वित्तीय वर्ष 2024-25  के लिए प्रोविडेंट फंड (पीएफ) पर लगने वाली ब्याज दर को इस बार नहीं बढ़ाया गया है। इस वर्ष इंट्रेस्ट रेट पिछले साल की तरह 8.25% ही रखा गया है। इसका फैसला एम्प्लॉइज प्रोविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन (EPFO) के सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टी ने 28 फरवरी को मीटिंग में लिया है। इससे पहले वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ब्याज दर को 8.15% से 0.10% बढ़ाकर 8.25% किया गया था। वहीं 2022-23 में इसे 8.10% से 0.05% बढ़ाकर 8.15% किया गया था।

 

देश के करीब 7 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी पीएफ के दायरे में आते हैं। अगर किसी के ईपीएफ अकाउंट में 1 लाख रुपए जमा हैं, तो इस वर्ष 8.25% के हिसाब से उनके अकाउंट में 8250 रुपए का ब्याज दर मिलेगा। साल 2021-22 में पीएफ पर ब्याज दर को घटाकर उसे 8.10% पर कर दिया गया था, जो कि पिछले 43 सालों में सबसे कम ब्याज दर थी। 

 

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पीएफ अकाउंट क्या होता है? 

प्रोविडेंट फंड का दूसरा नाम भविष्य निधि है। इसका उद्देश्य कर्मचारियों को उनके रिटायरमेंट के समय एकमुश्त बड़ी धन राशि प्रदान करना है। यह पेंशन फंड से अलग है। इसमें एकमुश्त और मासिक पेंशन दोनों में से कुछ प्रतिशत काट करके पीएफ अकाउंट में जमा होता है। ईपीएफओ के नियमों के अनुसार, कर्मचारी की बेसिक सैलरी के साथ दिए जाने वाले महंगाई भत्ते में से 12 % पीएफ अकाउंट में जमा किया जाता है। जरूरत पड़ने पर नियम और शर्तों के अनुसार पीएफ अकाउंट से आप अपने पैसे को निकाल सकते हैं। कंपनी भी कर्मचारी की बेसिक सैलरी प्लस डीए का 12% कॉन्ट्रीब्यूट करती है। 

1952 से लेकर अभी तक पीएफ की ब्याज दर

साल 1952-66 तक में पीएफ ब्याज दर केवल 3 से 4.75% था। उसके बाद 1967-75 के बीच यह मानक 5 से 7% पर था। वहीं 1976-83 तक यह मानक 7.50 से 8.75% तक था, 1984-89 तक 9.25 से 11.80% था, 1990-99 तक 12% था, 2000-01 तक 11% था, 2001-05 में यह घटकर 9.50% पर आ गया था, 2006-10 तक 8.50 से 9.50% था, 2011-21 यह मानक 8.25 से 8.50% हो गया था,  2021-22 में यह मानक घटकर 8.10% हो गया था। इस मानक ने 43 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया था। फिर साल 2022-23 में 8.10% से 0.05% बढ़ाकर 8.15% किया गया था। इसके बाद वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ब्याज दर को 8.15% से 0.10% बढ़ाकर 8.25%
किया गया। जो इस वर्ष भी कायम है।  

 

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कैसे लागू होती है पीएफ की ब्याज दर?

पीएफ में ब्याज दर के फैसले के लिए सबसे पहले फाइनेंस इन्वेस्टमेंट एंड ऑडिट कमेटी की बैठक होती है। यह मौजूदा फाइनेंशियल ईयर में जमा हुए पैसों के बारे में हिसाब देती है। इसके बाद सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टी (CBT) की बैठक होती है। CBT के निर्णय के बाद वित्त मंत्रालय सहमति के बाद ब्याज दर लागू करता है। ब्याज दर पर फैसला फाइनेंशियल ईयर के आखिर में होता है।