक्ट 1972 के तहत ग्रेच्युटी तब मिलती है जब वे 10 से ज़्यादा कर्मचारियों वाली किसी सरकारी या निजी कंपनी में 5 साल से ज़्यादा काम करते हैं।
